विकास प्रक्रिया ने हजारों लोगों को जल, जंगल और जमीन से बेदखल किया है। विकास प्रक्रिया के इन्ही दूप्रभावों ने आम आदमी को पिछले कुछ समय से एकजुट होने तथा विकास को पर्यावरण संरक्षण आधारित करने के लिए अनेक आंदोलन चलाने को प्रेरित किया है जिन्हें हम पर्यावरण आंदोलन कहते है। इनमे मुख्य हैं चिपको आंदोलन, नर्मदा आंदोलन, अपिको आंदोलन आदि।
पर्यावरण संरक्षण के आंदोलन
विकास की अंधी दौड़ में इंसानों ने पर्यावरण को तहस-नहस कर दिया है। अपने महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट्स के लिए कई बार सरकार ने जंगलों का दोहन किया, नदियों को बांधा और लाखों पेड़ कटवा दिए। लेकिन ऐसे में कई बार अपने पर्यावरण के लिए खुद स्थानीय लोगों ने लड़ाइयां लड़ीं। आइए, आपको बताते हैं देश के पर्यावरण आंदोलनों के बारे में।
विश्नोई आंदोलन – 1730
विश्नोई आंदोलन भारत के राजस्थान राज्य के खिजड़ली नामक स्थान पर हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व ‘संत जम्भूजी’ द्वारा किया गया था। इस आंदोलन में अमृता देवी विश्नोई ने अपनी जान दे दी थी। राजा के द्वारा आदेश वापस लेने पर यह आंदोलन स्वतः ही समाप्त हो गया।
1730 में जोधपुर के राजा अभय सिंह ने महल बनवाने के लिए लकड़ियों का इंतजाम करने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। महाराज के सैनिक पेड़ काटने के लिए राजस्थान के खेजरी (खिजड़ली) गांव में पहुंचे तो वहां की महिलाएं अपनी जान की परवाह किए बिना पेड़ों को बचाने के लिए आ गईं। विश्नोई समाज के लोग पेड़ों की पूजा करते थे। सबसे पहले अमृता देवी सामने आईं और एक पेड़ से लिपट गईं। उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी। उन्हें देखकर उनकी बेटियां भी पेड़ों से लिपट गईं। उनकी भी जान चली गई। यह खबर जब गांव में फैली तो गांव की 300 से ज्यादा महिलाएं पेड़ों को बचाने के लिए पहुंच गईं और अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।
नर्मदा आंदोलन
नर्मदा बचाओ आंदोलन मध्यप्रदेश के नर्मदा नदी के तट से आरंभ हुआ था। यह आंदोलन 1989 में नर्मदा नदी पर बनाए जा रहे बहुउद्देशीय परियोजनाओं के तहत बांधों के विरोध में हुआ था। यह मध्यप्रदेश से लेकर गुजरात तक फैला हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व बाबा आम्टे, मेधा पाटेकर, अरुंधती राय के द्वारा किया गया था।
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात की प्रमुख नदी नर्मदा को बचाने के लिए शुरू हुए था। इस आंदोलन की शुरुआत ऐक्टिविस्ट मेधा पाटेकर, बाबा आम्टे, आदिवासियों, किसानों और सोशल वर्कर्स ने मिलकर की थी।
इसकी शुरुआत नर्मदा पर बन रहे सरदार सरोवर बांध से विस्थापित हुए लोगों की पुनर्वास की व्यवस्था करने के लिए हुई थी। बाद में आंदोलनकारियों ने नदी को बचाने के लिए 130 मीटर के बांध की ऊंचाई कम करके 88 मीटर करने की मांग की। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बांध के लिए 90 मीटर की अनुमति दी।
चिपको आंदोलन – 1973
चिपको आंदोलन आंदोलन विश्नोई आंदोलन से प्रेरित था। यह आंदोलन तात्कालिक उत्तर प्रदेश और वर्तमान उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के गोपेश्वर नामक स्थान पर हुआ था। इस आंदोलन में सर्वाधिक संख्या में महिलाओं ने भाग लिया था।
चिपको आंदोलन में वृक्षों से चिपककर उसके काटे जाने का विरोध किया गया था। इस आंदोलन का नेतृत्व ‘चंडीप्रसाद भट्ट‘ और उनके सहयोगी सुन्दरलाल बहुगुणा के द्वारा किया गया था।
यह आंदोलन 1973 में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) के चमोली जिले में शुरू हुआ और देखते-देखते पूरे उत्तराखंड में फैल गया। इसकी शुरूआत सुंदरलाल बहूगुणा ने की थी। उन्होंने लोगों को पेड़ों के महत्व के बारे में जागरूक किया जिसके बाद लोगों ने ठेकेदारों द्वारा कटवाए जा रहे पेड़ों को बचाने का प्रण लिया। महिलाओं ने इसमें बढ़चढ़कर भाग लिया और वे पेड़ों से लिपट कर खड़ी हो गईं। आखिरकार तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहूगुणा को हस्तक्षेप करना पड़ा और उन्होंने इसके लिए कमिटी बनाई। कमिटी ने ग्रामीणों के पक्ष में फैसला दिया।
शांत घाटी आंदोलन (साइलेंट वैली) – 1973 to 1980
शांत घाटी आंदोलन (साइलेंट वैली) आंदोलन केरल राज्य के शांत घाटी में हुआ था। यह आंदोलन 1973 से शुरू होकर 1980 ई० तक चला था। यह आंदोलन कुंती पुन्झ नदी के तट पर “जल विद्युत् परियोजना के विरोध में” हुआ था। सरकार द्वारा इस परियोजना के रद्द किये जाने पर यह आंदोलन समाप्त हो गया।
केरल की साइलेंट वैली लगभग 89 वर्ग किलोमीटर में फैला जंगल है जहां कई खास प्रकार के पेड़-पौधे और फूल पाए जाते हैं। सरकार ने कुंतिपुजा नदी के किनारे बिजली बनाने के लिए एक बांध बनाने का प्रस्ताव दिया। इससे लगभग 8.3 वर्ग किलोमीटर जंगल के डूब जाने का खतरा था। तब कई पर्यावरण प्रेमी, एनजीओ और स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। बढ़ते आंदोलन को देखते हुए सरकार को पीछे हटना पड़ा।
जंगल बचाओ आंदोलन – 1980
जंगल बचाओ आंदोलन वर्तमान झारखण्ड, तात्कालिक विहार और उड़ीसा के सीमावर्ती क्षेत्रों में 1980 में चलाया गया था। यह आंदोलन मुख्य रूप से आदिवासियों के द्वारा चलाया गया था। इस आंदोलन को चलाये जाने का कारण परम्परागत ‘साल‘ के वृक्ष को काटकर उसके स्थान पर नए सागौन के वृक्ष लगाना था।
नवदान्या आंदोलन – 1982
नवदान्या आंदोलन 1982 ई० में दिल्ली में चलाया गया था। यह आंदोलन महान पर्यावरण विद “बंदना शिवा” के द्वारा चलाया गया था। इस आंदोलन में जैविक कृषि, उर्वरक और जैविक बीज के प्रयोग को बल दिया गया था।
अपिको आंदोलन – 1983
अपिको आंदोलन को दक्षिण भारत का चिपको आंदोलन भी कहा जाता है। यह आंदोलन 1983 ई० में दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में घटित हुआ था। यह चिपको आंदोलन से प्रेरित था जिसमें वृक्षों से चिपककर उसकी रक्षा की गयी थी। इसका नेतृत्व “पांडुरंग हेगड़े” द्वारा किया गया था।
मैती आंदोलन – 1994
मैती का अर्थ माँ का घर या मायका होता है। यह आंदोलन 1994 ई० में उत्तराखंड के महान पर्यावरण विद “कल्याण सिंह रावत” के द्वारा चलाया गया था। इसमें बेटी के नवदाम्पत्य जीवन के अवसर पर वृक्षों को नया जीवन देनें की मुहीम चलाई गयी थी।