“दृढ़ इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति दुनिया को अपने अनुकूल बना लेता है।”
-दार्शनिक कवि गेटे
संकल्प शक्ति
एक अत्यन्त मंदबुद्धि विद्यार्थी था। आचार्य अक्सर डंडे द्वारा जमकर उसकी आव-भगत करते थे। मगर वह कभी याद नहीं कर पाता था। एक बार डंडा खाने के लिए उसने दाहिनी हथेली फैलाई, तो आचार्य ने यकायक अपना हाथ रोककर डंडा रख दिया। उनकी आँखों में विस्मय झलकने लगा। बालक ने पूछा, “आचार्य जी रुक क्यों गए ?”
“बेटे, अनजाने में मैं नाहक ही तेरी पिटाई करता रहा। तेरे हाथ में तो विद्या की रेखा ही नहीं है।
विद्यार्थी डंडे तो शरीर पर सहता रहा, लेकिन आचार्य का यह कथन उसकी आत्मा पर कशाघात सा लगा। उसने पूछा, “आचार्य जी, कहाँ होती है विद्या की रेखा ?”
आचार्य जी से विद्या की रेखा जानकर वह उठ गया और अगले ही क्षण लहुलुहान दाहिनी हथेली लिए लौटा, “गुरुजी, मैंने अपनी हथेली में विद्या की रेखा चीर कर बना ली है। अब आप मुझे पढ़ाइए, मैं विद्यार्जन करूँगा।” आचार्य जी उसका संकल्प-प्रदीप्त मुख देखकर अवाक रह गए।
संसार ने उस बालक को पाणिनि के नाम से जाना, पाणिनि से बड़ा व्याकरण का ज्ञाता आज तक संसार में कोई नहीं हुआ है।
संकल्प शक्ति विकास कैसे करें ?
मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जिसको स्वतन्त्र इच्छा अथवा संकल्प-शक्ति का वरदान प्राप्त है। संकल्प शक्ति मनुष्य के मनोबल को ऊर्जस्वित करती है और इसके द्वारा वह महानतम एवं श्रेष्ठतम कार्य सम्पन्न करने में समर्थ होता है। हम विश्व मंच पर कभी-कभी असम्भव प्रायः जो कार्य निष्पादित होते हुए देखते हैं, वे संकल्प-शक्ति की ही देन होते हैं।
हम जब महान् उपलब्धियों पर विचार करने लगते हैं, तो हमें उपन्यासकार जेम्स जायस का यह कथन अक्षरशः सत्य प्रतीत होता है कि “व्यक्ति को सफलता अपनी वजह से मिलती है, समय, स्थान या परिस्थितियों से नहीं।”
महाभारत प्रसिद्ध एकलव्य का आख्यान इस मान्यता को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है। गुरु-दक्षिणास्वरूप सीधे हाथ का अँगूग कटाकर तथा पाषाण प्रतिमा रूप गुरु से प्रेरणा लेकर वह अर्जुन के समकक्ष धनुर्धर बन गया था।
राम बोला सदृश कामी युवक अपनी संकल्प शक्ति द्वारा अमरकाव्य रामचरितमानस का अमर रचयिता गोस्वामी तुलसीदास बन गया था। आधुनिक काल में महात्मा गांधी दृढ़ संकल्प शक्ति द्वारा निर्मित विश्ववद्य महापुरुष के ज्वलन्त उदाहरण हैं।
दृढ़ संकल्प सम्पन्न व्यक्ति टूट सकते हैं, परन्तु वे झुकते नहीं हैं, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, महारानी लक्ष्मीबाई तथा हमारे अनेकानेक स्वतन्त्रता सेनानी अल्प साधनों के बल पर ही अपने शत्रुओं के दाँत खट्टे करने में सफल हुए थे।
द्वितीय विश्व युद्ध में पूरी तरह नष्ट हो जाने पर भी जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और किसी सीमा तक इंगलैण्ड भी अपनी संकल्प शक्ति द्वारा उन्नति और प्रगति करके अल्पकाल में विकसित देशों की पंक्ति में अग्रगण्य बन गए हैं।
जबकि हमारा विशाल भारत परावलम्बन की वैशाखी पर चलकर ही सन्तुष्ट है। मात्र ‘भारत महान् है‘ का नारा लगाकर वह सन्तोष का अनुभव कर लेता है। विक्टर एगो ने ठीक ही लिखा है कि लोगों में बल की कमी नहीं, संकल्प शक्ति की कमी होती है। बात ऐसी ही है। दृढ़ संकल्प में जीवन-सिद्धि है।
जो व्यक्ति बाधाओं से नहीं डरता है, वही कुछ करता है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के मार्ग में जितनी बाधाएँ आई थीं, हम उनकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। अपने संकल्प की दृढ़ता की नींव पर ही विदेश में उन्होंने इण्डियन नेशनल आर्मी का संगठन किया और भारत को स्वतन्त्रता दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान किया।
संकल्प की दृढ़ता के अनुपात में व्यक्ति के मन में उत्साह का संचार होता है और उत्साही पुरुष के लिए संसार में कोई वस्तु दुर्लभ नहीं रहती है।
बाल्मीकि के श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण से कहते हैं कि-भैया, उत्साह ही बलवान होता है। उत्साह से बढ़कर कोई दूसरा बल नहीं है, उत्साही पुरुष के लिए संसार में कोई वस्तु दुर्लभ नहीं है। (बाल्मीकि रामायण, किष्किंधा काण्ड)।
इस सन्दर्भ में अंग्रेजी के दार्शनिक कवि ऐला व्हीलर विलाक्स (Ella Wheeler Wilor) का परामर्श स्मरण करने
योग्य है कि Have you missed in your aim? Well, the mark is still shining. Did youfaint in the race ? Well, take breath for the next.
Have you missed in your aim? Well, the mark is still shining. Did youfaint in the race ? Well, take breath for the next.
– Ella Wheeler Wilor
अर्थ– क्या तुम अपना लक्ष्य बेधने में चूक गए हो? कोई चिन्ता नहीं है, वह अब भी चमक रहा है. क्या तुम दौड़ लगाते हुए थककर पूर हो गए? कोई बात नहीं, अगली दौड़ के लिए सुस्ता कर दम भर लो।
विभिन्न प्रतियोगिताओं में सफल होने वाले युवक-युवतियों से भेंट करके हम देख सकते हैं कि वे अपने दृढ़ संकल्प द्वारा ही सफलता का वरण कर सके हैं, उन्होंने न कभी अपनी सीमाओं की परवाह की ओर न वे सफलता की कठिन डगर को देखकर आतंकित ही हुए। यहाँ तक कि अपने प्राथमिक प्रयासों में असफल होने पर भी वे हाथ पर हाथ रखकर बैठे नहीं उनकी संकल्प शक्ति निरन्तर उनको यह मंत्र देकर प्रेरित करती रही कि पराजय स्वीकार करना कायरता की पराकाष्ठा है।
संकल्प द्वारा सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है, आदि, अमरीका के 1 महान विचारक इमर्सन ने एक स्थान पर
लिखा है कि “इतिहास, पुराण सभी साक्षी हैं कि मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव, दानव सभी पराजित हो जाते हैं।”
कौन नहीं जानता है कि बालक धुद अपने दृढ़ संकल्प द्वारा भगवद साक्षात्कार तथा अचल पद प्राप्त करने में सफल हुआ था-“धुवतारक टलता नहीं कितना भी अवसाद हो।”
हम लोक व्यवहार में प्रचलित इस लोकोक्ति को अपना प्रेरणासोत बनाएँ- “जहाँ चाह है, वहाँ राह है” और एनौन (Anon) नामक विद्वान के इस कथन को अपना मार्गदर्शक बनाएँ- The limit of ones achievements is his will. अर्थात् हमारी संकल्प शक्ति ही हमारी उपलब्धियों की सीमा निर्धारित करती है।
आप अपना जो मूल्य आँकते हैं, सफलता उसी का साकार रूप है। श्रीमद्भगवद्गीता का कथन प्रमाण है- जहाँ संकल्प स्वरूप श्रीकृष्ण हैं और अर्जुन रूप तदनुसारिणी क्रिया समुपस्थित है, वहाँ श्री विजय और विभूति निवास करती है।