माहेश्वर सूत्र (Maheswar Sutra) – जनक, विवरण और इतिहास – संस्कृत

Panini Ke Maheshwar Sutra
Panini Ke Maheshwar Sutra

माहेश्वर सूत्र

माहेश्वर सूत्र (महेश्वर सूत्र या शिवसूत्र या वर्ण सम्मनाय या प्रत्याहार सूत्र या डमरू सूत्र) को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है। पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत एवं नियमित करने के उद्देश्य से भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों यथा ध्वनि-विभाग (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद, आख्यात, क्रिया, उपसर्ग, अव्यय, वाक्य, लिङ्ग इत्यादि तथा उनके अन्तर्सम्बन्धों का समावेश अष्टाध्यायी में किया है।

संस्कृत व्याकरण का आधार ग्रन्थ पाणिनि द्वारा लिखित अष्टाध्यायी है। अष्टाध्यायी में आठ अध्याय और प्रत्येक अध्याय में 4 पाद या चरण हैं। अष्टाध्यायी में कुल 32 चरण हैं। अष्टाध्यायी में लगभग 4000 में 4 कम अर्थात 3996 सूत्र हैं।

तत्कालीन समाज मे लेखन सामग्री की दुष्प्राप्यता को ध्यान में रखते हुए पाणिनि ने व्याकरण को स्मृतिगम्य बनाने के लिए सूत्र शैली की सहायता ली है।

पुनः, विवेचन को अतिशय संक्षिप्त बनाने हेतु पाणिनि ने अपने पूर्ववर्ती वैयाकरणों से प्राप्त उपकरणों के साथ-साथ स्वयं भी अनेक उपकरणों का प्रयोग किया है जिनमे शिवसूत्र या माहेश्वर सूत्र सबसे महत्वपूर्ण हैं।

माहेश्वर सूत्रों की उत्पत्ति भगवान नटराज (शिव) के द्वारा किये गये ताण्डव नृत्य से मानी गयी है।

नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्त्तुकामो सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्॥

अर्थात:-

  1. “नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपञ्च (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी।”
  2. डमरु के चौदह बार बजाने से चौदह सूत्रों के रूप में ध्वनियाँ निकली, इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण का प्रकाट्य हुआ। इसलिये व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक भगवान नटराज को माना जाता है।

प्रसिद्धि है कि महर्षि पाणिनि ने इन सूत्रों को देवाधिदेव शिव के आशीर्वाद से प्राप्त किया जो कि पाणिनीय संस्कृत व्याकरण का आधार बना।

पाणिनि के माहेश्वर सूत्रों की कुल संख्या 14 है जो इस प्रकार हैं-

Maheshwar Sutra
Maheshwar Sutra
  1. अ, इ ,उ ,ण्।
  2. ॠ ,ॡ ,क्,।
  3. ए, ओ ,ङ्।
  4. ऐ ,औ, च्।
  5. ह, य ,व ,र ,ट्।
  6. ल ,ण्
  7. ञ ,म ,ङ ,ण ,न ,म्।
  8. झ, भ ,ञ्।
  9. घ, ढ ,ध ,ष्।
  10. ज, ब, ग ,ड ,द, श्।
  11. ख ,फ ,छ ,ठ ,थ, च, ट, त, व्।
  12. क, प ,य्।
  13. श ,ष ,स ,र्।
  14. ह ,ल्।

माहेश्वर सूत्र की व्याख्या

उपर्युक्त्त 14 सूत्रों में संस्कृत भाषा के वर्णों (अक्षरसमाम्नाय) को एक विशिष्ट प्रकार से संयोजित किया गया है। फलतः, पाणिनि को शब्दों के निर्वचन या नियमों मे जब भी किन्ही विशेष वर्ण समूहों (एक से अधिक) के प्रयोग की आवश्यकता होती है, वे उन वर्णों (अक्षरों) को माहेश्वर सूत्रों से प्रत्याहार बनाकर संक्षेप मे ग्रहण करते हैं। माहेश्वर सूत्रों को इसी कारण ‘प्रत्याहार विधायक’ सूत्र भी कहते हैं। प्रत्याहार बनाने की विधि तथा संस्कृत व्याकरण मे उनके बहुविध प्रयोगों को आगे दर्शाया गया है।

इन 14 सूत्रों में संस्कृत भाषा के समस्त वर्णों को समावेश किया गया है। प्रथम 4 सूत्रों (अइउण् – ऐऔच्) में स्वर वर्णों तथा शेष 10 सूत्र व्यञ्जन वर्णों की गणना की गयी है। संक्षेप में –

  1. स्वर वर्णों को अच् एवं
  2. व्यञ्जन वर्णों को हल् कहा जाता है।

अच् एवं हल् भी प्रत्याहार हैं।