भाषा और बोली में अंतर – बोली और मानक भाषा में अंतर

भाषा और बोली में सामान्य अंतर : भाषा एक बड़े भूभाग पर बोली और समझी जाती हैं , इसके साथ किसी बड़े महाकाव्य की रचना भी हुई होती हैं। जैसे अवधी रचना – रामचरितमानस। बल्कि, बोली एक छोटे भूभाग पर बोली जाती है और छोटे – छोटे लोक कथाओं की रचना होती है। जैसे: भोजपुरी रचना- कोई भी लोककथा।

  • भाषा में मानक व्याकरण होता है किंतु बोली का व्याकरण लचीला होता है।
  • भाषा की लिपि होती है किंतु बोली की कोई अपनी लिपि नहीं होती।
  • भाषा विस्तृत होती है किंतु बोली क्षेत्रीय होती है।
  • भाषा का एक विकसित व्याकरण होता है किंतु बोली नियमों की मोहताज नहीं होती।
  • सामान्य तौर पर अधिकतर लोगों की मातृभाषा बोली होती है भाषा नहीं।

भाषा

भाषा वह साधन है जिससे हमारे विचार व्यक्त होते हैं और हम इसके लिए ध्वनियों का उपयोग करते हैं। इस तरह से भाषा शब्दों और वाक्यों का ऐसा समूह है, जिससे मन की बात बताई जाती है। भाषा एक राष्ट्रीय समाज की प्रतिनिधि होती है। भाषा का उपयोग समाज में साहित्यिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक, सामाजिक, और प्रशासनिक आदि सभी औपचारिक कार्यों में किया जाता है। हिंदी खड़ी बोली का रूप है। 700 वर्ष तक हिंदी बोली के रूप में प्रचलित रही थी। भाषा का व्याकरण मानिक रूप से मान्यता से प्राप्त है।

Bhasha
Bhasha

बोली

बोली भाषा का सबसे छोटा स्वरूप होता है और सीमित होता है। यह आमतौर पर व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है और इसका प्रयोग भी आधारित होता है। बोलियों के समूह ही उपबोली बनती है। उपबोली के समूह से ही बोली बनाई जाती है। भाषा का विकास बोलियों द्वारा ही होता है। बोलियों के व्याकरण का मानकीकरण होता है और बोली लिखने या बोलने वाले से ठीक से अनुसरण करते हैं और व्यवहार करते हैं। बोली भी सक्षम हो जाती है कि, लिखित साहित्य का रूप धारण कर सके और उसे भाषा का स्तर प्राप्त हो जाता है।

भाषा और बोली में अंतर

भाषा और बोली में सामान्य प्रकार के अंतर निम्नलिखित हैं:-

  • भाषा में व्याकरण होता है किंतु बोली में नहीं होता।
  • भाषा की लिपि होती है किंतु बोली कि नहीं होती।
  • भाषा विस्तृत होती है किंतु बोली क्षेत्रीय होती है।
  • भाषा नियमों की मोहताज होती है किंतु बोली नहीं होती।
  • सामान्य तौर पर मात्र भाषा बोली होती है भाषा नहीं
  • भाषा में साहित्य प्रचुर मात्रा में होता है जबकि बोली में साहित्य का अभाव होता है।
  • भाषा का प्रयोग प्रशासनिक कार्य में होता है जबकि बोली का उपयोग आम बोलचाल में किया जाता है।
  • भाषा का विकास विभिन्न प्रकार की बोलियों से होता है, परंतु बोली का विकास स्वतंत्र रूप से होता है।
  • भाषा को मान्यता प्राप्त होती हैं जबकि बोली को किसी भी प्रकार की मान्यता की आवश्यकता नहीं होती।
  • भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया जा सकता है परंतु बोली को राजभाषा का दर्जा नहीं मिलता है।

प्रत्येक देश में भाषा के तीन मुख्य रूप देखने को मिलते हैं- बोलियाँ, परिनिष्ठित भाषा तथा राष्ट्रभाषा

बोली: भाषा के जिन रूप का प्रयोग साधारण जनता अपने समूह या घरों में करती है उसे बोली कहते हैं। भारत का उदाहरण लें तो यहाँ तकरीबन ६५० बोलियाँ बोली जाती हैं जो देश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित हैं।
बोलियों में-

  • पूर्वी हिन्दी– अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी ।
  • बिहारी बोली– भोजपुरी, मगही, मैथिली तथा अगिया‌।
  • पश्चिमी क्षेत्रों में– ब्रज, बांगर, खड़ी बोली, कन्नौजी आदि बोलियाँ बोली जाती हैं।
  • राजस्थानी बोलियों में– मारवाड़ी, मेवाती आदि प्रचलित हैं।

परिनिष्ठित भाषा: किसी भाषा को जब व्याकरण से परिष्कृत किया जाता है तो वह एक परिनिष्ठित भाषा कहलाती है। जैसे आज हमारी खड़ी हिन्दी भाषा सौ साल पहले एक बोली ही थी किन्तु आज परिनिष्ठित भाषा है।

राष्ट्रभाषा: किसी भी देश में जब परिनिष्ठित भाषा देश की बहुसंख्यक जनता द्वारा व्यापक रूप में प्रयोग मे लायी जाती है तो वह राष्ट्रभाषा बन जाती है जिसमें राजनीतिक एवं सामाजिक शक्तियाँ एक परिनिष्ठित भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने में सहायक होती है।

बोली और मानक भाषा में अंतर

बोली और मानक भाषा में सामान्य प्रकार के अंतर निम्नलिखित हैं:-

  • बोली शुद्ध नहीं होती है जबकि मानक भाषा व्याकरणिक रूप से शुद्ध मानी जाती है।
  • बोली की कोई लिपि नहीं होती जबकि मानक भाषा की एक निश्चित लिपि होती है।
  • बोली का प्रयोग मुख्य रूप केवल एक समाज या क्षेत्र के लोग करते हैं, परंतु मानक भाषा का प्रयोग हर कोई कर सकता है।
  • बोली का उपयोग शैक्षिक, व्यापारिक और आधिकारिक रूप में नहीं होता है, जबकि मानक भाषा का प्रयोग इन कार्यों में किया जाता है।
  • बोली का स्वरूप एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में बदल जाता है, जबकि मानक भाषा का स्वरूप हर जगह समान रहता है।
  • बोली केवल मौखिक रूप में होती है, जबकि मानक भाषा का नियमबद्ध व्याकरण होता है।
  • बोली को आम बोलचाल में शुद्धता या अशुद्धता की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि मानक भाषा में बोलचाल के लिए शुद्धता एवं अशुद्धता का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।

भाषा की विशेषताएं

  1. भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है अपितु अर्जित संपत्ति है। भाषा सीखी जाती है। यह धन की तरह माता-पिता से अनायास प्राप्त नहीं होती है।
  2. भाषा आरम्भ से लेकर अंत तक सामाजिक वस्तु है। भाषा की उत्पत्ति, उसका प्रयोग और उसका अर्जन सब कुछ समाज में ही होता है।
  3. भाषा का अर्चन अनुकरण द्वारा होता है।
  4. भाषा चिरपरिवर्तनशील है। भाषा शारीरिक, मानसिक, भौतिक कई कारणों से सतत् बदलती रहती है।
  5. भाषा का कोई अंतिम स्वरूप नहीं होता, क्योंकि यह हमेशा परिवर्तनशील है।
  6. भाषा का विकास कठिनता से सरलता की ओर होता है।
  7. भाषा स्थूलता से सूक्ष्मता और अप्रौढ़ता से प्रौढ़ता की ओर जाती है।

लिपि (स्क्रिप्ट)

मौखिक भाषा की ध्वनियों को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिए जो चिन्ह अपनाए जाते हैं, उन्हें लिपि कहते हैं।

विश्व की भिन्न-भिन्न भाषाओं की भिन्न भिन्न लिपि होती है।

लिपि भाषा की आवश्यकता है। लिपि की सहायता से ही लिखित भाषा स्वरूप पाती है। लिखित भाषा के माध्यम से मनुष्य अपने ज्ञान एवं अनुभव के भंडार को भविष्य के लिए सुरक्षित रख सकता है। वह अपनी उपलब्धियों को आने वाली पीढ़ियों के लिए उपयोगी बना सकता है।

इससे भी अधिक दूर-दराज क्षेत्रों तक प्रचार- प्रसार के लिए एवं वैचारिक एकता के लिए लिखित भाषा ही काम आती है।

लिखित रूप भाषा को स्थिरता एवं मानकता प्रदान करता है।

बोली भाषा का घरेलू रूप है। इसका क्षेत्र अत्यत सीमित होता है। पांँच – सात मील की दूरी पर बोली में हल्का सा अन्तर आ जाता है। इसमें साहित्य रचना नहीं होती अथवा अत्यंत अल्प मात्रा में होती है। एक छोटे क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा स्थानीय रूप में बोली कहलाती है।

हिन्दी के रूप तथा बोलियाँ

हिन्दी का तात्पर्य केवल खड़ी बोली ही नहीं होता। यह तो हिन्दी का एक रूप है। ब्रज, अवधी, मैथिली, भोजपुरी आदि सब हिन्दी के ही विविध रूप हैं। इनमें रचा सभी साहित्य हिन्दी साहित्य की ही निधि है।

बोली को उपभाषा भी कह सकते हैं। हलांकि इस पर मतैक्य नहीं है।

हिन्दी की पाँच उपभाषाएँ हैं-

  • पश्चिमी हिन्दी
  • पूर्वी हिन्दी
  • राजस्थानी
  • पहाड़ी
  • बिहारी

हिन्दी की बोलियों को मुख्यतः निम्नलिखित वर्गों में रखा गया है-

पहाड़ी हिन्दी:

  • कुल्लई ,गढ़वाली, कुमाऊँनी, मंडियाली —ये बोलियाँ उत्तराखण्ड और हिमांचल प्रदेश में बोली जाती हैं।

पश्चिमी हिन्दी:

  • खड़ी बोली, ब्रज, हरियाणवी (बांगरू) , बुन्देली, कन्नौजी आदि। ये मेरठ ,दिल्ली ,सहारनपुर, आगरा, बुन्देलखण्ड, हरियाणा ,कन्नौज ,मथुरा आदि में बोली जाती हैं।

पूर्वी हिन्दी:

  • अवधी ,बघेली, छत्तीसगढ़ी आदि। ये लखनऊ, फैजाबाद ,रीवा ,रायपुर आदि स्थानों पर बोली जाती है ।

बिहारी हिन्दी:

  • भोजपुरी ,मैथिली ,मगधी आदि। ये गया, दरभंगा, बलिया आदि क्षेत्रों में बोली जाती हैं।

राजस्थानी हिन्दी:

  • मेवाती, मारवाड़ी ,निमाड़ी ,भीली, जयपुरी, हाड़ौती आदि। ये जयपुर, जोधपुर, बीकानेर ,खंडवा आदि स्थानों पर बोली जाती हैं।

👉भाषा और बोली में अन्तर👇

भाषा और बोली में विभाजक रेखा खींचना बहुत कठिन कार्य है। वस्तुतः यह केवल नाम हैं, जो कि शास्त्रीय विवेचन के लिए आवश्यक हैं। इससे स्पष्ट है कि भाषा और बोली व्यवहारिक रूप में अधिक सैद्धान्तिक नाम है।

जब बोली किन्ही कारणों से प्रमुखता प्राप्त कर लेती है तो वह भाषा कही जा सकती है। इसलिए भाषा और बोली में अन्तर नहीं..अन्तर केवल उनके यात्रा का है।

एक कलिका कब पुष्प का रूप धारण कर ले..और कब एक शिशु युवा होकर सशक्त हो जाए …यह कहना बड़ा ही कठिन कार्य है।

बोली और भाषा के लिए भी उपर्युक्त विचार उपयुक्त होगा क्योंकि कोई भी बोली के विकसित होकर भाषा बन जाने की प्रबल सम्भावना हो सकती है।

संबन्धित अन्तर

You May Also Like

Ekarthak Shabd

एकार्थक शब्द (Ekarthak Shabd in Hindi): परिभाषा और उदाहरण, हिन्दी व्याकरण

Sambandhbodhak Avyay - Sambandh Bodhak in Hindi

संबंधबोधक अव्यय (Sambandhbodhak Avyay): परिभाषा, भेद और उदाहरण, Hindi

Nipat Avdharak - Hindi Vyakaran

निपात-अवधारक (Nipat-Avdharak): परिभाषा, भेद और उदाहरण, हिन्दी व्याकरण

Anek Shabd Ke Liye Ek Shabd

अनेक शब्दों के लिए एक शब्द (Anek Shabd Ke Liye Ek Shabd), हिंदी व्याकरण