हिन्दी व्याकरण क्या है ? – What is Hindi Grammar?

Hindi Grammar (हिन्दी व्याकरण): हिन्दी व्याकरण हिंदी भाषा को शुद्ध रूप में लिखने और बोलने संबंधी नियमों का बोध करानेवाला शास्त्र है। यह हिंदी भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
इसमें हिंदी के सभी स्वरूपों का चार खंडों के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है; यथा- वर्ण विचार के अंतर्गत ध्वनि और वर्ण तथा शब्द विचार के अंतर्गत शब्द के विविध पक्षों संबंधी नियमों और वाक्य विचार के अंतर्गत वाक्य संबंधी विभिन्न स्थितियों एवं छंद विचार में साहित्यिक रचनाओं के शिल्पगत पक्षों पर विचार किया गया है।
Hindi Vyakaran (हिंदी व्याकरण – Hindi Grammar PDF)
आधुनिक मानक हिंदी, हिंदुस्तान भाषा का मानकीकृत और सुसंस्कृत पाठ है। अंग्रेजी भाषा के साथ, देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भारत की आधिकारिक भाषा है। यह भारत गणराज्य की 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है।
हिन्दी भाषा (Hindi Language): इतिहास और उत्पत्ति
हिन्दी जिसके मानकीकृत रूप को मानक हिंदी कहा जाता है, विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की एक राजभाषा है। केन्द्रीय स्तर पर भारत में दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेज़ी है। यह हिंदुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक है और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। विस्तार से जानें – हिन्दी भाषा।
वर्ण (Sound) या हिंदी वर्णमाला – हिन्दी व्याकरण
वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते। जैसे- अ, ई, व, च, क, ख् इत्यादि। वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है, इसके और खंड नहीं किये जा सकते। विस्तार से जानें – वर्ण (Sound) या हिंदी वर्णमाला।
शब्द (Word) – उत्पत्ति और प्रकार हिंदी व्याकरण
एक या एक से अधिक वर्ण से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ईकाई ही’शब्द’कहलाते है। जैसे- एक वर्ण से निर्मित शब्द- न (नहीं) व (और) अनेक वर्णों से निर्मित शब्द-कुत्ता, शेर, कमल, नयन, प्रासाद, सर्वव्यापी, परमात्मा आदि भारतीय संस्कृति में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। एक से ज़्यादा शब्द मिलकर पद बनते है और पद मिलकर वाक्य बनते हैं।
पद (Phrases) – सार्थक शब्द हिन्दी व्याकरण
वाक्य में प्रयुक्त शब्द को पद कहा जाता है वाक्य में प्रयुक्त शब्दों में संज्ञा , सर्वनाम , विशेषण , क्रिया विशेषण , संबंधबोधक आदि अनेक शब्द होते हैं। पद परिचय में यह बताना होता है कि इस वाक्य में व्याकरण की दृष्टि से क्या-क्या प्रयोग हुआ है।
वाक्य (Sentence) – सार्थक वाक्य हिंदी व्याकरण
दो या दो से अधिक शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं। उदाहरण के लिए ‘सत्य से विजय होती है।’ एक वाक्य है क्योंकि इसका पूरा पूरा अर्थ निकलता है किंतु ‘सत्य विजय होती।’ वाक्य नहीं है क्योंकि इसका अर्थ नहीं निकलता है तथा वाक्य होने के लिए इसका अर्थ निकलना चाहिए। जैसे:- विद्या धन के समान हैं ।
विराम चिन्ह हिन्दी व्याकरण
विराम चिन्ह का अर्थ है ठहराव, विश्राम, रुकना। अथार्त वाक्य लिखते समय विराम को प्रकट करने के लिए लगाये जाने वाले चिन्ह को ही विराम चिन्ह कहते हैं। अर्थात अपने भावों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए या एक विचार और उसके प्रसंगों को प्रकट करने के लिए हम रुकते हैं। इसी को विराम कहते है।
संज्ञा (Noun) हिंदी व्याकरण
किसी जाति, द्रव्य, गुण, भाव, व्यक्ति, स्थान और क्रिया आदि के नाम को संज्ञा कहते हैं। जैसे – पशु (जाति), सुंदरता (गुण), व्यथा (भाव), मोहन (व्यक्ति), दिल्ली (स्थान), मारना (क्रिया)। विस्तार से पढ़ें – संज्ञा।
सर्वनाम (Pronoun) – हिन्दी व्याकरण
संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की विशेषता (गुण, दोष, संख्या, परिमाण आदि) बताने वाले शब्द हिंदी व्याकरण में विशेषण कहलाते हैं। जैसे – बड़ा, काला, लंबा, दयालु, भारी, सुन्दर, कायर, टेढ़ा-मेढ़ा, एक, दो आदि।
क्रिया – हिंदी व्याकरण
जिस शब्द अथवा शब्द-समूह के द्वारा किसी कार्य के होने अथवा किये जाने का बोध हो हिंदी व्याकरण में उसे क्रिया कहते हैं। जैसे- सीता ‘नाच रही है’।
क्रिया विशेषण – हिन्दी व्याकरण
जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता का पता चलता है हिंदी व्याकरण में उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे – वह धीरे-धीरे चलता है। इस वाक्य में चलता क्रिया है और धीरे-धीरे उसकी विशेषता।
समुच्चय बोधक – हिंदी व्याकरण
जिन शब्दों की वजह से दो या दो से ज्यादा वाक्य , शब्द , या वाक्यांश जुड़ते हैं उन्हें समुच्चयबोधक कहा जाता है। हिंदी व्याकरण में जहाँ पर “तब, और, वरना, किन्तु, परन्तु, इसीलिए, बल्कि, ताकि, क्योंकि, या, अथवा, एवं, तथा, अन्यथा” आदि शब्द जुड़ते हैं वहाँ पर समुच्चयबोधक होता है।
विस्मयादि बोधक – हिंदी व्याकरण
जिन हिन्दी वाक्यों में आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा आदि के भाव व्यक्त होँ, उन्हें विस्मय बोधक वाक्य कहते है। हिंदी व्याकरण में इन वाक्यों में सामान्यतः विस्मयादिबोधक चिह्न (!) का उपयोग किया जाता है।
संबंधबोधक – हिन्दी व्याकरण
जो शब्द संंज्ञा या सर्वनाम का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ बताते हैं हिंदी व्याकरण में उन्हें संबंधबोधक कहते हैं। या जो अविकारी शब्द संज्ञा, सर्वनाम के बाद आकर वाक्य के दूसरे शब्द के साथ सम्बन्ध बताए उसे हिंदी व्याकरण में संबंधबोधक कहते हैं।
निपात (अवधारक) हिंदी व्याकरण
किसी भी बात पर अतिरिक्त भार देने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है हिंदी व्याकरण में उसे निपात (अवधारक) कहते है। जैसे :- भी , तो , तक , केवल , ही , मात्र आदि. तुम्हें आज रात रुकना ही पड़ेगा। तुमने तो हद कर दी।
वचन – हिंदी व्याकरण
भाषाविज्ञान में वचन (Number) एक संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया आदि की व्याकरण सम्बन्धी श्रेणी है जो इनकी संख्या की सूचना देती है (एक, दो, अनेक आदि)। अधिकांश भाषाओं में दो वचन ही होते हैं- एकवचन तथा बहुवचन , किन्तु संस्कृत तथा कुछ और भाषाओं में द्विवचन भी होता है। हिंदी व्याकरण में भी दो वचन होते हैं।
लिंग – हिन्दी व्याकरण
लिंग संस्कृत का शब्द होता है जिसका अर्थ होता है निशान। जिस संज्ञा शब्द से व्यक्ति की जाति का पता चलता है उसे लिंग कहते हैं। इससे यह पता चलता है की वह पुरुष जाति का है या स्त्री जाति का है। हिंदी व्याकरण में दो लिंग होते हैं (पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग) जबकि संस्कृत में तीन लिंग होते हैं- पुल्लिंग, स्त्रीलिंग तथा नपुंसक लिंग।
कारक – हिन्दी व्याकरण
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उसके सम्बन्ध का बोध होता है, उसे कारक कहते हैं। हिंदी व्याकरण में आठ कारक होते हैं- कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण और सम्बोधन। हिंदी व्याकरण में विभक्ति या परसर्ग-जिन प्रत्ययों से कारकों की स्थितियों का बोध होता है, उन्हें विभक्ति या परसर्ग कहते हैं।
पुरुष – हिंदी व्याकरण
वे व्यक्ति जो संवाद के समय भागीदार होते हैं, उन्हें पुरुष कहा जाता है। जैसे: मेरा नाम सचिन है। इस वाक्य में वक्ता(सचिन) अपने बारे में बता रहा है। वह इस संवाद में भागीदार है एवं श्रोता भी।
उपसर्ग – हिन्दी व्याकरण
संस्कृत एवं संस्कृत से उत्पन्न भाषाओं में उस अव्यय या शब्द को उपसर्ग (prefix) कहते हैं जो कुछ शब्दों के आरंभ में लगकर उनके अर्थों का विस्तार करता अथवा उनमें कोई विशेषता उत्पन्न करता है। उपसर्ग = उपसृज् (त्याग) + घञ्। हिंदी व्याकरण में जैसे – अ, अनु, अप, वि, आदि उपसर्ग है।
प्रत्यय – हिन्दी व्याकरण
शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला शब्दांश। अत:, जो शब्दांश के अंत में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। जैसे-‘ बड़ा’ शब्द में ‘आई’ प्रत्यय जोड़ कर ‘बड़ाई’ शब्द बनता है। अर्थात हिंदी व्याकरण में प्रत्यय वे शब्द होते हैं जो किसी शब्द के अंत में जुडते हैं।
अव्यय – हिंदी व्याकरण
किसी भी भाषा के वे शब्द अव्यय (Indeclinable या inflexible) कहलाते हैं जिनके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पत्र नहीं होता। हिंदी व्याकरण में ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते है। चूँकि अव्यय का रूपान्तर नहीं होता, इसलिए ऐसे शब्द अविकारी होते हैं। हिंदी व्याकरण में अव्यय का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो व्यय न हो।’
संधि – हिन्दी व्याकरण
संधि (सम् + धि) शब्द का अर्थ है ‘मेल’। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है। जैसे – सम् + तोष = संतोष ; देव + इंद्र = देवेंद्र ; भानु + उदय = भानूदय।हिंदी व्याकरण में अर्थात हमारी हिंदी भाषा में संधि के द्वारा पुरे शब्दों को लिखने की परम्परा नहीं है।
छन्द – हिन्दी व्याकरण
छंद शब्द ‘चद्’ धातु से बना है जिसका अर्थ है ‘आह्लादित करना’, ‘खुश करना’। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। इस प्रकार हिंदी व्याकरण में छंद की परिभाषा होगी ‘वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं’।
समास – हिन्दी व्याकरण
समास का तात्पर्य है ‘संक्षिप्तीकरण’। इसका शाब्दिक अर्थ होता है छोटा रूप। जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को हिंदी व्याकरण में समास कहते हैं। जैसे -‘रसोई के लिए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते हैं।
अलंकार – हिन्दी व्याकरण
काव्य में भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले चमत्कारपूर्ण मनोरंजन ढंग को अलंकार कहते हैं। हिंदी व्याकरण में अलंकार का शाब्दिक अर्थ है, ‘आभूषण’। जिस प्रकार सुवर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार काव्य अलंकारों से काव्य की।
रस – हिन्दी व्याकरण
रस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनन्द’। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे हिंदी व्याकरण में ‘रस’ कहा जाता है। हिंदी व्याकरण में रस को काव्य की आत्मा माना जाता है। प्राचीन भारतीय वर्ष में रस का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। हिंदी व्याकरण में रस -संचार के बिना कोई भी प्रयोग सफल नहीं किया जा सकता था।
विलोम शब्द – हिंदी व्याकरण
विलोम का अर्थ होता है उल्टा। जब किसी शब्द का उल्टा या विपरीत अर्थ दिया जाता है उस शब्द को हिंदी व्याकरण में विलोम शब्द कहते हैं अथार्त एक – दूसरे के विपरीत या उल्टा अर्थ देने वाले शब्दों को विलोम शब्द कहते हैं। हिंदी व्याकरण में इसे विपरीतार्थक शब्द भी कहते हैं।
तत्सम-तद्भव – हिन्दी व्याकरण
आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त ऐसे शब्द जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप बदले ले लिया गया है। हिन्दी, बांग्ला, कोंकणी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, तेलुगू कन्नड, मलयालम, सिंहल आदि में बहुत से शब्द संस्कृत से सीधे ले लिए गये हैं क्योंकि इनमें से कई भाषाएँ संस्कृत से जन्मी हैं। हिंदी व्याकरण में तत्सम तथा तद्भव शब्दों का वहुत महत्व है।
पर्यायवाची शब्द – हिंदी व्याकरण
जिन शब्दों के अर्थ में समानता होती है, उन्हें समानार्थक या पर्यायवाची शब्द कहते है या किसी शब्द-विशेष के लिए प्रयुक्त समानार्थक शब्दों को पर्यायवाची शब्द कहते हैं। हिंदी व्याकरण में यद्यपि पर्यायवाची शब्दों के अर्थ में समानता होती है, लेकिन प्रत्येक शब्द की अपनी विशेषता होती है और भाव में एक-दूसरे से किंचित भिन्न होते हैं।
अनेक शब्दों के लिए एक शब्द हिंदी व्याकरण
हिंदी शब्दों में अनेक शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कर सकते हैं। हिंदी व्याकरण में अथार्त हिंदी भाषा में कई शब्दों की जगह पर एक शब्द बोलकर भाषा को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। हिंदी व्याकरण में अनेक शब्दों में एक शब्द का प्रयोग करने से वाक्य के भाव को पता लगाया जा सकता है।
एकार्थक शब्द हिंदी व्याकरण
हिन्दी व्याकरण में जिनका अर्थ देखने और सुनने मेँ एक–सा लगता है, परन्तु वे समानार्थी नहीं होते हैँ। ध्यान से देखने पर पता चलता है कि उनमेँ कुछ अन्तर भी है।
अनेकार्थक शब्द हिंदी व्याकरण
‘अनेकार्थक‘ शब्द का अभिप्राय है, किसी शब्द के एक से अधिक अर्थ होना। हिन्दी व्याकरण में बहुत से शब्द ऐसे हैँ, जिनके एक से अधिक अर्थ होते हैँ। ऐसे शब्दोँ का अर्थ भिन्न–भिन्न प्रयोग के आधार पर या प्रसंगानुसार ही स्पष्ट होता है।
युग्म-शब्द – Samanarthi Shabd (Combination words), समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द, Shabd Yugm हिंदी व्याकरण
हिन्दी व्याकरण में शब्दों में अनेक शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कर सकते हैं। अथार्त हिंदी भाषा में कई शब्दों की जगह पर एक शब्द बोलकर भाषा को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। हिंदी भाषा में अनेक शब्दों में एक शब्द का प्रयोग करने से वाक्य के भाव को पता लगाया जा सकता है।
वर्तनी: शब्द एवं वाक्य शुद्धीकरण हिंदी व्याकरण
वर्तनी: किसी शब्द को लिखने मेँ प्रयुक्त वर्णोँ के क्रम को वर्तनी या अक्षरी कहते हैँ। अँग्रेजी मेँ वर्तनी को ‘Spelling’ तथा उर्दू मेँ हिज्जे कहते हैँ। हिन्दी व्याकरण में वर्तनी कहते हैं।
हिंदी में मुहावरे और लोकोक्तियाँ हिंदी व्याकरण
जिस सुगठित शब्द-समूह से लक्षणाजन्य और कभी-कभी व्यंजनाजन्य कुछ विशिष्ट अर्थ निकलता है हिन्दी व्याकरण में उसे मुहावरा कहते हैं। कई बार यह व्यंग्यात्मक भी होते हैं। मुहावरे भाषा को सुदृढ़, गतिशील और रुचिकर बनाते हैं। मुहावरों के प्रयोग से भाषा में अद्भुत चित्रमयता आती है। हिन्दी व्याकरण मुहावरों के बिना भाषा निस्तेज, नीरस और निष्प्राण हो जाती है।
हिन्दी भाषा में बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँहचढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है।
हिंदी की प्रमुख रचनाये : हिंदी व्याकरण
हिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है। गद्य पद्य और चम्पू। हिंदी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं।
हिन्दी की प्रमुख गद्य रचनाएँ एवं रचयिता
किसी भाषा के वाचिक और लिखित (शास्त्रसमूह) को साहित्य कह सकते हैं। दुनिया में सबसे पुराना वाचिक साहित्य हमें आदिवासी भाषाओं में मिलता है। इस दृष्टि से आदिवासी साहित्य सभी साहित्य का मूल स्रोत है।
जीवन परिचय एवं प्रमुख साहित्यकार
इस में किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के जीवन के अन्तर्वाह्य स्वरूप का घटनाओं के आधार पर कलात्मक चित्रण रहता है। इससे उसके गुण दोषमय व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। सामान्यतः जीवनी में सारे जीवन में किए हुए कार्यों का वर्णन होता है पर इस नियम का पालन आवश्यक नहीं है।
पत्र लेखन
पत्र-लेखन आधुनिक युग की अपरिहार्य आवश्यकता है। पत्र एक ओर सामाजिक व्यवहार के अपरिहार्य अंग हैं तो दूसरी ओर उनकी व्यापारिक आवश्यकता भी रहती है। पत्र लेखन एक कला है जो लेखक के अपने व्यक्तित्व, दृष्टिकोण एवं मानसिकता से परिचालित होती है।
निबंध लेखन
निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी एक विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सजीवता, संगति एवं सुसम्बद्धता के साथ किया जाता है। निबंध में लेखक का अपना व्यक्तित्व साफ झलकता है।