प्रमुख ऐतिहासिक स्थल
ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय इतिहास में कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल हैं जिनके अध्ययन बिना इतिहास का अध्ययन अधूरा ही रह जायेगा। इसी कारण से इस पृष्ठ में प्रमुख ऐतिहासिक स्थल और उनकी प्रसिद्धि के कारण के बारे में अध्ययन करेंगे।
हड़प्पा
हड़प्पा की खोज 1921 में दयाराम साहनी ने की थी। वर्त्तमान में यह स्थान मोंटगोमरी, पंजाब, पकिस्तान में आता है। यह रावी नदी तट पर स्थित है। हड़प्पा मोण्टगोमरी (पाकिस्तान) में सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए। यह कब्रिस्तान तथा अनाज की अन्नागारों के लिए प्रसिद्ध है। ये अन्नागारे 6-6 के कॉलम में दोनों ओर बनी हुई थी। यहां स्वास्तिक चिन्ह के प्रमाण मिले। यहाँ पर ताबूत शबाधान (Coffin Burial) के भी प्रमाण मिले तथा एक शिवलिंग प्राप्त हुआ।
मोहनजोदड़ो
मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में राखल दास बैनर्जी ने की थी। मोहनजोदड़ो, लरकाना, सिंध (पाकिस्तान) में सिंध नदी के तट पर स्थित है। यह सिन्धु घाटी की सभ्यता का प्रमुख स्थल है। यह सार्वजनिक स्नान घर के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ एक बृहद अन्नागार भी मिली। यहाँ पर जल पूजा के प्रमाण मिले। काँसे की एक नाचती हुई मुद्रा में लड़की की एक मूर्ती प्राप्त हुई। यहाँ पर पशुपति शिवा की मुहरें भी मिली। सूती वस्त्रो के उपयोग की जानकारी सर्वप्रथम यहीं से प्राप्त हुई।
चन्हूदड़ो
चन्हूदड़ो की खोज 1931 में नानी गोपाल मजूमदार (N.G. Majumdar) ने की थी। यह वर्त्तमान में सिंध, पकिस्तान में स्थित है। यह एक औद्योगिक नगर है। यहाँ पर मिट्टी, काँसे आदि के बने हुए खिलौनों की एक फैक्टरी प्राप्त हुई है। और यहाँ मुहर बनाने की गोदाम भी मिली है। यहाँ पर जो मुहरे प्राप्त हुई हैं उनमें से अधिकांश ‘सेलखड़ी’ पत्थरों से बनी हुई है। यहाँ के लोग जानवरों की हड्डियों का प्रयोग करके सुई का निर्माण करते थे। काँसे की बनी हुई बैलगाड़ी के भी प्रमाण मिले। लिपस्टिक के भी प्रमाण यहाँ से मिले।
लोथल
यह अहमदाबाद, गुजरात में भोगावा नदी के तट पर स्थित है। इसकी खोज 1951 में शिकारीपुरा रंगनाथ राव (S.R. Rao) ने की थी। सिन्धु घाटी की सभ्यता के बन्दरगाह के चिह्न प्राप्त हुए हैं। इसे छोटा हड़प्पा या छोटा मोहनजोदड़ो भी कहा जाता है। यहॉं रंगपुर में चावल की भूषी के प्रमाण मिले। रंगपुर लोथल के पास ही एक स्थान है। शतरंज के भी प्रमाण मिले। यही से भारत की सबसे बड़ी कुप्रथा सतीप्रथा के प्रमाण भी मिले थे। अग्नि कुंड (Fire Altar) जिसमें यहाँ के लोग पूजा करते थे के भी प्रमाण मिले।
रोपड़ (रूपनगर)
भारत के पंजाब राज्य के रूपनगर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह सिन्धु घाटी की सभ्यता का एक अन्य प्रमुख नगर है। रूपनगर एक अति प्राचीन स्थल है, नगर का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता तक जाता है। रूपनगर सतलुज के दक्षिणी किनारे पे बसा है। सतलुज नदी के दूसरी ओर शिवालिक के पहाड़ हैं। रूपनगर चंडीगढ़ (सबसे समीप विमानक्षेत्र एवं पंजाब की राजधानी) से लगभग 50 कि.मी. की दूरी पर है। शहर के उत्तरी सीमा पर हिमाचल प्रदेश और पश्चिमि सीमा पर शहीद भगत सिंह नगर है। रूपनगर मे कई ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल है, जिनमे गुरुद्वारा श्री भट्टा साहिब तथा गुरुद्वारा श्री टिब्बी साहिब शामिल है।
आलमगीरपुर
पश्चिम उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले में यमुना की सहायक हिण्डन नदी पर स्थित इस पुरास्थल की खोज 1958 में ‘यज्ञदत्त शर्मा‘ द्वारा की गयी। आलमीरपुर गंगा-यमुना में पहला स्थल था जहां से हड़प्पा कालीन अवशेष प्रकाश में आए थे। यह हड़प्पा संस्कृति का सर्वाधिक पूर्वी पुरास्थल हैं। यह स्थल सैंधव सभ्यता की अन्तिम अवस्था को सूचित करता है। यहाँ मिट्टी के बर्तन, मनके एवं पिण्ड मिले है। यहाँ एक गर्त से रोटी बेलने की चौकी तथा कटोरे के टुकड़े प्राप्त हुए है। किन्तु मातृदेवी की मूर्ति और मुद्रांएँ नहीं मिली है।
कालीबंगा
कालीबंगा की खोज 1960 में अम्बानन्द ने की थी। यह हनुमानगढ़, राजस्थान में घघ्घर नदी के किनारे (सरस्वती – सिंध वाली) स्थित है। यहाँ भी सिन्धु घाटी की सभ्यता के चिह्न प्राप्त हुए हैं।
- यहाँ काले रंग की चूड़ियां मिली है।
- ऊट की हड्डिया भी प्राप्त हुई है।
- यहाँ सर्जरी (शल्य चिकित्सा) के भी प्रमाण मिले हैं।
- लकड़ी की बनी बेहतर जल निकास प्रणाली के भी प्रमाण यहाँ पर मिले।
- यहाँ पक्की तथा कच्ची दोनों प्रकार के ईटों के प्रमाण मिले।
- सजावटी ईटें भी प्राप्त हुई हैं।
रंगपुर
रंगपुर गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में सुकभादर नदी के समीप स्थित है। इस स्थल की खुदाई वर्ष 1953-1954 में ए. रंगनाथ राव द्वारा की गई थी। यहाँ पर पूर्व हड़प्पा कालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। रंगपुर से मिले कच्ची ईटों के दुर्ग, नालियां, मृदभांड, बांट, पत्थर के फलक आदि महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ धान की भूसी के ढेर मिले हैं।
सुरकोटदा
सुरकोटदा या ‘सुरकोटडा’ गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित है। इस स्थल से हड़प्पा सभ्यता के विस्तार के प्रमाण मिले हैं। इसकी खोज 1964 में ‘जगपति जोशी‘ ने की थी इस स्थल से ‘सिंधु सभ्यता के पतन‘ के अवशेष परिलक्षित होते हैं। यहाँ पर एक बहुत बड़ा टीला था। यहाँ पर किये गये उत्खनन में एक दुर्ग बना मिला, जो कच्ची ईंटों और मिट्टी का बना था। परकोटे के बाहर एक अनगढ़ पत्थरों की दीवार थी। मृद्भाण्ड सैंधव सभ्यता के हैं।
धौलावीरा
धौलावीरा की खोज 1967 में जगपति जोशी ने की थी, इसके बाद 1968 एवं 1991 में भी इतिहासकारों ने यहाँ पर खोज की और उन्हें कुछ प्रमाण मिले। यह कच्छ, गुजरात में लूनी नदी के किनारे स्थित है। यह नदी अरब सागर से पहले विलुप्त हो जाती है। यहाँ एक स्टेडियम के प्रमाण मिले हैं। यहां एक लकड़ी का बोर्ड मिला जिसका प्रयोग सूचना पट(Signing Board) के रूप में होता था।
बणावली
बणावली हरियाणा के हिसार ज़िले में स्थित यहाँ से दो सांस्कृतिक अवस्थाओं के अवषेश मिले हैं। हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पाकालीन इस स्थल की खुदाई 1973-74 ई. में ‘रवीन्द्र सिंह विष्ट‘ के नेतृत्व में की गयी।
मीताथल
मीताथल हरियाणा के हिसार ज़िले में स्थित इस स्थान से हड़प्पा कालीन सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। इसकी खुदाई सन् 1968 ई. में की गयी। हड़प्पा नगरों के समान ही यह नगर भी दो भागों में विभाजित था। इस नगर को योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया लगता है। चौपड़ की बिसात के नमूने की सड़कों और गलियों के दोनों ओर घर बसे हुए थे, जिनके बनाने में कच्ची ईंटों का प्रयोग किया गया था। ऐसी ही ईंटें कालीबंगा से प्राप्त हुई हैं। यहाँ से कई प्रकार के मृद्भाण्ड भी प्राप्त हुए हैं।
अलीमुराद
अलीमुराद सिंध प्रांत में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। इस स्थान से पुरातात्त्विक महत्त्व की कई वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। इस नगर से कुआं, मिट्टी के बर्तन, कार्निलियन के मनके एवं पत्थरों से निर्मित एक विशाल दुर्ग के अवशेष मिले हैं। इसके अतिरिक्त इस स्थल से बैल की लघु मृण्मूर्ति एवं कांसे की कुल्हाड़ी भी मिली है।
सुत्कागेनडोर
यह स्थल दक्षिण बलूचिस्तान में दाश्त नदी के किनारे स्थित है। हड़प्पा संस्कृति की सुदूर पश्चिमी बस्ती थी। इसकी खोज 1927 ई. में ‘ऑरेल स्टाइन‘ ने की थीं। हड़प्पा संस्कृति की परिपक्व अवस्था के अवशेष मिले हैं। संभवतः यह समुद्र तट पर अवस्थित एक बन्दरगाह था। यहाँ से मनुष्य की अस्थि-राख से भरा बर्तन, तांबे की कुल्हाड़ी, मिट्टी से बनी चूड़ियां एवं बर्तनों के अवशेष मिले है। इसका दुर्ग एक प्राकृतिक चट्टान पर बसाया गया था।
कुनुतासी
गुजरात के राजकोट ज़िले में स्थित इस स्थल की खुदाई ‘एम.के. धावलिकर‘, ‘एम.आर.आर. रावल‘ तथा ‘वाई.एम. चितलवास‘ द्वारा करवाई गई। यहाँ से विकसित तथा उत्तरकालीन सैंधव कालीन स्तर प्रकाश में आए हैं। यहाँ से प्राप्त अवशेषों से ज्ञात होता है कि यहाँ व्यापार केन्द्र, निगरानी स्तम्भ तथा बन्दरगाह में खुदाई से प्राप्त अवशेषों में लम्बी सुराहियां, दो हत्थे कटोरे, मिट्टी खिलौने गाड़ी आदि प्रमुख हैं। एक मकान के कमरे से सेलखड़ी के हज़ारों छोटे मनके तथा तांबे की कुछ चूड़ियां एवं दो अंगूठी मिली है।
कोटदीजी
कोटदीजी सिंध प्रांत आधुनिक पाकिस्तान के ‘खैरपुर‘ नामक स्थान पर स्थित प्राचीन सैंधव सभ्यता का एक केन्द्र था। सर्वप्रथम इसकी खोज ‘धुर्ये‘ ने 1935 ई. में की। नियमित खुदाई 1953 ई. में फज़ल अहमद ख़ान द्वारा सम्पन्न करायी गयी। कोटदीजी के विस्तृत स्तर में कांस्य की चपटे फलक वाली कुल्हाड़ी, तीराग्र, छेनी, अंगूठी व दोहरी एवं इकहरी चूड़ियाँ आदि वस्तुएँ मिली हैं।
बालाकोट
बालाकोट नालाकोट से लगभग 90 किमी की दूरी पर बलूचिस्तान के दक्षिणी तटवर्ती पर स्थित था। इसका उत्खनन 1963-1970 के बीच ‘जॉर्ज एफ.डेल्स’ द्वारा किया गया। यह स्थल एक बन्दरगाह के रूप में था। यहाँ से हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पा कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।
माण्डा
माण्डा जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू में चेनाब नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित यह विकसित हड़प्पा संस्कृति का सबसे उत्तरी स्थल है। इसका उत्खनन 1982 में ‘जे.पी. जोशी’ तथा ‘मधुबाला’ द्वारा करवाया गया था। यहाँ विशेष प्रकार के मृदभांड (मिट्टी के बर्तन), गैर हड़प्पा से सम्बद्ध कुछ ठीकरा पक्की मिट्टी की पिण्डिकाएं (टेराकोटा केक) आदि प्राप्त हुए है।
भगवानपुरा
भगवानपुरा हरियाणा के कुरुक्षेत्र ज़िले में सरस्वती नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। जी.पी. जोशी ने इसका उत्खनन करवाया था। यहाँ के प्रमुख अवशेषों में सफ़ेद, काले तथा आसमानी रंग की कांच की चूड़ियां, तांबे की चूड़ियां प्रमुख है।
मुंडीगाक
मुंडीगाक अफ़ग़ानिस्तान स्थित सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थलों में से एक है। हिन्दुकुश के उत्तर में अफ़ग़ानिस्तान में स्थित ‘मुंडीगाक’ और ‘सोर्तगोई’ दो पुरास्थल हैं। मुंडीगाक का उत्खनन कार्य जे. एम. कैसल द्वारा किया गया था। सिंधु सरस्वती सभ्यता के लगभग 1400 स्थलों में से 917 भारत में तथा 481 पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान (सोर्तगोई व मुंडीगाक) में हैं।
देसलपुर
गुजरात के भुज ज़िले में स्थित ‘देसलपुर’ की खुदाई ‘पी.पी. पाण्ड्या’ और ‘एक. के. ढाके’ द्वारा किया गया। बाद में ‘सौनदरराजन’ द्वारा भी उत्खनन किया गया। इस नगर के मध्य में विशाल दीवारों वाला एक भवन था जिसमें छज्जे वाले कमरे थे जो किसी महत्त्वपूर्ण भवन को चिह्नित करता है।
रोजदी
रोजदी गुजरात के सौराष्ट्र ज़िले में स्थित था। यहाँ से कच्ची ईटों के बने चबूतरों और नालियों सहित बिल्लौर (या काले भंग) एवं गोमेद पत्थर के बने बांट, गोमेद, विल्लौर के छेददार मनके और पक्की मिट्टी के मनके मिले है।
बोधगया
बिहार में स्थित है। यहाँ महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। बिहार की राजधानी पटना के दक्षिणपूर्व में लगभग 101 किलोमीटर दूर स्थित बोधगया गया जिले से सटा एक छोटा शहर है। बोधगया में बोधि पेड़़ के नीचे तपस्या कर रहे भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तभी से यह स्थल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्ष 2002 में यूनेस्को द्वारा इस शहर को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया।
कुशीनगर
उत्तर प्रदेश में स्थित है। यहाँ महात्मा बुद्ध को ‘निर्वाण’ प्राप्त हुआ था। भगवान बुद्ध से सम्बंधित कई ऐतिहासिक स्थानों के लिए कुशीनगर संसार भर में प्रसिद्ध है। ज़िले का मुख्यालय कुशीनगर से लगभग 15 कि.मी. दूर पडरौना में स्थित है। कुशीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 28 पर गोरखपुर से 51 कि.मी. की दूरी पर पूरब में स्थित है। महात्मा बुद्ध का निर्वाण यहीं हुआ था। यहाँ मुख्यत: विश्व भर के बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण के लिये आते हैं।
सारनाथ
उत्तर प्रदेश में स्थित है। यहाँ महात्मा बुद्ध ने प्रथम धार्मिक उपदेश दिया था। सन 1905 में पुरातत्त्व विभाग ने यहाँ खुदाई का काम किया, उस समय बौद्ध धर्म के अनुयायियों और इतिहासवेत्ताओं का ध्यान इस पर गया। सम्राट अशोक के समय में यहाँ बहुत से निर्माण-कार्य हुए। सिंहों की मूर्ति वाला भारत का राजचिह्न सारनाथ के अशोक के स्तंभ के शीर्ष से ही लिया गया है। यहाँ का ‘धमेक स्तूप’ सारनाथ की प्राचीनता का आज भी बोध कराता है। विदेशी आक्रमणों और परस्पर की धार्मिक खींचातानी के कारण आगे चलकर सारनाथ का महत्त्व कम हो गया था। मृगदाय में सारंगनाथ महादेव की मूर्ति की स्थापना हुई और स्थान का नाम सारनाथ पड़ गया।
लुम्बिनी
नेपाल में स्थित है। यहाँ महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था। पालि ग्रन्थों में बुद्ध के जन्मस्थान के तौर पर लुम्बनी के दो उल्लेख मिलते हैं, पहला नलक सुत्त में समाहित एक वर्णनात्मक कविता में और दूसरा कथावस्तु में। लेकिन जन्म के आरम्भिक विवरण संस्कृत ग्रन्थों, महावस्तु और ललितविस्तर में हैं, दोनों को ही पहली या दसरी शताब्दी से पहले का नहीं माना जा सकता।
नालन्दा
बिहार में स्थित है। यह प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय के लिए प्रसिद्ध है। भारत में प्राचीनकाल में बिहार ज़िले में नालन्दा विश्वविद्यालय था, जहां देश-विदेश के छात्र शिक्षा के लिए आते थे। आजकल इसके अवशेष दिखलाई देते हैं। पटना से 90 किलोमीटर दूर और बिहार शरीफ़ से क़रीब 12 किलोमीटर दक्षिण, विश्व प्रसिद्ध प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय, नालंदा के खण्डहर स्थित हैं। यहाँ 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे।
तक्षशिला
पाकिस्तान में स्थित है। यहाँ प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय स्थित है। तक्षशिला प्राचीन भारत में गांधार देश की राजधानी और शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ का विश्वविद्यालय विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में शामिल है। यह हिन्दू एवं बौद्ध दोनों के लिये महत्वपूर्ण केन्द्र था। चाणक्य यहाँ पर आचार्य थे। 405 ई. में फाह्यान यहाँ आया था। तक्षशिला वर्तमान समय में पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के रावलपिण्डी ज़िले की एक तहसील है।
वैशाली
बिहार में स्थित है। महावीर स्वामी का जन्म इसके निकट कुण्डग्राम में हुआ था। वैशाली गंगा घाटी का नगर है, जो आज के बिहार एवं बंगाल प्रान्त के बीच सुशोभित है। इस नगर का एक दूसरा नाम ‘विशाला’ भी था। इसकी स्थापना महातेजस्वी ‘विशाल’ नामक राजा ने की थी, जो भारतीय परम्परा के अनुसार इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए थे। इसकी पहचान मुजफ्फरपुर ज़िले में स्थित आधुनिक बसाढ़ से की जाती है। वहाँ के एक प्राचीन टीले को स्थानीय जनता अब भी ‘राजा विशाल का गढ़’ कहती है।
राजगिरि (राजगृह)
बिहार में स्थित है। महावीर स्वामी का निर्वाण स्थान ‘पावापुरी‘ इसके निकट है। वसुमतिपुर, वृहद्रथपुर, गिरिब्रज और कुशग्रपुर के नाम से भी प्रसिद्ध रहे राजगृह को आजकल राजगीर के नाम से जाना जाता है। पौराणिक साहित्य के अनुसार राजगीर बह्मा की पवित्र यज्ञ भूमि, संस्कृति और वैभव का केन्द्र तथा जैन धर्म के 20 वे तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ स्वामी के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान कल्याणक एवं 24 वे तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम देशना स्थली भी रहा है साथ ही भगवान बुद्ध की साधनाभूमि राजगीर में ही है।
इसका ज़िक्र ऋगवेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय उपनिषद, वायु पुराण, महाभारत, वाल्मीकि रामायण आदि में आता है। जैनग्रंथ विविध तीर्थकल्प के अनुसार राजगीर जरासंध, श्रेणिक, बिम्बसार, कनिक आदि प्रसिद्ध शासकों का निवास स्थान था। जरासंध ने यहीं श्रीकृष्ण को हराकर मथुरा से द्वारिका जाने को विवश किया था।
साँची
मध्य प्रदेश में स्थित है। बौद्ध स्तूप, 42 फुट ऊँचा होने के कारण प्रसिद्ध है। भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन ज़िले में स्थित एक छोटा सा गांव है। यह भोपाल से 46 किमी पूर्वोत्तर में तथा बेसनगर और विदिशा से 10 किमी की दूरी पर मध्य-प्रदेश के मध्य भाग में है। यहाँ बौद्ध स्मारक हैं, जो कि तीसरी शताब्दी ई.पू. से बारहवीं शताब्दी के बीच के हैं। यह रायसेन ज़िले की एक नगर पंचायत है। यहीं यह स्तूप स्थित है। इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण भी हैं। यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस का प्रतीक है। साँची का स्तूप, सम्राट अशोक महान् ने तीसरी शती, ई.पू. में बनवाया था।
बादामी
कर्नाटक में स्थित है। चालुक्य वंश के गुफा मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है। बादामी नगर उत्तरी कर्नाटक (भूतपूर्व मैसूर) राज्य के दक्षिण-पश्चिमी भारत में है। इस नगर को प्राचीन समय में वातापी के नाम से जाना जाता था। और यह चालुक्य राजाओं की पहली राजधानी था।
श्रीरंगपट्टम
कर्नाटक में स्थित है। यहाँ टीपू सुल्तान की राजधानी थी। परम्पराओं के अनुसार कावेरी नदी में बने सारे टापू श्री रंगानाथस्वामी को समर्पित हैं, और प्राचीन काल में तीन सबसे बड़े टापुओं में इस देवता के मन्दिर थे। यह तीनों नगर जहाँ रंगानाथस्वामी को समर्पित तीर्थस्थल मौजूद हैं इस तरह हैं: आदि रंगा – श्रीरंगपट्टण में, मध्य रंगा – शिवसमुद्र में, अंत्य रंगा – श्रीरंगम में।
उज्जैन
मध्य प्रदेश में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। उज्जैन भारत में क्षिप्रा नदी के किनारे बसा मध्य प्रदेश का एक प्रमुख धार्मिक नगर है। यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि लिये हुआ एक प्राचीन शहर है। उज्जैन महाराजा विक्रमादित्य के शासन काल में उनके राज्य की राजधानी थी। इसको कालिदास की नगरी भी कहा जाता है। उज्जैन में हर 12 वर्ष के बाद ‘सिंहस्थ कुंभ’ का मेला जुड़ता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ‘महाकालेश्वर’ इसी नगरी में है। मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध नगर इन्दौर से यह 55 कि.मी. की दूरी पर है। उज्जैन के अन्य प्राचीन प्रचलित नाम हैं- ‘अवन्तिका’, ‘उज्जैयनी’, ‘कनकश्रन्गा’ आदि।
चिदम्बरम्त
तमिलनाडु में स्थित है। चोलवंश की राजधानी एवं नटराज मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। चिदंबरम तमिलनाडु के कडलूर जिले में मौजूद नगरपालिका है। यह चिदंबरम मंदिर के लिये प्रसिद्ध है।
कांचीपुरम
तमिलनाडु में स्थित कैलाश नाथ मन्दिर के कारण प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह पलार नदी के किनारे स्थित है, एवं अपनी रेशमी साडि़यों एवं मन्दिरों के लिये प्रसिद्ध है। यहां कई बडे़ मन्दिर हैं, जैसे वरदराज पेरुमल मन्दिर भगवान विष्णु के लिये, भगवान शिव के पांच रूपों में से एक को समर्पित एकाम्बरनाथ मन्दिर, कामाक्षी अम्मा मन्दिर, कुमारकोट्टम, कच्छपेश्वर मन्दिर, कैलाशनाथ मन्दिर, इत्यादि। कांचीपुरम प्राचीन चोल और पल्लव राजाओं की राजधानी थी। मंदिरों के अतिरिक्त यह शहर हैंडलूम इंडस्ट्री और खूबसूरत रेशमी साड़ियों के लिए सर्वविख्यात है।
तन्जौर
तमिलनाडु में स्थित है। चोलवंश की राजधानी, राज राजेश्वर का मन्दिर एव प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। तमिलनाडु के त्रिचनापल्ली जिले में स्थित तन्जौर नामक नगर प्राचीन समय में सुप्रसिद्ध चोल शासकों की राजधानी थी। यह नगर कावेरी नदी के दक्षिण की ओर बसा है। चोल राजाओं के काल में इसकी महती उन्नति हुई। प्रसिद्ध चोल शासक राजराज ने 1000 ई. के लगभग यहाँ के बृहदीश्वर मन्दिर का निर्माण करवाया था।
हम्पी
कर्नाटक में स्थित है। विजयनगर सामाज्य की राजधानी के लिए प्रसिद्ध है। तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित यह नगर अब हम्पी (पम्पा से निकला हुआ) नाम से जाना जाता है और अब केवल खंडहरों के रूप में ही अवशेष है। इन्हें देखने से प्रतीत होता है कि किसी समय में यहाँ एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती होगी। भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्को के विश्व के विरासत स्थलों में शामिल किया गया है।
शृंगेरी
कर्नाटक में स्थित है। शंकराचार्य मठ के कारण प्रसिद्ध है। आदि शंकराचार्य ने यहाँ कुछ दिन वास किया था और शृंगेरी तथा शारदा मठों की स्थापना की थी। शृंगेरी मठ प्रथम मठ है। यह आदि वेदान्त से संबंधित है। यह शहर तुंग नदी के तट पर स्थित है, व आठवीं शताब्दी में बसाया गया था।
द्वारिका
गुजरात में स्थित है। कृष्ण की राजधानी के कारण प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह हिन्दुओं के साथ सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक तथा चार धामों में से एक है। यह सात पुरियों में एक पुरी है। जिले का नाम द्वारका पुरी से रखा गया है जीसकी रचना 2013 में की गई थी। यह नगरी भारत के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है। द्वारका भारत के सात सबसे प्राचीन शहरों में से एक है।
श्रवणबेलगोला
कर्नाटक में स्थित है। गोमतेश्वर की 57 फुट ऊँची प्रतिमा स्थित है। यह एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ है। कन्नड़ में ‘वेल’ का अर्थ होता है श्वेत, ‘गोल’ का अर्थ होता है सरोवर। शहर के मध्य में एक सुंदर श्वेत सरोवर के कारण यहां का नाम बेलगोला और फ़िर श्रवणबेलगोला पड़ा। जैन ग्रंथों के अनुसार अपने जीवन के अंतिम समय में चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन परंपरा के अनुसार श्रवणबेलगोला में अपने शरीर का त्याग कर दिया। यह स्थान विंध्यगिरि और चंद्रगिरि के मध्य स्थित है। विंध्यगिरि पर 7 तथा चंद्रगिरि पर 14 जैन मंदिर हैं। एक श्री बाहुबली स्वामी का मंदिर है।
भारतीय इतिहास
- प्रमुख भारतीय राजवंश
- भारत में ब्रिटिश शासन
- भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन (1857-1947)
- धार्मिक एवं सामाजिक आन्दोलन
- प्रमुख ऐतिहासिक स्थल
- भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध व्यक्ति
- भारतीय इतिहास के प्रमुखं युद्ध
- राष्ट्रीय आंदोलनों की महत्वपूर्ण तिथियां
- विद्रोह के प्रमुख केंद्रों का नेतृत्व
- राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन सम्बन्धी प्रमुख वचन एवं नारे
- राष्ट्रीय आंदोलन में बनी संस्थाए
- समाचार पत्र तथा पत्रिकाएँ व उनके संस्थापक
- भारत के प्रमुख नेता तथा उनके उपनाम