चिंता और चिंतन में क्या अंतर है? चिंता और चिंतन में अंतर

चिंता हमको जला देती है परंतु चिंतन हमको प्रज्वलित कर देता है। चिंता हमको कोई समाधान नहीं प्रदान करती बल्कि समस्या ही देती है। चिंतन समस्याओं का समाधान प्रदान करता है जबकि चिंता जीवन को अँधेरे में धकेल देती है। चिंतन जीवन को प्रकाश की तरफ ले जाता है।भारतीय संस्कृति में चिंतन को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग प्रावधान है। यहाँ चित्त और चेतना में फर्क किया गया है, चित्त- वृत्तियों पर लगाम लगाना और चेतन को प्रज्वलित करना ही मानव जीवन का उद्देश्य है।

Chinta Aur Chintan Mein Antar
Chinta Aur Chintan Mein Antar

चिंता से अभिप्राय से किसी भी चीज़ को लेकर परेशान होना या फिर किसी भी परेशानी को बार बार अपनी सोच में लाना और चिंतन से अभिप्राय है किसी चीज़ को लेकर उस पर सोच विचार करना या फिर गहरी सोच में डूब जाना।

चिंता एक व्यक्ति पूरे जीवन कमाने में लगा रहता है वह कमाता इसीलिए है ताकि उसका घर परिवार सुख संपन्नता के साथ जीवन यापन कर सकें लेकिन बाहर की दुनिया में उसे क्या-क्या झेलना पड़ता है यह तो केवल वह व्यक्ति ही जानता है पूरे समय वो चिंताओं से घिरा रहता है उदाहरण के तौर पर-:

  • नौकरी की चिंता।
  • शादी की चिंता।
  • बच्चे होने पर बच्चों की चिंता।
  • पैसे कमाने की चिंता ।
  • परीक्षाओं की चिंता।

यह सभी चिंताएं व्यक्ति को अंदर ही अंदर परेशान करती रहती है वैसे भी कहा जाता है “चिंता चिता के समान होती है” जैसे चिता जलती रहती है उसी प्रकार चिंताएं भी इंसान को जलाती रहती है।

चिंतन– चिंतन एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति कहीं ना कहीं अपने मन में सोचता रहता है चिंता और चिंतन आपस में जुड़े हुए हैं किसी भी बात की चिंता ही चिंतन को जन्म देती है यदि हम किसी चिंता के बारे में सोचेंगे तो हि उसके विषय में चिंतन कर पाएंगे चिंतन के माध्यम से व्यक्ति अपनी चिंताओं को दूर करने में कहीं ना कहीं कामयाब हो ही जाता है दोनों एक दूसरे के पूरक है।

यहां मैं एक बात कहना चाहती हूं जिस प्रकार …..शरीर को संभालने के लिए डॉक्टर चाहिए सुविधा पाने के लिए नौकर चाहिए पैसा संभालने के लिए लॉकर चाहिए संभव है कि कचरे के ढेर में से गुलाब मिल जाए संभव है कि गरीब के घर से जवाहरात हीरे मोती मिल जाए मगर यह संभव नहीं कि संसार में रहकर स्थाई सुख मिल जाए । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहकर उसे यह सब करना ही पड़ता है चिंता, डर, मान ,माया, लोभ, क्रोध ,भय ,प्रेम, घृणा ,करुणा ,यह सब मानव के ही अंश है इसलिए इनसे बिना घबराए इन सबको साथ लेकर ही आगे बढ़ा जा सकता है।

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