हिन्दी प्रार्थना – स्कूल में होने वाली प्रार्थनाएं, Hindi Prarthana

Hindi Prarthanayen - Hindi Prarthana
Hindi Prarthanayen – Hindi Prarthana

प्रार्थना एक धार्मिक क्रिया है, जो ब्रह्माण्ड के किसी महान शक्ति से सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश करती है। प्रार्थना व्यक्तिगत हो सकती है और सामूहिक भी। इसमें शब्दों मंत्र, गीत आदि का प्रयोग हो सकता है या प्रार्थना मौन भी हो सकती है।

जीवन में प्रार्थना का महत्व:

प्रार्थना का अर्थ यह नहीं है कि आप कर्म छोड़कर मंदिर में बैठे आरती करते रहें , घंटी बजाते रहें और आपकी जगह भगवान परीक्षा भवन में जाकर परीक्षा दे आएंगे या आपके दूसरे कार्य संपन्न कर देंगे। प्रार्थना व्यक्ति को आंतरिक संबल प्रदान करती है , उसे कर्म की ओर उद्यत करने हेतु आंतरिक बल , उत्साह और आशा प्रदान करती है। प्रार्थना व्यक्ति के विचारों एवं इच्छाओं को सकारात्मक बनाकर निराशा एवं नकारात्मक भावों को नष्ट करती है। प्रार्थना करने से मनुष्य भाग्यवादी कभी नहीं बनता। यदि ऐसा होता तो सभी धर्मों के लोग प्रार्थना करना बंद कर देते या सभी धर्म प्रार्थना के महत्व को नकार देते। कर्म का स्थान प्रार्थना नहीं ले सकती , प्रार्थना का स्थान कर्म नहीं ले सकता। यदि ऐसा होता तो डॉक्टर ऑपरेशन से पूर्व प्रार्थना से ही काम चला लेता कि जाओ हो गया ऑपरेशन। प्रार्थना के मूल में यही भाव है कि कर्म तो व्यक्ति को करना ही होगा , किंतु उसके द्वारा किया गया कर्म कभी निष्फल नहीं जाएगा , उसे यथेष्ट फल मिलेगा ही। उस कर्म हेतु प्रेरणा एवं उत्साह उसे प्रार्थना से मिलेगा।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण का प्रार्थना का महत्व:

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने प्रार्थना के इसी महत्व का प्रतिपादन किया है- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। अर्थात तेरा कर्म में ही विश्वास हो , फल की इच्छा में नहीं। क्योंकि तेरे द्वारा जो भी कर्म किया जाएगा , उसका फल तुझे अवश्य मिलेगा। अत: तेरी कर्म में ही प्रीति हो , फल में नहीं। यहां कहने का आशय यही है कि व्यक्ति अपना समय , अपनी ऊर्जा , अपनी एकाग्रता और अपनी अर्जित शक्ति को एकत्रित कर निर्धारित कर्म हेतु उद्योगरत रहे , फल की कामना रहने से अपने मन को कुंठित एवं व्यग्र न करे। ऐसा करने से किया गया कर्म फलदायी होता है।

मानस में गोस्वामी जी का प्रार्थना का महत्व:

मानस में भी गोस्वामी जी ने कर्म की ही महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहा है- सकल पदारथ यही जग माहीं। कर्महीन नर पावत नाहीं।। भारतीय संस्कृति मानव को ईश्वर की ओर उन्मुख होने का संदेश देती है , किंतु उसे कर्महीन अथवा भाग्यवादी नहीं बनाती। यहां तक कि ज्योतिष शास्त्र का भी यही कथन है- ” कर्म से भाग्य बदलता है।

भृगु संहिता के अनुसार प्रार्थना का महत्व:

” भृगु संहिता के अनुसार हमारी भाग्य रेखाएं एक समय के पश्चात स्वयमेव बदलने लगती हैं। उन रेखाओं के बदलने के पीछे कर्म का हाथ होता है। प्रार्थना का शाब्दिक अर्थ है विशेष अनुग्रह की चाह। प्रार्थना के समय व्यक्ति अपने इष्ट के सम्मुख जब आर्त्तनाद करता है अथवा निवेदन करता है , तो व्यक्ति का मन निर्मल होता है। नित्य की जाने वाली प्रार्थना से हमारा मस्तिष्क स्वच्छ विचारों को धारण कर स्वस्थ बनता है तथा हमारे मनोविकार नष्ट होते हैं। वास्तव में प्रार्थना हमें विनम्र और विनयी बनाती है , जो कि हर व्यक्ति के स्वभाव की आवश्यकता है।

आज समाज में इनकी बहुत आवश्यकता है। अत: प्रार्थना की सार्थकता वर्तमान समय में बहुत अधिक है। प्रार्थना हमें अपने मन-मस्तिष्क को एकाग्र करने का अभ्यास कराती है , जिससे आप अपनी मंजिल पा सकें , आपने जो चुनौती स्वीकार की है , कार्य हेतु जो संकल्प किया है उसमें आप सफल हो सकें। सच्ची भावना से की गई प्रार्थना एवं निष्ठापूर्वक किया गया कर्म सफलता की गारंटी है।

महात्मा गांधी कहते थे – ” प्रार्थना धर्म का निचोड़ है। प्रार्थना याचना नहीं है, यह तो आत्मा की पुकार है। यह आत्मशुद्धि का आह्वान है। प्रार्थना हमारे भीतर विनम्रता को निमंत्रण देती है।  यदि मनुष्य के व्यक्तित्व के आभूषण शांति, विनम्रता और सहनशीलता हैं तो उनका मूल प्रार्थना में छिपा है। यदि मनुष्य के व्यक्तित्व के अनिवार्य तत्व कर्मठता, लगन और परिश्रम हैं तो वे उसकी सफलता के मूलाधार हैं। दोनों का अपना-अपना महत्व है।

आपको अपनी आवश्यकतानुसार चुनाव करना है कि आपके लिए क्या आवश्यक है। अविरत कर्मयोग करते-करते ईश्वर से प्रार्थना करना वस्तुत: किए जाने वाले कर्म को ईश्वर का कर्म मानने की स्वीकारोक्ति है। प्रार्थना के साथ किया जाने वाला कर्म साधक/उद्यमी द्वारा अपने कर्म को भगवान के चरणों में समर्पित करने का दूसरा रूप है। इससे कर्ता के मन में अहंकार नहीं आ पाता।

विभिन्न धर्मों की पूजा विधियाँ भले ही अलग हों , किंतु प्रार्थना के अंतरस्वर एक ही होते हैं। विश्व के जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं , सभी ने कहीं न कहीं ईश्वर से प्रार्थना द्वारा आंतरिक बल प्राप्त किया है। प्रार्थना ईश्वर और मानव के प्रति एकत्व का माध्यम है।

हिन्दी प्रार्थनाएं

स्कूल में होने वाली प्रमुख प्रार्थनाएं निम्नलिखित हैं:

सरस्वती वंदना

हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमर कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे॥

तू ही राम है तू रहीम है प्रार्थना

तू ही राम है तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू ईशू मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा !

सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु

सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते हैं हम शुरु आज का काम प्रभु।
सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते हैं हम शुरु आज का काम प्रभु।

वह शक्ति हमें दो दया निधे

वह शक्ति हमें दो दयानिधे,
कर्त्तव्य मार्ग पर डट जावें।
पर-सेवा पर-उपकार में हम,
जग(निज)-जीवन सफल बना जावें॥

पूजनीय प्रभु हमारे भाव उज्वल कीजिये

पूजनीय प्रभु हमारे,
भाव उज्जवल कीजिये।
छोड़ देवें छल कपट को,
मानसिक बल दीजिये॥

इतनी शक्ति हमें देना दाता

इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमज़ोर हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे,
हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना.

जयति जय जय माँ सरस्वती

जयति जय जय माँ सरस्वती,
जयति वीणा धारिणी॥
जयति जय पद्मासन माता,
जयति शुभ वरदायिनी।

तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो

तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।
तुम्ही हो बंधू, सखा तुम्ही हो ॥
तुम ही हो साथी, तुम ही सहारे ।
कोई ना अपना सिवा तुम्हारे ॥

दया कर दान विद्या का

दया कर दान विद्या का,
हमें परमात्मा देना,
दया करना हमारी आत्मा में,
शुद्धता देना।

मानवता के मन मन्दिर में

मानवता के मन मन्दिर में,
ज्ञान का दीप जला दो,
करुणा निधान भगवान मेरे,
भारत को स्वर्ग बना दो॥

माँ शारदे कहाँ तू वीणा

माँ शारदे कहाँ तू,
वीणा बजा रही हैं,
किस मंजु ज्ञान से तू,
जग को लुभा रही हैं॥

हम होंगे कामयाब एक दिन

हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब,
हम होंगे कामयाब, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन…

हमको मन की शक्ति देना

हमको मन की शक्ति, देना मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें
हमको मन की शक्ति, देना मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें.

हर देश में तू हर भेष में तू

हर देश में तू, हर भेष में तू,
तेरे नाम अनेक तू एक ही है,
तेरे नाम अनेक तू एक ही है।
तेरी रंगभूमि, यह विश्व भरा,
सब खेल में, मेल में तू ही तो है॥

हे प्रभो आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिए

हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिए,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बनें,
ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बनें।

हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी

हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
जग सिरमौर बनाएं भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥

ऐ मालिक तेरे बंदे हम

ऐ मालिक तेरे बंदे हम
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चले और बदी से टले,
ताकी हँसते हुए निकले दम
ऐ मालिक तेरे बंदे हम…

वर दे वीणावादिनी वर दे

वर दे, वीणावादिनी वर दे!
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे!
वर दे, वीणावादिनी वर दे।

हे शारदे माँ

शारदे माँ, हे शारदे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ, हे शारदे माँ॥

प्रार्थना एक ऐसी आत्मिक और मानसिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने भाव, विचार और इच्छाएँ एक उच्च शक्ति, ईश्वर या अपने आराध्य के समक्ष व्यक्त करता है। यह आध्यात्मिक शांति, आत्मचिंतन, और आंतरिक शक्ति प्राप्त करने का माध्यम है।

प्रार्थना का महत्व

  1. आध्यात्मिक शांति: प्रार्थना व्यक्ति को मानसिक शांति और आंतरिक संतुलन प्रदान करती है।
  2. सकारात्मकता का विकास: यह व्यक्ति के मन में सकारात्मक सोच और ऊर्जा का संचार करती है।
  3. संबंध मजबूत करना: यह व्यक्ति और ईश्वर के बीच भावनात्मक संबंध को मजबूत करती है।
  4. स्वास्थ्य पर प्रभाव: वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, नियमित प्रार्थना तनाव कम करने और मानसिक स्वास्थ्य सुधारने में सहायक हो सकती है।
  5. आत्मचिंतन और अनुशासन: प्रार्थना आत्मविश्लेषण का अवसर प्रदान करती है और जीवन में अनुशासन लाती है।

प्रार्थना के प्रकार

  1. व्यक्तिगत प्रार्थना: जब कोई व्यक्ति अकेले अपने आराध्य से संवाद करता है।
  2. सामूहिक प्रार्थना: जब एक समूह या समाज मिलकर प्रार्थना करता है।
  3. आभार प्रार्थना: ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए की जाने वाली प्रार्थना।
  4. याचना प्रार्थना: किसी विशेष इच्छा या सहायता के लिए की जाने वाली प्रार्थना।
  5. मौन प्रार्थना: शब्दों के बिना, केवल मौन में अपने भाव व्यक्त करना।

प्रार्थना का प्रभाव

  • मानसिक शांति और एकाग्रता बढ़ाती है।
  • आत्मविश्वास और धैर्य को मजबूत करती है।
  • दया, करुणा और परोपकार जैसे गुणों का विकास करती है।
  • जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति देती है।

संक्षेप में, प्रार्थना एक आत्मिक अभ्यास है, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि मानसिक और सामाजिक दृष्टि से भी व्यक्ति के जीवन को समृद्ध और सकारात्मक बनाती है।

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