भूमि में पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं- भूमि को जोतकर कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाए, जिससे पोषक तत्वों की पूर्ति पर्यावरण से स्वतः होती रहे। फसल चक्र के नियमों का पालन किया जाए। भूमि में पोषक तत्वों की तत्काल पूर्ति के लिए विभिन्न रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाए।
भूमि में पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए उपाय
- भूमि को जोतकर कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाए, जिससे पोषक तत्वों की पूर्ति पर्यावरण से स्वतः होती रहे।
- फसल चक्र के नियमों का पालन किया जाए।
- भूमि में पोषक तत्वों की तत्काल पूर्ति के लिए विभिन्न रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाए।
फसल उत्पादन में जिन 16 आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, उनमें प्रमुख रूप से नत्रजन व स्फूर (फास्फोरस) तत्व का महत्व सबसे अधिक होता है।
पोषक तत्वों को पौधों की आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार वगीकृत किया गया है-
- मुख्य पोषक तत्व- नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश।
- गौण पोषक तत्व- कैल्सियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक।
- सूक्ष्म पोषक तत्व- लोहा, जिंक, कॉपर, मैग्नीज, है।
- मोलिब्डेनम, बोरान एवं क्लोरीन।
इन तत्वों में से किसी भी एक तत्व की कमी से जहां फसल उत्पादन में गंभीर रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अब यह भी देखा और अनुभव किया जा रहा है कि लगातार रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से जिस फसल की 10-15 वर्ष में जो उत्पादकता थी, या तो उस उत्पादकता में कमी आयी है अथवा पहले जैसा उत्पादन लेने में डेढ़ से दो गुना अधिक उर्वरक देना पड़ रहा है जिससे भूमि की गुणवत्ता भी नष्ट हो रही है। फास्फोरस युक्त रासायनिक उर्वरक जैसे सुपर फास्फेट आदि की जो भी मात्रा, हम फसल उत्पादन के लिए खेतों में डालते हैं उसका सिर्फ 20 से 25 प्रतिशत भाग ही पौधों को उपलब्ध हो पाता है, शेष स्फूर मिट्टी के कणों द्वारा स्थिर कर लिया जाता है अथवा रासायनिक क्रियाओं द्वारा अघुलनशील मिश्रण में परिवर्तित हो जाता है। फलस्वरूप यह महत्वपूर्ण तत्व पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाता। स्फूर तत्व की यह स्थिति विशेषकर काली मिट्टी (कन्हार) तथा हल्की मिट्टी (भाटा) में देखने को ज्यादा मिली है।
स्फूर तत्वों की औसत खपत आज मात्र 10 से 11 किलो प्रति हेक्टर है जो भरपूर उत्पादन के लिए अत्यंत कम आंकी गई है। अतः जमीन में अनुपलब्ध स्फूर का अधिक से अधिक दोहन कर उसका समुचित उपयोग करना, आज की आवश्यकता है।
भूमि में कई प्रकार के सूक्ष्म जीव पाये जाते हैं। जिसमें सुडोमोनास, बैसिलस बैक्टिरिया समूह में आते हैं तथा पेनीसिलीयम, ट्रायकोडर्मा और एस्परजिलस, कवक (फफूंद) श्रेणी में आते हैं। इन दोनों समूहों के सूक्ष्म जीव अनुपलब्ध व अघुलनशील स्फूर को घुलनशील स्फूर में बदलकर पौधों को उपलब्ध कराने की क्षमता रखते हैं। ऐसे ही सूक्ष्म जीवों को स्फूर घोलक जैव उर्वरक (पी.एस.बी.) के नाम से जाना जाता है।
भूमि में ये जीवाणु साधारणतया उचित वातावरण मिलने पर सेंद्रीय पदार्थ (कार्बनिक) के अपचयन क्रिया के फलस्वरूप कार्बनिक अम्ल जैसे आक्जेलिक, लेक्टीक, मेलिक, साइट्रिक, टारटेरिक आदि प्रकार के अम्ल स्रावित करते हैं। सूक्ष्म जीवाणुओं का यही गुण अघुलनशील और अनुपलब्ध स्फूर तत्व को घुलनशील तत्व में बदलकर पौधों को उपलब्ध कराने में मदद करते हैं। स्फूर घोलक ये जीवाणु राक फास्फेट व ट्रायकेल्सियम फास्फेट जैसे अघुलनशील स्फूरधारित उर्वरक के कणों को सूक्ष्म आकार में बदलकर घुलनशील बना पौधों को पोषक तत्व के रूप में उपलब्ध करा देता है।
पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व
- पौधों के सामान्य विकास एवं वृद्धि हेतु कुल 16 पोषक तत्वोंकी आवश्यकता होती है। इनमें से किसी एक पोषक तत्व की कमी होने पर पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और भरपूर फसल नहीं मिलती।
- कार्बन, हाइड्रोजन व आक्सीजन को पौधे हवा एवं जल से प्राप्त करते हैं।
- नाइट्रोजन, फस्फोरस एवं पोटैशियम को पौधे मिट्टी से प्राप्त करते है। इनकी पौधों को काफी मात्रा में जरूरत रहती है। इन्हे प्रमुख पोषक तत्व कहते है।
- कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक को पौधे कम मात्रा में ग्रहण करते है। इन्हें गौण अथवा द्वितीयक पोषक तत्त्व कहते है।
- लोहा, जस्ता, मैंगनीज, तांबा, बोरोन, मोलिब्डेनम और क्लोरीन तत्वों की पौधों को काफी मात्रा में आवश्यकता पडती है। इन्हे सूक्ष्म पोषक तत्त्व कहते है।