प्रेम एक भावना है जो मनुष्य के हृदय में रहती है इसे आलंबन की आवश्यकता नहीं है। मित्रता के लिए हमेशा ही किसी आलंबन की आवश्यकता होती है। किसी मित्र से कभी दुराव भी हो सकता है। मित्रता भी तभी तक है जब तक आपके ह्रदय में प्रेम है ।

अन्य शब्दों में प्रेम और मित्रता में अंतर
मित्रता वो है जो सुदामा ने श्री कृष्ण भगवान से की थीं। प्रेम वो है जो राधा जी ने श्री कृष्ण भगवान से किया। श्री कृष्ण के हाथों पर दूध छलकने से (गर्म दूध) राधा जी के हाथ जल जाए।
मेरी एक बहुत ही पसन्दीदा पंक्ति है –
एक बार भगवान बुद्ध से उनके शिष्य ने पूछा कि पसन्द ओर प्रेम में क्या अंतर है तो भगवान बुद्ध ने बड़ी सुंदरता के साथ जबाब दिया –
जब तुम किसी फूल को पसंद करते है तो आप उसे तोड़ लेते हो , ये पसन्द है।।
परन्तु जब आप किसी फूल से प्रेम करते है तो आप उसे पानी देते है, ये प्रेम है।