समानता की भावना (feelings of equality) मनुष्य को मनुष्य के निकट लाती है। हम सब यह बात भली प्रकार से जानते हैं कि आज विश्व में अनेक प्रकार की असमानताएँ हैं। यहाँ अनेक प्रकार के लोग-धनी, निर्धन, स्वस्थ, कमजोर, शिक्षित, अशिक्षित आदि रहते हैं। इन सभी लोगों का अपना एक अस्तित्व है। मानव होने के नाते, सभी को बराबरी का दर्जा दिया जाना आवश्यक है। लेकिन असमानता के कारण अक्सर ऐसा होता नहीं है। जो लोग धनी हैं वे निर्धन को हीन दष्टि से देखते हैं और उसका शोषण करते हैं। ठीक इसी प्रकार स्वस्थ लोग कमजोर लोगों को हीन समझते हैं।
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हमारे देश के लोगों के बीच भी अनेक असमानताएँ देखी जा सकती हैं। लेकिन हमारे देश के संविधान में असमानता के लिए कोई स्थान नहीं है। हमारे देश के संविधान के अनुसार वह कोई भी नियम मान्य नहीं होगा, जो लोगों के बीच असमानता उत्पन्न करता है। कानून की नजर में सब बराबर हैं। यह बात कोई महत्त्व नहीं रखती कि कोई व्यक्ति किस जाति, धर्म, कल या स्थान से सम्बन्ध रखता है। कानून की दृष्टि में इन चीजों का कोई महत्त्व नहीं है।
विश्व के सभी लोगों के बीच समानता एक मूलभूत सच्चाई है। वह एक व्यक्ति जो बहुत धन कमा लेता है और अभिमानवश अपने आपको सबसे अच्छा और श्रेष्ठ बताता है, कभी भी अकेला जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। सभी को यहाँ एक-दूसरे की समय-समय पर आवश्यकता रहती है। यदि हम किसी को हीन दृष्टि से देखेंगे तो वह समय पड़ने पर हमारी मदद के लिए नहीं आएगा। हमें अपने संविधान के प्रावधानों का भी कभी निरादर नहीं करना चाहिए जो सभी को समानता का अधिकार देते हैं।
प्राचीन समय में, हमारा समाज चार वर्गों में विभाजित था जिन्हें वर्ण कहते थे। ये चार वर्ण थे- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
ब्राह्मण सबसे ऊँचे वर्ण से सम्बन्ध रखते थे। समाज में उनका बहुत आदर-सम्मान था। उनका मुख्य कर्त्तव्य धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना और उनका विश्लेषण करना था।
ऐसी मान्यता थी कि केवल ब्राह्मणों को ही धार्मिक ग्रंथ पढ़ने और उनका विश्लेषण करने का अधिकार प्राप्त है। वे गृहस्थ लोगों के घर जाकर पूजा करवाते और रीति-रिवाज सम्पन्न करवाते। ऐसी मान्यता थी कि भगवान किसी गृहस्थ द्वारा चढ़ाई गई भेंट को केवल ब्राहमण के माध्यम से ही स्वीकारता है। इस प्रकार से. ब्राहमण भगवान और सामान्य लोगों के बीच बिचौलिए का काम करते थे। बाकी तीनों वर्ण पूजा या अन्य धर्म-कर्म के लिए ब्राह्मणों पर निर्भर थे। ब्राह्मण, क्षत्रियों और वैश्यों के बच्चों को शिक्षा भी देते थे।
क्षत्रियों का कार्य था देश की रक्षा करना। वे शत्रुओं से युद्ध करके देश की रक्षा करते थे। वे समाज के प्रति एक महत्त्वपूर्ण दायित्व का निर्वाह करते थे। यद्यपि, सामाजिक स्तर के अनुसार उनका स्थान ब्राहमण से नीचा था लेकिन व्यवहार में, वे उनके समतुल्य थे।
तीसरा वर्ण वैश्य, कृषि उत्पादन और व्यापार के लिए उत्तरदायी था। इनमें से बहुत से लोग कृषि करते थे, कुछ विभिन्न वस्तुओं का व्यापार करते थे। सामाजिक प्रतिष्ठा में वैश्यों का स्थान ब्राह्मण और क्षत्रियों से नीचे था।
चौथा वर्ण शूद्रों का था। समाज में उनका स्थान सबसे निम्न था। उनका कर्तव्य समाज के बाकी तीनों वर्गों की सेवा करना था। अपना जीवन जीने के लिए वे बाकी तीनों वर्णों की दया पर निर्भर थे।
इस प्रकार से प्राचीन भारत असमानता के सिद्धांतों पर आधारित था। ब्राहमणों के पास सर्वोच्च अधिकार और शक्तियाँ थीं जबकि शूद्र निम्न वर्ण के लोग माने जाते थे। ब्राह्मण और अन्य उच्च वर्ण के लोग शूद्रों से घृणा करते थे। वे उन्हें अछूत मानते थे और अपने घर के भीतर नहीं आने देते थे। जहाँ शूद्र रहते थे वहाँ से आने वाली हवा को भी अशुद्ध माना जाता था।
उच्च वर्ण के लोगों को यह भी अधिकार था कि वे शूद्रों को कोई भी सजा दें या कैसा भी व्यवहार करें। एक ब्राहमण एक अपराध के लिए क्षत्रिय को धन अदा करने की सजा दे सकता था, वह उसी अपराध के लिए वैश्य को पीट सकता था और जब कोई शूद्र वैसा ही अपराध करे तो उसे उसके लिए मृत्युदंड दिया जा सकता था।
शूद्रों को सार्वजनिक स्थलों पर जाने की अनुमति नहीं थी, जहाँ तीनों उच्च वर्ण के लोग प्रायः जाते थे। वे उन स्रोतों से जल नहीं ले सकते थे जहाँ से उच्च वर्ण के लोग जल लेते थे।
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उच्च वर्ण के लोग निम्न वर्ण के लोगों के साथ बैठकर भोजन नहीं खाते थे। यदि कोई उच्च वर्ण का व्यक्ति किसी शूद्र को छू ले तो उसे अपने वर्ण में वापस लौटने के लिए धार्मिक कर्मकांड करने पड़ते थे, नहीं तो उसे अपनी ही जाति से निष्कासित कर दिया जाता था।
इस प्रकार से, प्राचीन समाज में अत्यधिक असमानता थी। इन असमानताओं ने हमारा बहुत नुकसान किया है। इनसे हम वर्गों में बँट गए और शक्तिहीन हो गए। जब हम पर विदेशी आक्रमण हुए, हम उन आक्रमणों का सामना एकजुट होकर नहीं कर सके। विभिन्न वर्गों के बीच भी विरोधी भावना आ गई थी। उच्च वर्ण के लोग निम्न वर्ण के लोगों को संदेह की दष्टि से देखते थे और निम्न वर्ण के लोग उच्च वर्ण के लोगों को नीचा दिखाने के अवसर ढूंढते रहते थे।
समानता की भावना का अभाव आज भी लोगों के बीच देखा जा सकता है, जबकि अछूत और भेदभाव की भावना को जड़ से मिटाने के अनेक प्रयास किए जा रहे हैं।
एक बेहतर कल के लिए बच्चों को सिखाया जाना चाहिए कि सभी मनुष्य बराबर है। असमानता को कहीं भी स्थान नहीं दिया जाना चाहिए। समानता की भावना से ही हम मिल-जुलकर एक शक्ति के रूप में प्रगति की राह पर अग्रसर हो सकत हैं।