भारत का संविधान (Indian Constitution) – भारतीय संविधान

भारत का संविधान (Indian Constitution) - Bharat Ka Samvidhan
Indian Constitution

भारत का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ। इसका निर्माण संविधान सभा द्वारा हुआ जोकि जुलाई, 1946 में केबिनेट मिशन योजना के अन्तर्गत गठित की गई थी।

संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर थे। भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया

गया।

भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद22 अध्याय एवं 12 अनुसूचियाँ हैं। 42वें संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में समाजवादीपंथनिरपेक्ष तथा अखण्डता शब्द बढ़ाए गये । प्रस्तावना संविधान का अंग है। प्रस्तावना के अनुसार भारत “सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य” है।

52वें संशोधन द्वारा दल-बदल पर रोक लगाने की व्यवस्था की गई। 61वें संशोधन द्वारा लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओ क सदस्य को चुनने के लिए मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई। जम्मू एवं कश्मीर को अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत विशेष दर्जा प्राप्त हुआ था।

भारतीय संविधान की मुख्य स्रोतों में ब्रिटिश राजनीतिक व्यवस्था, अमरीका, आयरलैण्ड, आस्टेलिया, जापान के संविधान एवं भारतीय शासन अधिनियम 1935 प्रमुख हैं।

भारतीय संविधान की विशेषताएँ

  • विश्व का सबसे लम्बा संविधान
  • लिखित व निर्मित संविधान
  • लोकतान्त्रिक गणराज्य, का संघात्मक सरकार परन्तु एकात्मक सरकार की ओर झुकाव
  • संसदीय सरकार
  • मौलिक अधिकार और कर्तव्य
  • नीति निर्देशक तत्व
  • स्वतन्त्र व एकीकृत न्यायपालिका
  • कुछ लचीला और अधिकांशतः कठोर संविधान
  • वयस्क मताधिकार
  • एक संविधान एक नागरिकता
  • हिन्दी राज्य भाषा

मूल अधिकार (मौलिक अधिकार)

मूल अधिकारों का वर्णन संविधान के तृतीय भाग में किया गया है। अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक 6 मौलिक अधिकारों एवं उनके उल्लंघन पर उपचारों का वर्णन है। यह अधिकार पूर्ण नहीं है। इनको उचित प्रतिबन्धों से प्रतिबन्धित किया जा सकता है। कुछ अधिकार केवल भारतीय नागरिको को प्राप्त है, जबकि अन्य नागरिक एवं गैर-नागरिक दोनों को उपलब्ध हैं। यह अधिकार न्यायालय द्वारा सुरक्षित है। इन अधिकारों के उल्लंघन की सूरत में व्यक्ति अनच्छेद 32 के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत उच्च न्यायालयों की शरण में जा सकता है। मौलिक अधिकार निम्नलिखित हैं-

  1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-अनुच्छेद 18)
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-अनुच्छेद 22)
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-अनुच्छेद 24)
  4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-अनुच्छेद 28) |
  5. सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (अनुच्छेद 29-अनुच्छेद 30) ।
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32-अनुच्छेद 36)

सम्पत्ति का अधिकार भी अनुच्छेद 31 के अन्तर्गत मूल अधिकार था, परन्तु 44वें संविधान संशोधन द्वारा केवल एक विधिक अधिकार बना दिया गया है।

नीति निर्देशक तत्व

राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का वर्णन अनुच्छेद 36 से अनुच्छेद 61 (भाग iv) में किया गया है। यह 19 उद्देश्यों को प्रतिबिम्बित करते हैं। जिनको राज्य प्राप्त करने का प्रयास करेगा। यह न्यायालयों द्वारा लागू नहीं करवाये जा सकते। ये सिद्धान्त केवल शासन के विभिन्न अंगों का मार्ग-दर्शन करते है ताकि सभी को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय मिल सके।

मूल कर्त्तव्य

मूल कर्त्तव्य संविधान में 42वें संशोधन(1976) द्वारा केवल भारतीय नागरिकों के लिए जोड़े गये हैं। इनका वर्णन संविधान के भाग (IV क) में किया गया है। इनकी संख्या 11 है।

  1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों,संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र्गान का आदर करे।
  2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखे व उनका पालन करे।
  3. भारत की प्रभुता एकता व अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें।
  4. देश की रक्षा करें और आवाह्न किए जाने पर राष्ट् की सेवा करें।
  5. भारत के सभी लोग समरसता और सम्मान एवं भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग के भेदभाव पर आधारित न हों, उन सभी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हों।
  6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील,नदी वन्य प्राणी आदि आते हैं की रक्षा व संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवतावाद व ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें ।
  9. सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें व हिंसा से दूर रहें।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों सतत उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति करते हुए प्रयात्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
  11. यदि आप माता-पिता या संरक्षक हैं तो छह वर्ष से चौदह वर्ष आयु वाले अपने या प्रतिपाल्य (यथास्थिति) बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।(इसे 86वें संविधान संशोधन,2002 द्वारा जोडा गया)

अभी तक इन कर्तव्यों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त नहीं है और इनका पालन न करने पर दण्ड की व्यवस्था नहीं है।

राष्ट्रपति

राष्ट्रपति भारत की कार्यपालिका का अध्यक्ष होता है। 35 वर्ष या इससे अधिक आयु का भारतीय नागरिक जो लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो और किसी लाभ के पद पर न हो, इस पद का प्रत्याशी हो सकता है।

राष्ट्रपति का निर्वाचन

निर्वाचन संसद के दोनों सदनों एवं राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा एकल संक्रमणीय गुप्त मतदान प्रणाली द्वारा होता है। राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का है और पुनः चुने जाने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।

राष्ट्रपति अपना त्याग-पत्र उप-राष्ट्रपति को देता है। राष्ट्रपति को केवल महाभियोग द्वारा ही उसके पद से हटाया जा सकता है।

राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् के द्वारा दी जाने वाली सलाह को एक बार मानने से इन्कार कर सकता है, परन्तु यदि वह सलाह पुनः राष्ट्रपति को दी जाये तो वह उसे मानने को बाध्य है। इसी प्रकार से राष्ट्रपति संसद के द्वारा पारित विशेष पर एक बार हस्ताक्षर करने से इन्कार कर सकता है परन्तु यदि वही विधेयक साधारण बहुमत से पुनः पारित होकर राष्ट्रपति के पास आता है, तो उसे उस पर हस्ताक्षर करने ही होते है।

राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति एवं अन्य का वेतन

पद वेतन (रुपए और डॉलर में) allowances
President ₹500,000 (US$7,000) + Other allowances fixed to President of India.
Vice-President ₹400,000 (US$5,600) + Other allowances fixed to Vice President of India
Prime Minister ₹160,000 (US$2,200) (salary received as a Member of Parliament in Lok Sabha or Rajya Sabha) + allowances as a Member of Parliament + Other allowances for the Prime Minister of India.
Governors of States ₹350,000 (US$4,900)[6] + Other allowances fixed for Governors of States.
Chief Justice of India ₹280,000 (US$3,900) + Other allowances fixed for Chief Justice of India.
Judges of Supreme Court of India ₹250,000 (US$3,500) + Other allowances fixed for SC Judges.
Chief Election Commissioner of India ₹250,000 (US$3,500) + Other allowances.
Comptroller and Auditor General of India ₹250,000 (US$3,500) + Other allowances.
Chairman of Union Public Service Commission ₹250,000 (US$3,500) + Other allowances.
Cabinet Secretary of India ₹250,000 (US$3,500) + Other allowances. Senior-most civil servant in Government of India.
Lieutenants Governor of Union Territories ₹110,000 (US$1,500) + Other allowances fixed by the Union Government.

उप-राष्ट्रपति

उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों द्वारा एकल संक्रमणीय प्रणाली से होता है। 35 वर्ष या इससे अधिक आयु का भारतीय नागरिक, जो राज्यसभा का सदस्य बनने का योग्यता रखता हो और किसी लाभ के पद पर न हो, इस पद का प्रत्याशी हो सकता है। कार्यकाल 5 वर्ष है। राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष होता है।

वह समय पड़ने पर अधिकतम 6 माह तक कार्यवाहक राष्ट्रपति का कार्यभार भी देख सकता है। कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में उसे राष्ट्रपति का वेतन एवं सुविधायें प्राप्त होती है और वह राज्यसभा के अधिवेशनों की अध्यक्षता नहीं करता है।

मन्त्रिपरिषद्

मन्त्रिपरिषद् का प्रधानप्रधानमन्त्री होता है, राष्ट्रपति को उसके कार्यों के सम्पादन में सहायता एवं परामर्श देने के लिए होती है। प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है। अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमन्त्री के परामर्श से की जाती है।

साधारणतः उसी व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया जाता है जिसको लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त हो परन्तु राज्यसभा के सदस्य को भी, और यहाँ तक कि किसी ऐसे व्यक्ति को भी प्रधानमन्त्री नियुक्त किया जा सकता है जो किसी भी सदन का सदस्य न हो, परन्तु ऐसी स्थिति में उसे 6 माह के भीतर संसद की सदस्यता ग्रहण करनी अनिवार्य होती है।

प्रधानमन्त्री नये प्रधानमन्त्री के कार्य ग्रहण करने के समय तक अपने पद पर रहता है। प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त अपने पद पर बना रह सकता है, परन्तु वास्तव में यह तब तक अपने पद पर रहता है जब तक उसे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है।

राष्ट्रपति को प्रधानमन्त्री से संवैधानिक तौर पर समस्त जानकारी मांगने का अधिकार है। संसदात्मक लोकतन्त्र का शासनाध्यक्ष होने के नाते प्रधानमन्त्री आन्तरिक एवं वैदेशिक मामलों में केन्द्रीय भूमिका निभाता है।

भारतीय संसद

भारतीय संसद का निर्माण ‘राष्ट्रपति‘ तथा दोनों सदनों ‘लोकसभा‘ एवं ‘राज्यसभा‘ से मिलकर होता है।

राज्यसभा

राज्यसभा में अधिकतम सदस्यों की संख्या 250 हो सकती है, जिसमें से 238 सदस्य राज्य एवं केन्द्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं द्वारा एकल संक्रमणीय प्रणाली द्वारा निर्वाचित किये जाते है तथा अन्य 12 सदस्यों को राष्ट्रपति कला, साहित्य, विज्ञान और सामाजिक सेवा के क्षेत्रों से मनोनीत करता है।

राज्यसभा में प्रत्येक राज्य का प्रतिनिधित्व उसकी जनसंख्या पर आधारित होता है। राज्यसभा एक स्थायी सदन है। यह कभी भंग नहीं किया जा सकता है। इसके 1/3 सदस्य प्रति दो वर्ष बाद अवकाश ग्रहण करते हैं व इतने ही सदस्य चुने जाते हैं। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।

राज्यसभा में निर्वाचित होने के लिए भारतीय नागरिक को कम से कम 30 वर्ष की आयु का होना चाहिए। उसे कोई लाभ का पद भी ग्रहण किये हुए नहीं होना चाहिए तथा पागल या दिवालिया भी नहीं होना चाहिए। वर्तमान में राज्यसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या 232 है।

लोकसभा

लोकसभा में 545 से अधिक प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्य नहीं हो सकते। इसके अतिरिक्त 2 आग्ल-भारतीयों को राष्ट्रपति नामजद (मनोनीत) कर सकता है। लोकसभा में निर्वाचित होने के लिए भारतीय नागरिक की आयु कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए। उसे कोई लाभ का पद ग्रहण किये हुए नहीं होना चाहिए तथा पागल अथवा दिवालिया नहीं होना चाहिए।

लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, परन्तु यह इससे पूर्व भी राष्ट्रपति द्वारा भंग की जा सकती है।

अन्य विधेयकों से अलग, वित्त विधेयक केवल लोकसभा में ही रखे जा सकते हैं। इसका अधिवेशन 6 माह में एक बार होना अनिवार्य है।

लोकसभा एवं राज्यसभा के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष करता है।

  • लोकसभा में कुल सीटें: 543
  • राज्यसभा में कुल सीटें: 233

इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति द्वारा 12 व्यक्ति राज्यसभा तथा 2 व्यक्ति लोकसभा के लिए नामांकित (मनोनीत) किए जा सकते हैं।

लोकसभा और राज्यसभा में राज्यवार सीटें

# राज्य राजधानी लोकसभा राज्यसभा
1. आंध्र प्रदेश हैदराबाद,अमरावती 25 11
2. अरुणाचल प्रदेश ईटानगर 2 1
3. असम दिसपुर 14 7
4. बिहार पटना 40 16
5. छत्तीसगढ़ रायपुर 11 5
6. गोवा पणजी 2 1
7. गुजरात गाँधीनगर 26 11
8. हरियाणा चण्डीगढ़ 10 5
9. हिमाचल प्रदेश शिमला 4 3
10. जम्मू और कश्मीर श्रीनगर (ग्रीष्म) जम्मू (शीत) 6 4
11. झारखंड राँची 14 6
12. कर्नाटक बंगलौर 28 12
13. केरल तिरुवनन्तपुरम 20 9
14. मध्य प्रदेश भोपाल 29 11
15. महाराष्ट्र मुम्बई 48 19
16. मणिपुर इम्फाल 2 1
17. मेघालय शिलांग 2 1
18. मिजोरम आइज़ोल 1 1
19. नागालैंड कोहिमा 1 1
20. उड़ीसा भुवनेश्वर 21 10
21. पंजाब चण्डीगढ़ 13 7
22. राजस्थान जयपुर 25 10
23. सिक्किम गान्तोक 1 1
24. तमिलनाडु चेन्नई 39 18
25. तेलंगाना हैदराबाद 20 7
26. त्रिपुरा अगरतला 2 1
27. उत्तर प्रदेश लखनऊ 80 31
28. उत्तराखंड देहरादून 5 3
29. पश्चिम बंगाल कोलकाता 42 16
# केन्द्र शासित प्रदेश राजधानी लोकसभा राज्यसभा
1. अंडमान और निकोबार पोर्ट ब्लेयर 1
2. चंडीगढ़ चण्डीगढ़ 1
3. दादरा और नागर हवेली सिलवास 1
4. दमन और दीव दमन 1
5. दिल्ली नई दिल्ली 7 3
6. लक्षद्वीप कवरत्ती 1
7. पुडुचेरी पॉन्डिचेरी 1 1

सर्वोच्च न्यायालय

मूल रूप से, सर्वोच्च न्यायालय में आठ न्यायाधीश (एक मुख्य न्यायाधीश और सात अन्य) थे। संसद ने समय के साथ न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि की है। सर्वोच्च न्यायालय में 2008 से पहले एक मुख्य न्यायाधीश और 25 अन्य न्यायाधीश थे। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय पर बढ़ते मामले के बोझ को देखते हुए केन्द्र सरकार ने वर्ष 2008 में 5 अन्य न्यायाधीशों को बढ़ाने का फैसला किया। इस प्रकार वर्ष 2008 में सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 31 हो गई थी।

वर्ष 2023 में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय में हाल ही में दो नए न्यायाधीशों, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन को शपथ दिलाई गई।

  • वर्तमान में यानिकी 2023 में सर्वोच्च न्यायालय में अधिकतम न्यायाधीशों की संख्या 34 (एक मुख्य न्यायाधीश और 33 अन्य) है।

मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति

मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है तथा उसकी मन्त्रणा से अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। भारतीय नागरिक यदि 5 वर्ष तक किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो या उच्च न्यायालय में 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो या राष्टपति की राय में एक पारंगत विधिवेत्ता हो, इस पद के योग्य है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक है। “सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश केवल महाभियोग की प्रकिया से ही पद से हटाया जा सकता है।” संवैधानिक पीठ में कम से कम 5 न्यायाधीशों का होना अनिवार्य है।

उच्च न्यायालय

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व सम्बन्धित राज्य के राज्यपाल के परामर्श से करता है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति सम्बन्धित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राष्ट्रपति करता है।

कोई भारतीय नागरिक जो कम से कम 10 वर्ष तक कोई न्यायिक पद ग्रहण कर चुका हो या कम से कम 10 वर्ष तक उच्च न्यायालय में अधिवक्ता रह चुका हो या राष्ट्रपति की राय में एक पारंगत विधिवेत्ता हो, इस पद के योग्य है।

उच्च न्यायालय के कार्यकाल 62 वर्ष की आयु तक है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी केवल महाभियोग द्वारा अपने पद से हटाये जा सकते हैं। प्रत्येक राज्य में उच्च न्यायालय का होना आवश्यक नहीं है। किसी न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या राष्ट्रपति समय-समय पर निर्धारित करता है।

राज्यपाल

राज्यपाल की नियक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है। कोई भी राज्यपाल भारतीय नागरिक जिसकी आयु कम से कम 35 वर्ष की हो, इस पद के लिए योग्य है। कार्यकाल 5 वर्ष होता है, परन्तु वह केवल राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त ही अपने पद पर रह सकता है।

महान्यायवादी

महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है और वह उसी के प्रति उत्तरदायी होता है। वह सरकार को न्यायिक मामलों में कानूनी राय देता है। महान्यायवादी को संसद व संसदीय समितियों के अधिवेशन में भाग लेने का अधिकार है, परन्तु उसे वोट डालने का अधिकार नहीं है।

नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक

नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है और केवल सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया से ही उसे अपने पद से हटाया जा सकता है। वह केन्द्र तथा राज्य सरकारों की आय-व्यय का हिसाब रखता है। सरकार के खातों का निरीक्षण भी करता है।

नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है। वह अपने पद से त्याग-पत्र राष्ट्रपति को अपनी हस्तलिपि में देता है। उसका वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है। एक बार सेवा मुक्त होने पर वह केन्द्र या राज्य सरकार के किसी भी पद पर कार्य नहीं कर सकता है।

निर्वाचन आयोग

निर्वाचन आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति 5 वर्ष के लिए करता है। इसका अध्यक्ष मुख्य निर्वाचन आयुक्त कहलाता है। अन्य निर्वाचन आयुक्तो की नियुक्ति राष्ट्रपति उसी की सलाह पर करता है। इसकी सेवा की शर्ते राष्ट्रपति नियमो द्वारा निर्धारित करता है।

मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा शर्तों को उसके कार्यकाल में उसके हित में नहीं बदला जाता है। उसको उसके पद से केवल सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की भाँति ‘प्रमाणित आचार‘ और अयोग्यता के आधार पर पारित महाभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है।

राष्ट्रपतिउप-राष्ट्रपतिसंसद विधानसभाओं एवं विधानपरिषदों के चुनाव का संचालन निर्वाचन आयोग करता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *