प्यार, मोह और आकर्षण में क्या अंतर है? प्यार और आकर्षण में अंतर

प्यार और आकर्षण को समझने के लिए हमें मोह को भी समझना पड़ेगा क्योंकि मोह को समझे बिना प्यार और आकर्षण को समझा नहीं जा सकता। इसलिए आज हम तीनों के बारे में जानेगे।

Pyar Aur Akarshan Mein Antar
Pyar Aur Akarshan Mein Antar

प्यार

खुद को जान लेना प्यार है। अपने अहंकार को छोड़कर समर्पित होना प्यार है। अगर हमारे अंदर कोई सेलफिश मोटिव होता है तो हम प्यार नहीं कर सकते।

प्यार तब तक जन्म नहीं ले सकता जब तक हम अपनी नकारात्मक भावनाओं(मोह, गुस्सा, अहंकार, ईर्ष्या, लालच आदि।) पर काबू नहीं करते। प्यार तो सिर्फ देने का ही नाम होता है, लेने का नहीं । मिलना तो आटोमेटिक होता है। इसमें अनरियलिस्टिक एक्सपेक्टेशन नहीं होती। क्योंकि एक्सपेक्टेशन तो रिश्तों में होती है लेना देना रिश्तों में होता है, प्यार में नहीं।

प्यार पूरी तरह एकतरफा होता है दोतरफा नहीं, प्यार को हम दूसरी साइड से नियंत्रित नहीं कर सकते, अगर करते हैं तो हम प्यार नहीं करते सिर्फ अपना मतलब ही साधते हैं जो हमारे अंदर की नकारात्मक भावनाओं के कारण होता है। इसे काबू किए बिना हम प्यार के लेवल को छू नहीं पायेंगे, सिर्फ मोह तक सीमित रह जायेंगे।

आज के परिवेश में हमने मोह को ही प्यार समझ लिया है, जबकि प्यार समर्पण है, कोई फैशन नहीं। प्यार के लिए बहुत समझदारी चाहिए। इसमें अपने अहंकार को परे रखना पड़ता है।

  • प्यार में मैं या तू नहीं होता बल्कि हम होता है।
  • प्यार में सम्मान और विश्वास होता है।
  • प्यार में दिल से स्वीकार्यता होती है फिर चाहे सामने वाला कैसे भी नेचर का हो।
  • प्यार में सामने वाले को हम बदलते नहीं है बल्कि वो जैसा है वैसा स्वीकार करते हैं।
  • प्यार मन का ठहराव है।
  • प्यार हमेें अंदर से खुशी देता है सिर्फ आनंद नहीं।
  • प्यार हमें इस लायक बनाता है कि हम यह जान सके कि हमारे लिए और हमसे जुड़े लोगों के लिए क्या सही है क्या गलत।
  • प्यार वह भाव है जो हमें अंदर से शांत और संतुष्ट रखता है।

अब प्रश्न यह उठता है कि हमें प्यार कैसे करना चाहिए तो जब तक हम खुद से प्यार नहीं करते तब तक हम दूसरों से भी प्यार नहीं कर सकते क्योंकि जो इंसान प्यार ढूंढ़ रहा हो वो प्यार कर नहीं सकता क्योंकि जब हम किसी में अपना प्यार ढूंढते हैं तो हम उस पर कहीं न कहीं मानसिक रुप से डिपेंड हो जाते हैं, बेकार की उम्मीदें पालने लग जाते हैं और यह भी नहीं देखते कि वह इंसान उसे पूरा कर भी पाएगा या नहीं और जब वह उम्मीद पूरी नहीं होती तो लड़ाई, झगड़ा, गुस्सा, निराशा वगैरह होने लग जाता अंत में हम उसे छोड़कर दूसरे की तलाश में निकल पड़ते हैं, यह प्यार नहीं है, सिर्फ मोह है।

इसके लिए हमें अपने आपको अंदर से इतना मजबूत बनाना चाहिए कि हम प्यार देनें वाले बने न कि मांगने वाले क्योंकि जब आप मांगते हो तो आप अपनी वैल्यू कम करते हो और दूसरो को अपना फायदा उठाने का मौका देते हो।

प्यार में हम सामने वाले पर कब्जा करने की कोशिश नहीं करते बल्कि उसे स्वतंत्र छोड़तें है यदि वह आपका है तो वह कहीं नहीं जाएगा

प्यार में हम सिर्फ रियलिस्टिक एक्सपेक्टेशन रखते हैं।

मोह

जब हम मोह में होते हैं तो हमें यह समझ नहीं आता कि हमारे लिए या सामने वाले के लिए क्या सही है क्या गलत हम सिर्फ वही करते हैं जो हम सही समझते हैं, इसलिए हमने अगर अपने आप में समझदारी नहीं जोड़ी तो प्यार तक नहीं पहुंच पायेंगे। मोह हमें वास्तविकता से दूर करता है।

मोह में बहुत उम्मीदें होती हैं और यही उम्मीदें पूरी न होने पर हमें दुःख में डालती हैं। मोह में हम दूसरे की मानसिक स्थिति से जुड़ जाते हैं इसलिए जब वह खुश होता है तो हम खुश होते हैं जब वह दुःखी तो हम भी दुःखी । मोह में हमें सामने वाले की असलियत ही दिखाई नहीं देती और हम धोखा उठा जाते हैं। जैसे-जैसे हमारी समझदारी बढ़ती है मोह कम होता है और हम चीजों को अच्छे से देख पाते हैं।

पर मोह को मैं रिश्ते और प्यार के लिए जरूरी मानता हूँ पर ये मोह कभी भी आपके रिश्ते और प्यार से बड़ा नहीं होना चाहिए और हमेशा आपके नियंत्रण में होना चाहिए। जब भी ये मोह रिश्ते और प्यार से बड़े होने लग जाते हैं तो ये रिश्ते और प्यार दोनों को खतरे में डाल देते हैं।

आकर्षण

जब हम किसी के गुणों को देखकर जो हमें अच्छे लगते हैं या जिसके कारण हम अच्छा महसूस करते हैं तो हम उसकी तरफ आकर्षित हो जाते हैं। मै सिर्फ इन्सानों की बात नहीं करता बल्कि चीजों, अपने काम और परिस्थितियों के बारे में भी कहता हूँ क्योंकि हम इसकी तरफ भी आकर्षित होतें हैं और जैसा हमारा मन होता है अगर उसी के अनुसार कुछ हो रहा होता है तो हम उसकी तरफ आकर्षित हो जाते हैं और तो और हम किसी की सोच से भी आकर्षित हो जाते हैं जब यही आकर्षण बार बार होता है तो हम मोह की तरफ अग्रसर होते हैं यह आकर्षण प्यार में तब बदलना शुरु होता है जब हम किसी के लिए नि:स्वार्थ भाव से कुछ करना शुरू करते हैं और इसमें हमें खुशी मिलती है जब हमारे अंदर करूणा का जन्म होता है तो यह भी प्यार के होने का संकेत होता है।

जब भी हमें कोई व्यक्ति, वस्तु, काम, परिस्थिति हमेशा के लिए निःस्वार्थ भाव से अच्छी लगने लग जाती है और हमारा जुनून और समर्पण कभी भी इसके लिए कम नहीं होता फिर चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी क्यों न हो और उस व्यक्ति, वस्तु,काम, परिस्थिति में कोई बुराई भी क्यों न हो फिर भी हम उस बुराई को भी स्वीकार करते हुए उससे प्यार करें और हमारा प्यार उसके लिए हमेशा बना ही रहे तो फिर वास्तव में हम इसे प्यार कह सकते हैं और हाँ किसी के लिए भी हमारा निस्वार्थ जुनून मोह नहीं होता क्योंकि मोह में जब हम किसी की बुराई को देखते हैं जो हमें पसंद नहीं है तो हमारा लगाव उससे कम होते हुए अंत में खत्म हो जाता है लेकिन प्यार में हमारा लगाव, जुनून और समर्पण उससे कभी खत्म नहीं होता हमेशा बना ही रहता है।

Pyar Aur Akarshan
Pyar Aur Akarshan

प्यार और आकर्षण में अंतर

अगर आप प्यार और आकर्षण के बीच अंतर समझना चाहते हैं तो निम्न बिन्दुओ में जानते हैं क्या basic different है प्यार और आकर्षण के बीच?

  • आकर्षण किसी से भी हो सकता है प्यार नहीं

प्यार और आकर्षण के बीच मुख्य अंतर यही है कि जब हम किसी की तरफ़ आकर्षित होते हैं तो वह हमारे लिए तभी तक महत्वपूर्ण होता है जब तक की उसके जैसा कोई दूसरा हमारे जीवन में नहीं आ जाता। कई बार किसी से मेलजोल बढ़ाना महज एक social status भी होता है। लेकिन एक निश्चित समय के बाद उस व्यक्ति से भी आपकी रूचि घटने लगती है। वास्तव में आकर्षण की प्रक्रीया ऐसे ही चलती रहती है और आपके जीवन में कोई ना कोई नया व्यक्ति आता रहता है। लेकिन जब आप किसी के साथ प्यार में होते हैं तब आप उसे पाना चाहते हैं। ज़बरदस्ती नहीं ख़ुशी से!

  • आकर्षण में व्यक्ति कंट्रोल नहीं कर पाता

माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति किसी की ओर आकर्षित होता है तो वह धैर्य (patience) नहीं रख पाता है और सबकुछ बहुत जल्दी पा लेना चाहता है। इससे आकर्षण और प्यार में अंतर पहचाना जा सकता है यही कारण है कि महज आकर्षण के आधार पर बने रिश्ते आजकल लंबे समय तक टिक नहीं पाते हैं। आकर्षण आमतौर पर व्यक्ति की पोशाक, पर्सनालिटी, पैसा और रुतबा देखकर होता है। जिंदगी में अच्छी तरह से सेटल (settle) व्यक्ति की ओर अधिकतर लोग आकर्षित होते हैं। जबकि प्यार पनपने और आगे बढ़ने में एक लंबा समय लगता है। इसमें व्यक्ति एक दूसरे की हैसियत (richness) को नहीं देखता या फिर कोई भी ऐसी चीज नहीं देखता है जो प्यार के बीच में आती हो।

  • आकर्षण में बेवजह तारीफ़ की जाती हैं प्यार में नहीं

प्यार और अट्रैक्शन में अंतर जानने का यह खास तरीका माना जाता है अगर कोई व्यक्ति बेवजह आपकी तारीफों के पुल बांधता है, हमेशा आपकी आंखों, आपकी मुस्कुराहट, आपके उठने बैठने के तौर तरीकों और आपके चाल ढाल और व्यक्तित्व की तारीफ करता है तो यह प्यार नहीं बल्कि आकर्षण है। वास्तव में आकर्षण होने पर व्यक्ति बड़े बड़े बोल (hyperbole) बोलकर रिझाने की कोशिश करता है। जबकि प्यार होने पर व्यक्ति हर सुख दुख में आपके साथ खड़ा रहेगा और कभी भी आपका हाथ नहीं छोड़ेगा। वह कभी आपकी तारीफ में कसीदे नहीं पढ़ेगा बल्कि वह आप को कठिन से कठिन परिस्थितयों में खुद को संभालने और जीने की हिम्मत देगा।

  • आकर्षण में उपहार का महत्व है जबकि प्यार एक भावना है

जब हम किसी की तरफ आकर्षित होते हैं तो उसे महंगे उपहार (expensive gift) और गिफ्ट देकर खुश करने की कोशिश करते हैं और बदले में अपने लिए भी यही चाहते हैं। जो की आकर्षण और प्यार में अंतर दिखाता है अगर वह व्यक्ति आपको कुछ नहीं देता तो आप उससे असंतुष्ट (unsatisfied) रहने लगता हैं और कई लोगों से उसकी शिकायत करते हुए उसे स्वार्थी घोषित कर देते हैं। हालांकि, जब आप किसी से सच्चा प्यार करते हैं, तो आप बदले में कुछ भी नहीं चाहते और उस व्यक्ति का प्यार ही आपके लिए सबकुछ होता है। आप हमेशा अपने साथी को खुश करने पर ध्यान देते हैं ना कि इस बात पर कि उसने आपको क्या दिया और आपने उसे क्या दिया।

  • आकर्षण एक समय बाद ख़त्म हो जाता है जबकि प्यार बढ़ता है

प्यार और अट्रैक्शन में यह मुख्य अंतर माना जाता है। कहा जाता है कि आकर्षण की कोई वास्तविक अवधि (real time) नहीं होती है। आकर्षण प्रेम से बहुत अलग होता है और आज एक व्यक्ति से तो कल दूसरे व्यक्ति के प्रति आकर्षण हो सकता है। आप किसी की कलाई में सुंदर घड़ी (attractive wrist watch) देखकर, किसी के परफ्यूम से, किसी के आंखों के काजल से आकर्षित हो सकता है। यह आकर्षण महज कुछ ही समय तक रहता है और फिर खत्म हो जाता है। लेकिन प्यार कभी मरता नहीं है और ना ही किसी निश्चित अवधि में गायब होता है। समय के साथ प्यार परवान (extreme) चढ़ता है जबकि आकर्षण खत्म होता जाता है।

  • प्यार में जलन की भावना होती है आकर्षण में नहीं

प्यार कई चीजों में बहुत अद्भुत (amazing) है और यह आपको एक बेहतर इंसान बना सकता है। लेकिन एक और सच्चाई यह है कि प्रेम की निकटतम भावना घृणा भी है। कहने का अर्थ यह है कि अगर आप किसी से बेहद प्यार करते हैं लेकिन बीच में ही किसी गलतफहमी (misunderstanding) की वजह से आप दोनों का ब्रेकअप हो जाए तो इसके बाद अगर आपका पार्टनर किसी दूसरे (other partner) लड़के या लड़की के साथ घूमता है तो यह देखकर आपकी नफरत होगी और आप अंदर ही अंदर जलेंगे। लेकिन आकर्षण में ऐसा कुछ भी नहीं होता है। अगर किसी व्यक्ति के प्रति आपका अट्रैक्शन खत्म हो जाए तो फिर दोनों अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं और फिर वहां जलन या घृणा जैसी कोई चीज नहीं होती है।

  • आकर्षण में व्यक्ति अपनी ख़ुशी देखता है जबकि प्यार में पार्टनर की 

खुशी देखना आकर्षण और प्रेम का अंतर है जब आप किसी से सच्चा प्यार (true love) करते हैं तो आपके जीवन में उसकी पहली प्राथमिकता होती है और आपको अपनी जरूरतें पूरी कहने से कहीं ज्यादा जरूरी अपने पार्टनर की जरूरतें पूरी करने की आवश्यकता होती है। प्यार में व्यक्ति कभी स्वार्थी नहीं होता और वह अपने पार्टनर की खुशी के लिए सबकुछ करता है। जबकि आकर्षण होने पर व्यक्ति आपका साथ तभी देगा जब उसके पास समय होगा। वह आपके लिए जो कुछ भी करेगा, अपने मन के अनुसार ना की आपकी परिस्थिति और जरूरत के अनुसार।

  • आकर्षण पाने का और प्यार त्याग का नाम है

प्यार के विपरीत आकर्षण या अट्रैक्शन बहुत खतरनाक (dangerous) होता है। जब आप किसी की ओर आकर्षित होते हैं तो आपके जीवन का सिर्फ एक ही मकसद यानि उस व्यक्ति को किसी तरह से हासिल करना होता है। कॉलेज जाने वाले लड़के आकर्षण के कारण ही कई बार लड़कियों को हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं और लड़की के मना करने पर डराते धमकाते (torcher) हैं। लेकिन जब आप प्यार में होते हैं तो किसी के साथ जबरदस्ती करने के बारे में नहीं सोचते हैं। यहां प्यार का मतलब पाने से बढ़कर बहुत कुछ होता है। आप जिससे प्यार करते हैं उसपर कभी दबाव (pressure) नहीं बनाते है और उसे खोकर भी आप पा ही लेते हैं।

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