लोकसभा और राज्यसभा के बीच में अंतर या फर्क

दरअसल लोकसभा व राज्यसभा दोनों ही भारतीय संसद का हिस्सा हैं और भारत की केंद्रीय सरकार इनके सदस्यों से मिलकर ही बनती हैं । इनके सदस्यों को सांसद कहते हैं । लेकिन दो अलग सदन क्यों ?

Loksabha aur Rajyasabha Mein Antar
Loksabha aur Rajyasabha Mein Antar

लोकसभा जैसा कि नाम से स्पष्ट हैं इसमे लोगो के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि आते हैं। हर पाँच वर्षो में इनके चुनाव होते हैं और हर पाँच वर्षों में यह भंग हो जाती हैं और नए सिरे से चुनावो में जीते हुए लोगो द्वारा इसका गठन होता हैं । इसे संसद का निचला सदन भी कहा जाता हैं।

राज्यसभा समझने में थोड़ी मुश्किल हैं लेकिन मैं कोशिश करूँगा की इसे आसानी से समझा सकूँ । राज्यसभा के लिए 12 सांसद राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं जो कि कला, साहित्य, विज्ञान आदि क्षेत्रों के विशेषज्ञ हो। इनके अतिरिक्त सदस्य राज्यो व केंद्रशासित प्रदेशो से चुने जाते हैं।

इनके चुनाव को अप्रत्यक्ष चुनाव भी कहा जा सकता हैं क्योंकि इनमें जनता प्रत्यक्ष रूप से भाग नही लेती हैं । दरअसल जनता द्वारा राज्य के चुने हुए विधानसभा व विधानमंडलों के सदस्य (विधायक) राज्यसभा चुनावो के लिए मत डालते हैं।

राज्यसभा लोक सभा की तरह भंग नही होती बल्कि यह हमेशा चलती रहती हैं इसके लिए हर 2 वर्षो में अलग – अलग राज्यो से इसमे सदस्य जुड़ते जाते हैं और इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्षो का होता हैं।

राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती हैं और वर्तमान में यह 245 हैं । इसे संसद का ऊपरी सदन भी कहा जाता हैं। इसको बनाने के पीछे एक उद्देश्य केंद्र में राज्यो की भागीदारी बढ़ाना भी था ।

भारतीय संसद के तीन अंग हैं –

  1. राष्ट्रपति
  2. राज्य सभा
  3. लोकसभा

राष्ट्रपति संसद का एक अभिन्न अंग होते हुए भी संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है।

लोकसभा और राज्यसभा में अन्तर

  • लोकसभा संसद का निम्न सदन जबकि राज्य सभा उच्च सदन होता है।
  • लोकसभा का विघटन होता है जबकि राज्यसभा का विघटन नहीं होता।
  • लोकसभा के अधिकतम सदस्यों की संख्या 552 है जबकि राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम सदस्य संख्या 250 है।0
  • लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रीति भारत के प्रत्येक 18 वर्ष के नागरिक के मतदान द्वारा होता है जबकि राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है।

लोकसभा के 552 सदस्यों में से 530 सदस्य मतदाताओं के प्रत्यक्ष मतदान द्वारा निर्वाचित होते हैं, 20 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं और 2 सदस्यों को राष्ट्रपति की राय से एंग्लो-इण्डियन समाज से नामजद किया जाता है।

जबकि राज्यसभा के 250 में से 238 सदस्य राज्यों और संघ-क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं और 12 सदस्यों को साहित्य, कला, विज्ञान और समाज सेवा में विशेष ज्ञान और वास्तविक अनुभव के आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा नामांकित किया जाता है।

इस नामांकन के ताज़ा तरीन विवाद (जनवरी 2018) का ज़िक्र करना चाहूंगी जिसमे नई दिल्ली की आप सरकार के द्वारा डॉ. कुमार विश्वास की मंशा एवम् इच्छा को नकारते हुए श्री नारायण दास गुप्ता एवम् श्री सुशील गुप्ता जी का नाम राज्यसभा के उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपतिजी के पास भेजा गया था।

  • लोकसभा अपने प्रथम अधिवेशन की तारिख से 5 वर्षलतक चालू रहती है जबकि राज्यसभा एक। स्थायी सदन है। इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष की समाप्ति पर निवृत्त हो जाते हैं इसके अनुसार प्रत्येक सदस्य 6 वर्ष तक राज्यसभा का सदस्य रहता है।

इस प्रकार इन दोनों सदनों में प्रमुख अंतर यही हैं। हालांकि कुछ अन्य आधारों जैसे सदस्यों की निर्हरतायें, दल परिवर्तन, शक्तियां, प्रतिनिधित्व, लाभ का पद, एकसाथ दो सदनों की सदस्यता आदि अनेक अंतर के आधार हो सकते हैं।

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