“प्रतीयतेsर्थोंsमेनेति प्रत्यय:” अर्थात जिसके द्वारा अर्थ जानते है उसी को प्रत्यय कहते हैं।
प्रत्यय वह शब्दांश है, जो किसी शब्द के अंत में जुड़कर उसके अर्थ या रूप में परिवर्तन करता है। प्रत्यय मूल शब्द (धातु या पद) के साथ मिलकर एक नया अर्थ या भाव उत्पन्न करता है।
प्रत्यय की परिभाषा:
प्रत्यय वे शब्द होते हैं जो किसी शब्द के अंत में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते है । जैसे – भू + क्त = भूत:, भू + तव्य = भवितव्य, भू + तुमुन् = भवितुम् आदि ।
उपसर्ग की तरह प्रत्यय भी नए शब्दों के निर्माण में अहम् भूमिका निभाते हैं। उपसर्ग को अव्यय कह सकते हैं पर अव्यय के साथ ऐसा नहीं होता है। उपसर्गों का प्रयोग पहले परन्तु प्रत्यय का प्रयोग बाद में होता है। उपसर्गों के प्रयोग से मूल शब्दों के अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। परन्तु प्रत्यय के प्रयोग होने से शब्द का अर्थ मूल शब्द के समान ही रहता है।
प्रत्यय के प्रकार या भेद
संस्कृत में प्रत्यय पांच प्रकार के होते हैं – सुप् , तिड् , क्रत् , तध्दित् और स्त्री ।
- सुप् प्रत्यय (सुबन्त प्रकरण) – ये संज्ञा पदों में नाम विभक्ति वचन आदि के बारे में बताते है।
- तिड् प्रत्यय (तिड्न्त प्रकरण) – ये धातुओं के काल पुरुष आदि के बारे में बताते है।
- कृत् प्रत्यय – ये धातुओं के नामपद (संज्ञापद) बनाते हैं।
- तध्दित् प्रत्यय – ये नामपदों के विभिन्न रूपों के प्रयोग बताते हैं।
- स्त्री प्रत्यय – ये नामपदों के स्त्रीवाचक रूप बताते हैं।
संस्कृत में प्रत्यय उदाहरण
- भू + क्त = भूत:
- भू + तव्य = भवितव्य
- भू + तुमुन् = भवितुम्
संस्कृत में प्रत्यय के प्रकार / भेद विस्तार से पढ़े
सुप् प्रत्यय
संज्ञा और संज्ञा सूचक शब्द सुबंत के अंतर्गत आते है। सुबंत प्रकरण को व्याकरण मे सात भागो मे बांटा गया है – नाम, संज्ञा पद, सर्वनाम पद, विशेषण पद, क्रिया विशेषण पद, उपसर्ग, निपात।
तिड् प्रत्यय
संस्कृत व्याकरण में क्रिया के मूल-रूप (तिड्न्त) को धातु (Verb) कहते हैं। धातुएँ ही संस्कृत भाषा में शब्दों के निर्माण अहम भूमिका निभाती हैं। धातुओं के साथ उपसर्ग, प्रत्यय आदि मिलकर तथा सामासिक क्रियाओं के द्वारा सभी शब्द जैसे – संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि बनते हैं। दूसरे शब्दों में- संस्कृत का लगभग हर शब्द धातुओं के रूप में अलग किया जा सकता है। कृ, भू, मन्, स्था, अन्, गम्, ज्ञा, युज्, जन्, दृश् आदि कुछ प्रमुख धातुएँ हैं। संस्कृत में लगभग 3356 धातुएं हैं।…Read More!
कृत् प्रत्यय
धातु पदों को नाम पद बनाने वाले प्रत्ययों को कृत् प्रत्यय कहते है और कृत् प्रत्यय के प्रयोग होने से जिन नए शब्दों का निर्माण होता है उन्हें कृदन्त शब्द कहते हैं। “धातुं नाम करोति इति कृत” । इस प्रत्यय को धातुज् या कृदन्त प्रत्यय भी कहते हैं। (Read More!)
जैसे:-
- पठ (धातु) + तव्य (कृत् प्रत्यय) = पठितव्यम्
- तेन संस्कृत पठितव्यम् । (उसे संस्कृत पढ़ना चाहिए।)
कृत् प्रत्यय के उदाहरण–
शब्द | प्रत्यय | नया शब्द |
कृ | तव्यत् | कर्त्तव्यम् |
गम् | क्तवतु | गतवान् |
पठ् | अनीयर् | पठनीयम् |
दा | तुमुन् | दातुम् |
तध्दित् प्रत्यय
जो प्रत्यय धातुओं को छोड़कर अन्य सभी शब्दों (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि) के अंत में जोड़े जाते है, तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं। इन्हें तद्धितान्त (तद्धितांत प्रत्यय) प्रत्यय भी कहते हैं। जैसे:-
तध्दित् प्रत्यय के उदाहरण–
शब्द | प्रत्यय | नया शब्द |
धन | वतुप् | धनवत् |
बल | वतुप् | बलवत् |
आत्मन् | वतुप् | आत्मवान् |
गुण | वतुप् | गुणवान् |
यशस् | वतुप् | यशस्वान् |
लक्ष्मी | वतुप् | लक्ष्मीवान् |
स्त्री प्रत्यय
स्त्रीलिंग बनानेवाले प्रत्ययों को ही स्त्री प्रत्यय कहते हैं। स्त्री प्रत्यय धातुओं को छोड़कर अन्य शब्दों संज्ञा विशेषण आदि सभी के अंत में जुड़े होते हैं।
स्त्री प्रत्यय के उदाहरण:
शब्द | प्रत्यय | नया शब्द |
अज | टाप् | अजा |
कोकिल | टाप् | कोकिला |
याचक | टाप् | याचिका |
बालक | टाप् | बालिका |
प्रत्यय विच्छेद के उदाहरण
कृत प्रत्यय विच्छेद के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
धातु | प्रत्यय | नया शब्द |
गम् | तुमुन् | गन्तुम् |
पा | तुमुन् | पातुम् |
हल् | तुमुन् | हन्तुम् |
पठ् | तुमुन् | पठितुम् |
अस् | क्त्वा | भूत्वा |
कृ | क्त्वा | कृत्वा |
कथ् | क्त्वा | कथयित्वा |
दृ | क्त्वा | दृष्ट्वा |
वच् | क्त्वा | उक्त्वा |
पठ् | ल्युट् | पठनम् |
कथ् | ल्युट् | कथनं |
ज्ञा | ल्युट् | ज्ञानम् |
कृ | ल्युट् | करणम् |
स्मृ | ल्युट् | स्मरणम् |
गै | ण्वूल् | गायक: |
पच् | ण्वूल् | पाचक: |
गृह | ण्वूल् | ग्राहक: |
कृ | ण्वूल् | कारक: |
नृत | ण्वूल् | नर्तक: |
स्मृ | णमुल् | स्मारम् |
स्तु | णमुल् | स्तावम् |
भुज् | णमुल् | भोजम् |
मृश् | णमुल् | मर्शम् |
हस् | णमुल् | हासम् |
कृ | तृच् | कर्तृ (कर्त्ता) |
दा | तृच् | दातृ (दाता) |
ज्ञा | तृच् | ज्ञातृ (ज्ञाता) |
गम् | तृच् | गन्तृ (गन्ता) |
गम् | क्तिन् | गति: |
कृ | क्तिन् | कृति: |
श्रु | क्तिन् | श्रुति: |
मन् | क्तिन् | मति: |
स्त्रु | क्तिन् | स्त्रुति |
तद्धित प्रत्यय विच्छेद के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
शब्द | प्रत्यय | नया शब्द |
धन | वतुप् | धनवत् |
बल | वतुप् | बलवत् |
गुण | वतुप् | गणवत् |
उच्च | तरप् | उच्चतर: |
श्रेष्ठ | तरप् | श्रेष्ठतर: |
सुंदर | तरप् | सुन्दरतर: |
गुरु | तरप् | गुरुतर: |
उच्च | तमप् | उच्चतम: |
श्रेष्ठ | तमप् | श्रेष्ठतम: |
तीव्र | तमप् | तीव्रतम: |
सुख | मयट् | सुखमय: |
आम्र | मयट् | आम्रमय: |
स्वर्ण | मयट् | स्वर्णमय: |
आनंद | मयट् | आनंदमय: |
तेज | मयट् | तेजोsमय: |
वाच | मयट् | वाsमय: |
लघु | तल् | लघुता |
मूर्ख | तल् | मूर्खता |
मित्र | तल् | मित्रता |
विचित्र | तल् | पवित्रता |
पशु | तल् | पशुता |
बाल् | ताप् | बाला |
अश्व | ताप् | अश्वा |
अज् | ताप् | अजा |
अध्यापक | ताप् | अध्यापिका |
बालक | ताप् | बालिका |
शिक्षक | ताप् | शिक्षिका |
गायक | ताप् | गायिका |
पुत्र | डीष् / डीप् | पुत्री |
नर्तक | डीष् / डीप् | नर्तकी |
गौर | डीष् / डीप् | गौरी |
उपयोग के अनुसार प्रत्यय:
प्रत्यय शब्द को भाव, लिंग, संख्या, जाति, या अन्य गुणों के आधार पर बदलने का काम करते हैं।
1. व्यक्ति या कर्ता बनाने वाले प्रत्यय:
उदाहरण:
- गा + क = गायक
- खे + क = खेलक
2. स्थानसूचक प्रत्यय:
उदाहरण:
- नृत्य + शाला = नृत्यशाला
- विद्या + आलय = विद्यालय
3. स्त्रीलिंग सूचक प्रत्यय:
उदाहरण:
- लेखक + आ = लेखिका
- नायक + ई = नायिका
4. गुणवाचक प्रत्यय:
उदाहरण:
- सुंदर + ता = सुंदरता
- विद्वान + ता = विद्वत्ता
प्रत्यय का महत्व:
- शब्दावली का विस्तार।
- भाषा को समृद्ध और सटीक बनाना।
- संज्ञा, क्रिया, विशेषण आदि का निर्माण करना।
प्रत्यय भाषा को अधिक अर्थपूर्ण और विस्तृत बनाने के लिए उपयोगी उपकरण हैं। वे नए शब्दों के निर्माण में सहायक होते हैं और वाक्यों में स्पष्टता लाते हैं।