संख्या पद्धति (Number System) – दशमलव संख्या पद्धति एवं संख्याओं के प्रकार

Sankhya Paddhati
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संख्या पद्धति

संख्याओं को लिखने एवं उनके नामकरण के सुव्यवस्थित नियमों को संख्या पद्धति (Number system) कहते हैं। गणित में इसके लिये निर्धारित प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है जिनकी संख्या निश्चित एवं सीमित होती है। इन प्रतीकों को विविध प्रकार से व्यस्थित करके भिन्न-भिन्न संख्याएँ निरूपित की जाती हैं।

संख्या पद्धतियों के प्रकार

दशमलव संख्या पद्धति, द्वयाधारी संख्या पद्धति, अष्टाधारी संख्या पद्धति तथा षोडषाधारी संख्या पद्धति आदि कुछ प्रमुख प्रचलित संख्या पद्धतियाँ हैं। इसके अलावा भी लगभग 25 प्रकार की संख्या पद्धतियाँ पायी जाती हैं।

1. दशमलव संख्या पद्धति (Decimal Number System)

दशमलव पद्धति या दाशमिक संख्या पद्धति या दशाधार संख्या पद्धति (decimal system) वह संख्या पद्धति है जिसमें गिनती/गणना के लिये कुल दस अंकों या ‘दस संकेतों’ (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9) का सहारा लिया जाता है। यह मानव द्वारा सर्वाधिक प्रयुक्त संख्यापद्धति है। उदाहरण के लिये 645.7 दशमलव पद्धति में लिखी एक संख्या है।

2. द्वयाधारी संख्या पद्धति (Binary Number System)

द्वयाधारी संख्या पद्धति (दो नम्बर का सिस्टम या binary numeral system; द्वयाधारी = द्वि + आधारी = ‘2’ आधार वाला) केवल दो अंकों (0 तथा 1) को काम में लेने वाली स्थानीय मान संख्या पद्धति है। इसमें संख्या का मान निकालने का आधार (रैडिक्स) 2 लिया जाता है।

चूंकि दो स्थिति (हाई / लो) वाले इलेक्ट्रानिक गेट इन संख्याओं को बड़ी सरलता से निरूपित कर देते हैं, इस कारण कम्प्यूटर के हार्डवेयर एवं साफ्टवेयर में इस पद्धति का बहुतायत से प्रयोग होता है।

3. अष्टाधारी संख्या पद्धति (Octal Number System)

अष्टाधारी संख्या पद्धति (ऑक्टल न्युमरल सिस्टम) संख्याओं के निरूपण की एक स्थानीय मान पद्धति है। इसका मूलांक (रैडिक्स) 8 (आठ) है। अतः अष्टाधारी संख्या 112 = दाशमिक संख्या 74 .

4. षोडषाधारी संख्या पद्धति (Hexa-decimal Number System)

गणित और कंप्यूटर विज्ञान में, षोडश आधारी (हेक्साडेसिमल) एक स्थितीय अंक प्रणाली (पोजीशनल न्यूमरल सिस्टम) है जिसके आधारांक (बेस) का मान 16 होता है। इसमें सोलह अलग-अलग प्रतीकों का इस्तेमाल होता है जिसमें 0 से 9 तक के प्रतीक शून्य से नौ तक के मानों को प्रदर्शित करते हैं और A, B, C, D, E, F (या वैकल्पिक रूप से a से f) तक के प्रतीक दस से पंद्रह तक के मानों को प्रदर्शित करते हैं।

उदाहरण के लिए, हेक्साडेसिमल संख्या 2AF3 का मान दाशमिक संख्या प्रणाली में (2 × 163) + (10 × 162) + (15 × 161) + (3 × 160) या 10,995 के बराबर होता है।

दशमलव संख्या पद्धति

दशमलव पद्धति या दाशमिक संख्या पद्धति या दशाधार संख्या पद्धति (decimal system, “base ten” or “denary”) वह संख्या पद्धति है जिसमें गिनती/गणना के लिये कुल दस अंकों या ‘दस संकेतों’ (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9) का सहारा लिया जाता है। यह मानव द्वारा सर्वाधिक प्रयुक्त संख्यापद्धति है। उदाहरण के लिये 645.7 दशमलव पद्धति में लिखी एक संख्या है।

इस पद्धति की सफलता के बहुत से कारण हैं-

  • किसी भी संख्या को निरूपित करने के लिये केवल दस संकेतों का प्रयोग – दस संकेत न इतने अधिक हैं कि याद न किये जा सकें और न इतने कम हैं कि बड़ी संख्याओं को लिखने के लिये संकेतों को बहुत बार उपयोग करना पड़े।
  • उदाहरण के लिये 255 को बाइनरी संख्या पद्धति में लिखने के लिये आठ अंकों की जरूरत होगी; 255 = 11111111)
  • दस का अंक मानव के लिये अत्यन्त परिचित हैं – हाथों में कुल दस अंगुलियाँ है; पैरों में भी दस अंगुलियाँ हैं।

संख्याओं के प्रकार

1. प्राकृतिक संख्याएँ (Natural Numbers)

जिन संख्याओं से गिनती की प्रक्रिया पूरी की जाती है, ऐसी संख्याओं को प्राकृतिक संख्याएँ (Natural Numbers) कहा जाता है। गणित में 1,2,3,… इत्यादि संख्याओं को प्राकृतिक संख्याएँ कहते हैं। प्राकृतिक संख्याओं के समुच्चय को N अथवा यूनिकोड में से दर्शाते हैं।

N ∈ {1, 2, 3, 4, 5,…………………∞}

2. पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers)

यदि प्राकृतिक संख्याओं के समूह में शून्य (0) को भी शामिल कर दिया जाए तो, इस प्रकार से प्राप्त हुई संख्याओं को पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers) कहते हैं। पूर्ण संख्याओं के समुच्चय को W से दर्शाते हैं।

W ∈ {0, 1, 2, 3, 4, 5,…………………∞}

3. पूर्णांक (Integers)

सभी धनात्मक संख्याएँ (प्राकृतिक संख्याएँ), सभी ऋणात्मक संख्याएँ एवं शून्य (0) के सम्मिलित रूप को पूर्णांक कहा जाता है। पूर्णांक संख्याओं के समुच्चय को Z से दर्शाते हैं।

Z ∈ {∞ . . .,-3, -2, -1, 0, 1, 2, 3,. . . ∞}

Note:-

  • शून्य प्राकृतिक संख्या नहीं है।
  • शून्य की खोज किसी अज्ञात भारतीय द्वारा ईसा० से 2 या 3 शताब्दी पूर्व की गई।
  • शून्य का सर्वप्रथम वर्णन ‘छंद सूत्र‘ नामक ग्रंथ में मिलता है।
  • कुछ विद्वान शून्य का खोजकर्त्ता आर्यभट्ट को मानते हैं।
  • परीक्षा की नजर से दो ऑप्शन (आर्यभट्ट एवं अज्ञात भारतीय) में से अज्ञात भारतीय को प्राथमिकता दी जाती है।
  • शून्य को ‘योगात्मक तत्समक‘ कहा जाता है।
  • एक (1) को ‘गुणात्मक तत्समक‘ कहा जाता है।
  • शून्य सम संख्या है।
  • शून्य परिमेय संख्या होती है।

योगात्मक तत्समक

शून्य (0)को ‘योगात्मक तत्समक‘ कहा जाता है। अर्थात एक ऐसी संख्या जिसको किसी संख्या में जोड़ा जाए या फिर किसी संख्या में से घटाया जाए तो उस संख्या के मान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।Yogatmak Tatsamak

गुणात्मक तत्समक

एक (1) को ‘गुणात्मक तत्समक‘ कहा जाता है। अर्थात एक ऐसी संख्या जिसको किसी संख्या में गुना किया जाए या फिर किसी संख्या में भाग दिया जाए तो उस संख्या के मान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

Gunatmak Tatsamak
संख्याओं में संबंध (Relation between numbers)

  1. सभी प्राकृतिक संख्याएँ पूर्णांक होती है लेकिन सभी पूर्णांक प्राकृतिक संख्या नहीं होते हैं।
  2. सभी प्राकृतिक संख्याएँ पूर्ण संख्याएँ होती हैं लेकिन सभी पूर्ण संख्याएँ प्राकृतिक संख्या नहीं होती हैं।
  3. सभी पूर्ण संख्याएँ पूर्णांक होती है लेकिन सभी पूर्णांक पूर्ण संख्या नहीं होते हैं।
Relation between different types of numbers
संख्याओं में संबंध

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