इंटरनेट पर सच और असल जीवन के सच में क्या अंतर है

भारत मैं इंटरनेट का इस्तेमाल हर कोई कर रहा हैं। जैसे ऑनलाइन पेमेंट करना, लाइट बिल, और मोबाइल रीचार्ज करना इत्यादि, आने वाले कुछ साल मैं Education System भी पूरी तरह इंटरनेट पर निर्भर हो जाएगा।

इंटरनेट सूचनाओं का विश्वकोश है। यह और कुछ नहीं बस बहुत सारे डिजिटल पन्नों की पुस्तक है। जिसके हर पेज को किसी न किसी व्यक्ति द्वारा द्वारा लिखा जाता है।

इंटरनेट की पहुंच दुनिया के अधिसंख्य लोगों तक हो चुकी है। जिनकी लिखी या कही बात एक से दूसरे के पास होते हुये लोगों तक पहुंच जाती है। अब यह लिखी या कही बात कितनी विश्वसनीय है यह उस सूचना के मूल लेखक या कहने वाले की विश्वसनीयता पर निर्भर करता है।

बिलकुल कागज की पुस्तकों की तरह ही इंटरनेट के लेखक की विश्वसनीयता ही उसकी पुस्तक को विश्वसनीय बनाती है। इसलिये जहां सभी लोगों की बातें सच हों यह जरूरी नहीं। वहीं सभी गलत हों यह कहना भी उचित नहीं है।

दुनिया के लोगों तक पहुंचना एक अलग बात है, और उन्हें सही से जानना बिल्कुल अलग विषय है। वास्तविक जीवन में हम प्रत्यक्ष रूप से किसी को देखकर उसके विषय में अन्य लोगों से पूछकर या अन्य व्यवहार आदि से उसके बारे में अपनी धारणा या राय बनाते हैं। हमारी धारणा का सही होना भी हमारे जानकारी के स्रोतों व तथ्यों की विश्वसनीयता पर निर्भर है।

ठीक यही तथ्य इंटरनेट के साथ है। जो कि सूचनाओं का बढ़ता हुआ भंड़ार होने के सिवाय और कुछ नहीं। इसे नकारना दुनिया से कट जाना तथा ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेने से धोखा होने की संभावना बन जाती है। इंटरनेट पर भी प्राप्त होने वाली किसी भी सूचना का अन्य अनेक उपलब्ध स्रोतों से सत्यापन करके ही स्वीकार करना एकमात्र रास्ता है।

सामान्य जीवन में भी हमें बहुत से लोग मिल जाते हैं जो बात की भूमिका बनाने के लिये फुसफुसाते हुये कुछ इस तरह कहते हैं, “अरे तुम्हें पता नहीं है”, “तुम्हें विश्वास नहीं होगा”, “आश्चर्य जनक बात है” या ” आप चौंक जायेंगे”। इसके बाद कुछ ऐसा रहस्योद्घाटन ” आज आसमान में चार पैरों वाला आदमी उड़कर जाते देखा गया”।

इसी प्रकार की बेसिर-पैर की अनर्गल चीजें तथ्य के नाम पर इंटरनेट पर धड़ल्ले से फैलायी जाती हैं। प्रत्यक्ष या आमने-सामने आंख में आंख डालकर जो बेकार बातें, फुसफुसाकर या बहुत गुपचुप तरीके से पेश की जाती हैं। फैलाने वालों को उनका प्रतिरोध होने का डर भी होता है। इसलिये व्यक्ति से व्यक्ति तक सीधे गलत चीजों का प्रचार कम हो पाता है। वहीं इंटरनेट पर प्रत्यक्ष विरोध का डर न होने से कहने वाले धडल्ले से अपनी बातें प्रस्तुत कर देते हैं। जो बहुत तेजी से विश्वभर में प्रचारित होकर सच लगने लगती है।

बस यही अंतर असल में व इंंटरनेट पर कहे तथ्यों में होता है। जिनका सच जानने के लिये भी अपनी बुद्धि, विवेक का प्रयोग करके निर्णय करना या धारणा बनाना उचित होता है।

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