पर्यावरण सम्मेलन अर्थ एवं परिभाषा
पर्यावरण सम्मेलन उन सम्मेलनों को कहते है जो पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक स्तर पर आयोजित किये गए। और पर्यावरण संरक्षण का तात्पर्य है कि हम अपने चारों ओर के वातावरण को संरक्षित करें तथा उसे जीवन के अनुकूल बनाए रखें। क्यूंकि पर्यावरण और प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं।
जलवायु परिवर्तन सम्मेलन
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक स्तर पर चर्चाएँ प्रारंभ हुईं। 1972 मे स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पहला सम्मेलन आयोजित किया गया। इन सम्मेलनों में तय हुआ कि प्रत्येक देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए घरेलू नियम बनाएगा। इस आशय की पु्ष्टि हेतु 1972 में ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का गठन किया गया तथा नैरोबी को इसका मुख्यालय बनाया गया।
जलवायु परिवर्तन पर हुए सम्मेलनों को ही पर्यावरण सम्मेलन कहते हैं, जो पर्यावरण संरक्षण लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक स्तर पर आयोजित किये गए।
प्रमुख पर्यावरण सम्मेलन
1. स्टॉकहोम सम्मेलन – 1972
स्टॉकहोम सम्मेलन में ‘सभी के लिए एक ही पृथ्वी‘ सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया था, जिसके अंतर्गत कहा गया कि कोई भी राष्ट्र विशेष अपने क्षेत्र में ऐसी कोई भी गतिविधि नहीं करेगा जिसका प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता हो। सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का जन्म हुआ जिसका वर्तमान मुख्यालय केन्या देश के नैरोबी शहर में स्थित है।
- स्टॉकहोम सम्मेलन का आयोजन 5 जून 1972 को स्वीडन के स्टॉकहोम शहर में किया गया था।
- स्टॉकहोम सम्मेलन में दुनिया के 119 देशों ने भाग लिया था।
विश्व पर्यावरण दिवस – 5 जून
स्टॉकहोम सम्मेलन की वर्षगांठ के तौर पर प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का निर्णय 1972 में लिया गया। सर्वप्रथम सदस्य राष्ट्रों (119 देश) के द्वारा 1973 में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। जबकि पूरे विश्व द्वारा सर्वप्रथम 1974 में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।
विश्व पर्यावरण दिवस 2020 की मेजबानी कोलंबिया के द्वारा की गई। तथा 2020 के लिए टैगलाइन “प्रकृति के लिए समय” और थीम ‘जैव विविधता‘ रखी गई है।
2. हेलसिंकी सम्मेलन – 1974
हेलसिंकी सम्मेलन का आयोजन फिनलैंड देश के हेलसिंकी शहर में 1974 ई० में किया गया था। इस सम्मेलन का मुख्य विषय ‘समुद्री पर्यावरण की रक्षा करना‘ रखा गया था। इस सम्मेलन के विषय (समुद्री पर्यावरण की रक्षा करना) को स्पष्ट रूप से परिभाषित न किये जाने के कारण यह सम्मेलन असफल हो गया।
3. लंदन सम्मेलन – 1975
लंदन सम्मेलन का आयोजन ब्रिटेन के लन्दन शहर में 1975 ई० में किया गया था। इस सम्मेलन का मुख्य विषय ‘समुद्री कचरे का निस्तारण‘ रखा गया था। जिसके अंतर्गत कहा गया कि बाह्य सभी स्रोत्तों से आने वाले कचरे को बहार ही रोका जायेगा। और समुद्र में विद्यमान कचरे का प्रभावी निस्तारण किया जायेगा।
4. वियना सम्मेलन – 1985
वियना सम्मेलन का आयोजन आस्ट्रिया देश में स्थित वियना शहर में 1985 ई० किया गया था, इसीलिये इस सम्मेलन को वियना सम्मेलन कहते हैं। इस सम्मेलन का मुख्य विषय ‘ओजोन परत का संरक्षण‘ रखा गया था। इस सम्मेलन द्वारा सभी राष्ट्र एकमत होकर ऐसी गैसों के वैकल्पिक श्रोतों के चयन के लिए सहमत हुए जो ओजोन परत के लिए हानिकारक थीं।
ओजोन परत का संरक्षण
ओजोन परत ओजोन अणुओं की एक परत है, जो वायुमंडल में पाई जाती है। ओजोन परत पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक अल्ट्रा वायलेट किरणों से बचाती है। 1995 से हर साल 16 सितंबर को ओजोन परत के संरक्षण के लिए विश्व ओजोन दिवस या ओजोन परत संरक्षण का आयोजन किया जाता है।
- ओजोन परत का ह्रास सबसे अधिक दक्षिणी गोलार्द्ध में अंटार्कटिक क्षेत्र में हुआ है।
- ओजोन क्षरण पदार्थ प्रमुखता से एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर व प्लास्टिक आदि के इस्तेमाल में उत्सर्जित होते हैं।
क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) ओजोन परत में होने वाले विघटन के लिए उत्तरदायी है। इसके अलावा हैलोजन, मिथाइल क्लोरोफार्म, कार्बन टेट्राक्लोरिड आदि रसायन पदार्थ भी ओजोन को नष्ट करने में सक्षम है। इन रासायनिक पदार्थों को ही ओजोन क्षरण पदार्थ कहते हैं।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम – 1986
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम भारत सरकार द्वारा 1986 ई० में पारित किया गया। इस अधिनियम को पारित करने का तात्कालिक कारण 2, 3 दिसंबर 1984 को हुई भोपाल गैस दुर्घटना थी। जिसमें ‘मिथाइल आइसो साइनाइट‘ गैस का रिसाव हुआ था।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को पारित करने का दूरगामी कारण भारत में स्टॉकहोम के पर्यावरण नियमों को लागू करना था। इस अधिनियम के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि भारत में ‘उद्योग, कारखाने या किसी भी प्रकार का व्यापार‘ करने के लिए भारत सरकार से अनुमति प्राप्त करनी होगी।
इसके अलावा भारत सरकार प्रत्येक बर्ष पर्यावरण संरक्षण के लिए योजनाएं बनाएगी और उसका प्रभावी कार्यान्वयन करेगी।
5. मोंट्रियल प्रोटोकॉल – 1987
इस सम्मेलन का आयोजन कनाड़ा देश के मॉन्ट्रियल शहर में 1987 ई० में किया गया था। मोंट्रियल प्रोटोकॉल का भी मुद्दा या विषय वियना सम्मेलन से ही ‘ओजोन परत का संरक्षण‘ रखा गया था।
इस सम्मेलन के माध्यम से सभी राष्ट्र एक मत होकर ऐसी गैसों में कटौती के लिए तैयार हुए जो ओजोन परत में होने वाले विघटन के लिए उत्तरदायी है।
6. टोरंटो सम्मेलन – 1988
इस सम्मेलन का आयोजन कनाड़ा के टोरंटो शहर में 1988 ई० में किया गया था। इस सम्मेलन का मुख्य विषय ग्रीन हाउस गैसों के अंतर्गत आनेवाली गैस कार्बन डाई आक्साइड (CO2) रखा गया था। इस सम्मलेन में सभी राष्ट्र एक समान रूप से भागीदार नहीं हुए इसलिए यह सम्मलेन असफल हो गया।
7. पृथ्वी सम्मेलन (रियो सम्मेलन) – 1992
इस सम्मेलन का आयोजन ब्राज़ील की तात्कालिक राजधानी रिओ-डी-जेनेरिओ में 1992 ई० आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन को रियो सम्मलेन के नाम से भी जाना जाता है।
इसमें 178 देशों के प्रतिनिधियों, हजारों स्वयंसेवी संगठनों और अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में ही विश्व राजनीति में पर्यावरण को एक ठोस स्वरूप मिला।
इस सम्मलेन का मुख्य विषय 21वीं सदी के लिए पर्यावरण के महत्वपूर्ण नियमों का एक दस्तावेज तैयार करना था जिसे एजेंडा-21 के नाम से जाना जाता है।
एजेंडा-21 (Agenda 21)
एजेंडा 21 संयुक्त राष्ट्र, सरकारों, और प्रमुख समूहों द्वारा प्रत्येक क्षेत्र में वैश्विक, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर 21वीं शताब्दी के लिए एक व्यापक योजना है, जो पर्यावरण पर मानव के प्रभाव पर आधारित है। इसके माध्यम से सभी राष्ट्रों से निवेदन किया गया कि वह प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखें, पर्यावरण के प्रदूषण को रोके तथा सतत विकास का रास्ता अपनाएं। एजेंडा 21 के प्रमुख बिंदु निम्न थे-
- ऊर्जा का अधिक कुशल तरीके से प्रयोग किया जाए।
- किसान को पर्यावरण संबंधी जानकारी दी जाए।
- प्रदूषण फैलाने वालों पर भारी अर्थदंड लगाया जाए।
- पर्यावरण एवं विकास के मध्य संबंध के मुद्दों को समझा जाए।
सतत विकास आयोग (CSD) को स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समझौतों के कार्यान्वयन पर निगरानी और रिपोर्ट करने के लिए UNCED (United Nations Conference on Environment and Development) के प्रभावी अनुवर्ती सुनिश्चित करने के लिए दिसंबर 1992 में बनाया गया था। इस बात पर सहमति बनी कि 1997 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की विशेष बैठक में पृथ्वी शिखर सम्मेलन की प्रगति की पांच साल की समीक्षा की जाएगी।
पेरिस जलवायु समझौता
यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत एक समझौता है। इस समझौते पर 2016 में हस्ताक्षर किए गए थे और यह जलवायु परिवर्तन शमन, अनुकूलन और वित्त से संबंधित है। इस समझौते पर 196 देशों के प्रतिनिधियों ने चर्चा की थी।
फ्रांस में 21वीं ‘Conference of the Parties’ सम्मेलन में इस पर हस्ताक्षर किए गए थे। वर्तमान में, समझौते के तहत यूएनएफसीसीसी के 190 सदस्य दल हैं। तुर्की, ईरान और इराक जैसे देश इसके पक्षकार नहीं हैं।
UNCED (United Nations Conference on Environment and Development)
पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCED), जिसे रियो डी जनेरियो, पृथ्वी सम्मेलन, रियो शिखर सम्मेलन, रियो सम्मेलन, के रूप में भी जाना जाता है।
UNFCCC (United Nations Framework Convention on Climate Change)
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन। यह एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि है, जो पृथ्वी सम्मेलन में 154 देशों द्वारा 1992 में हस्ताक्षरित की गई थी। तथा यह 21 मार्च 1994 को प्रभावी हुई थी। इसका मुख्यालय बोन, जर्मनी (Bonn, Germany) में है। इसका मुद्दा जलवायु परिवर्तन में सुधार करना था।
COP (Conference of the Parties)
यह पृथ्वी सम्मेलन को सुचारु रूप से कार्यान्वित करने के लिए प्रतिवर्ष होने वाला UNFCCC के अंतर्गत सभी देशों का कांफ्रेंस सम्मेलन है। प्रथम सम्मेलन 1 अप्रैल 1995 को बर्लिन, जर्मनी में हुआ था।
जलवायु परिवर्तन सम्मेलन सूची – COP
- कोप 3, क्योटो, जापान 1997
- रियो 10, रियो डि जेनेरियो, ब्राजील 2002
- कोप 13, बाली, इण्डोनेशिया 2007
- कोप 15, कोपनहेगन 2009
- कोप 17, डरबन, दक्षिण अफ्रीका 2011
- कोप 20, लिमा 2014
- कोप 21, पेरिस, फ्रांस 2015
- कोप 23, Bonn Germany 2017
- कोप 25, चिली (अध्यक्षता), मैड्रिड स्पेन 2019
8. न्यूयार्क सम्मेलन – 1997
इस सम्मेलन का आयोजन अमेरिका के वाशिंगटन राज्य के न्यूयार्क शहर में 1997 में किया गया था। इस सम्मेलन का मुख्य विषय ‘एजेंडा-21 को प्रभावी बनाना‘ रखा गया था।
9. नैरोबी घोषणा पत्र – 1997
इस सम्मेलन का आयोजन केन्या देश के नैरोबी शहर में 1997 में किया गया था। नैरोबी घोषणा पत्र अभी तक हुए सभी अंतर्राष्ट्रीय संधियों को प्रभावी बनाने के लिए किया गया था।
10. क्योटो प्रोटोकॉल – 1997
इस सम्मेलन का आयोजन जापान के क्योटो शहर में 1997 ई० में किया गया था। क्योटो प्रोटोकॉल का मुख्य विषय ग्रीन हॉउस गैसों के अंतर्गत ‘कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2)’ रखा गया था। इस सम्मेलन में सभी राष्ट्र एकमत होकर कार्बन डाई ऑक्साइड में कटौती के लिए सहमत हुए।
11. सिएटल सम्मेलन – 1999
इस सम्मलेन का आयोजन अमेरिका के वाशिंगटन राज्य के सिएटल शहर में 1999 में किया गया था। इस सम्मेलन का मुख्य विषय ‘विश्व व्यापार को पर्यावरण के दायरे में लाना‘ रखा गया था।
12. जोहान्सबर्ग सम्मेलन (रियो+10) – 2002
इस सम्मेलन का आयोजन दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग शहर में बर्ष 2002 में किया था। इस सम्मेलन का मुख्य विषय सतत विकास (Sustainable Development) था।
सतत विकास (Sustainable Development) – प्राकृतिक संसाधनों का ऐसा अनुकूलतम प्रयोग जिससे उसकी उपयोगिता आनेवाली पीढ़ी के लिए बनी रहे, सतत विकास कहलाता है।
जोहान्सबर्ग सम्मेलन के द्वारा वैश्विक गरीबी उन्मूलन के लिए “विश्व एकजुटता कोष” की स्थापना को मंजूरी प्रदान की गई।
13. रियो+20 – 2012
इस सम्मेलन का आयोजन ब्राज़ील के रिओ-डी-जेनेरिओ शहर में 2012 ई० आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन का मुख्य विषय सतत विकास पर बल देना रखा गया था। इसमें “फ्यूचर वी वांट” (Future We Want) की संकल्पना दी गई थी।