Shudh Ashudh Shabd: 550+ शुद्ध और अशुद्ध शब्द एवं वाक्य, हिन्दी व्याकरण

Shudh Ashudh Shabd
Shudh Ashudh Shabd

शुद्ध-अशुद्ध शब्द (Shudh-Ashudh Shabd)

हिन्दी में शुद्ध और अशुद्ध शब्दों का निर्धारण भाषा की वर्तनी, व्याकरण, और उच्चारण के नियमों पर आधारित होता है।

वर्तनी किसे कहते हैं?

वर्तनी: किसी शब्द को लिखने में प्रयुक्त वर्णों के क्रम को वर्तनी या अक्षरी कहते हैं। अंग्रेज़ी में वर्तनी को ‘Spelling’ तथा उर्दू में ‘हिज्जे’ कहा जाता है।

किसी भाषा की समस्त ध्वनियों को सही ढंग से उच्चारित करने के लिए वर्तनी की एकरूपता आवश्यक होती है। जिस भाषा की वर्तनी में अपनी ध्वनियों के साथ अन्य भाषाओं की ध्वनियों को अपनाने की जितनी अधिक क्षमता होती है, वह भाषा उतनी ही समर्थ और समृद्ध मानी जाती है। इसलिए वर्तनी का सीधा संबंध भाषागत ध्वनियों के सही उच्चारण से होता है।

शुद्ध वर्तनी लिखने के प्रमुख नियम निम्न प्रकार है

हिन्दी मे विभक्ति चिह्न सर्वनामोँ के अलावा शेष सभी शब्दो से अलग लिखे जाते हैँ, जैसे–

  • मोहन ने पुत्र को कहा।
  • श्याम को रुपये दे दो।

परन्तु सर्वनाम के साथ विभक्ति चिह्न हो तो उसे सर्वनाम मेँ मिलाकर लिखा जाना चाहिए, जैसे– हमने, उसने, मुझसे, आपको, उसको, तुमसे, हमको, किससे, किसको, किसने, किसलिए आदि।

सर्वनाम के साथ दो विभक्ति चिह्न होने पर पहला विभक्ति चिह्न सर्वनाम मेँ मिलाकर लिखा जाएगा एवं दूसरा अलग लिखा जाएगा, जैसे–

  • आपके लिए, उसके लिए, इनमेँ से, आपमेँ से, हममेँ से आदि।

सर्वनाम और उसकी विभक्ति के बीच ‘ही’ अथवा ‘तक’ आदि अव्यय होँ तो विभक्ति सर्वनाम से अलग लिखी जायेगी, जैसे–

  • आप ही के लिए, आप तक को, मुझ तक को, उस ही के लिए।

संयुक्त क्रियाओँ मेँ सभी अंगभूत क्रियाओँ को अलग–अलग लिखा जाना चाहिए, जैसे–

  • जाया करता है, पढ़ा करता है, जा सकते हो, खा सकते हो, आदि।

पूर्वकालिक प्रत्यय ‘कर’ को क्रिया से मिलाकर लिखा जाता है, जैसे–

  • सोकर, उठकर, गाकर, धोकर, मिलाकर, अपनाकर, खाकर, पीकर, आदि।

द्वन्द्व समास मेँ पदोँ के बीच योजन चिह्न (–) हाइफन लगाया जाना चाहिए, जैसे–

  • माता–पिता, राधा–कृष्ण, शिव–पार्वती, बाप–बेटा, रात–दिन आदि।

तक, साथ आदि अव्ययोँ को पृथक लिखा जाना चाहिए, जैसे–

  • मेरे साथ, हमारे साथ, यहाँ तक, अब तक आदि।

जैसा’ तथा ‘सा’ आदि सारूप्य वाचकोँ के पहले योजक चिह्न (–) का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे–

  • चाकू–सा, तीखा–सा, आप–सा, प्यारा–सा, कन्हैया–सा आदि।

जब वर्णमाला के किसी वर्ग के पंचम अक्षर के बाद उसी वर्ग के प्रथम चारोँ वर्णोँ मेँ से कोई वर्ण हो तो पंचम वर्ण के स्थान पर अनुस्वार (ं ) का प्रयोग होना चाहिए। जैसे–

  • कंकर, गंगा, चंचल, ठंड, नंदन, संपन्न, अंत, संपादक आदि।

परंतु जब नासिक्य व्यंजन (वर्ग का पंचम वर्ण) उसी वर्ग के प्रथम चार वर्णोँ के अलावा अन्य किसी वर्ण के पहले आता है तो उसके साथ उस पंचम वर्ण का आधा रूप ही लिखा जाना चाहिए। जैसे–

  • पन्ना, सम्राट, पुण्य, अन्य, सन्मार्ग, रम्य, जन्म, अन्वय, अन्वेषण, गन्ना, निम्न, सम्मान आदि परन्तु घन्टा, ठन्डा, हिण्दी आदि लिखना अशुद्ध है।

अ, ऊ एवं आ मात्रा वाले वर्णोँ के साथ अनुनासिक चिह्न (ँ ) को इसी चन्द्रबिन्दु (ँ ) के रूप मेँ लिखा जाना चाहिए, जैसे–

  • आँख, हँस, जाँच, काँच, अँगना, साँस, ढाँचा, ताँत, दायाँ, बायाँ, ऊँट, हूँ, जूँ आदि।

परन्तु अन्य मात्राओँ के साथ अनुनासिक चिह्न को अनुस्वार (ं ) के रूप मेँ लिखा जाता है, जैसे–

मैँने, नहीँ, ढेँचा, खीँचना, दायेँ, बायेँ, सिँचाई, ईँट आदि।

संस्कृत मूल के तत्सम शब्दोँ की वर्तनी मेँ संस्कृत वाला रूप ही रखा जाना चाहिए, परन्तु कुछ शब्दोँ के नीचे हलन्त (् ) लगाने का प्रचलन हिन्दी मेँ समाप्त हो चुका है। अतः उनके नीचे हलन्त न लगाया जाये, जैसे–

  • महान, जगत, विद्वान आदि।

परन्तु संधि या छन्द को समझाने हेतु नीचे हलन्त लगाया जाएगा।

अँग्रेजी से हिन्दी मेँ आये जिन शब्दोँ मेँ आधे ‘ओ’ (आ एवं ओ के बीच की ध्वनि ‘ऑ’) की ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके ऊपर अर्द्ध चन्द्रबिन्दु लगानी चाहिए, जैसे–

  • बॉल, कॉलेज, डॉक्टर, कॉफी, हॉल, हॉस्पिटल आदि।

संस्कृत भाषा के ऐसे शब्दोँ, जिनके आगे विसर्ग ( : ) लगता है, यदि हिन्दी मेँ वे तत्सम रूप मेँ प्रयुक्त किये जाएँ तो उनमेँ विसर्ग लगाना चाहिए, जैसे–

  • दुःख, स्वान्तः, फलतः, प्रातः, अतः, मूलतः, प्रायः आदि। परन्तु दुखद, अतएव आदि मेँ विसर्ग का लोप हो गया है।

विसर्ग के पश्चात् श, ष, या स आये तो या तो विसर्ग को यथावत लिखा जाता है या उसके स्थान पर अगला वर्ण अपना रूप ग्रहण कर लेता है। जैसे–

  • दुः + शासन = दुःशासन या दुश्शासन
  • निः + सन्देह = निःसन्देह या निस्सन्देह ।

वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ एवं उनमेँ सुधार

उच्चारण दोष अथवा शब्द रचना और संधि के नियमोँ की जानकारी की अपर्याप्तता के कारण सामान्यतः वर्तनी अशुद्धि हो जाती है। वर्तनी की अशुद्धियोँ के प्रमुख कारण निम्न हैँ–

उच्चारण दोष

कई क्षेत्रोँ व भाषाओँ मेँ, स–श, व–ब, न–ण आदि वर्णोँ मेँ अर्थभेद नहीँ किया जाता तथा इनके स्थान पर एक ही वर्ण स, ब या न बोला जाता है जबकि हिन्दी मेँ इन वर्णोँ की अलग–अलग अर्थ–भेदक ध्वनियाँ हैँ। अतः उच्चारण दोष के कारण इनके लेखन मेँ अशुद्धि हो जाती है। जैसे–

अशुद्ध- शुद्ध

कोसिस – कोशिश

सीदा – सीधा

सबी – सभी

सोर – शोर

अराम – आराम

पाणी – पानी

बबाल – बवाल

पाठसाला – पाठशाला

शब – शव

निपुन – निपुण

प्रान – प्राण

बचन – वचन

ब्यवहार – व्यवहार

रामायन – रामायण

गुन – गुण

जहाँ ‘श’ एवं ‘स’ एक साथ प्रयुक्त होते हैँ वहाँ ‘श’ पहले आयेगा एवं ‘स’ उसके बाद। जैसे– शासन, प्रशंसा, नृशंस, शासक ।

इसी प्रकार ‘श’ एवं ‘ष’ एक साथ आने पर पहले ‘श’ आयेगा फिर ‘ष’, जैसे– शोषण, शीर्षक, विशेष, शेष, वेशभूषा, विशेषण आदि।

स् के स्थान पर पूरा ‘स’ लिखने पर या ‘स’ के पहले किसी अक्षर का मेल करने पर अशुद्धि हो जाती है, जैसे– इस्त्री (शुद्ध होगा– स्त्री), अस्नान (शुद्ध होगा– स्नान), परसपर अशुद्ध है जबकि शुद्ध है परस्पर।

अक्षर रचना की जानकारी का अभाव

देवनागरी लिपि मेँ संयुक्त व्यंजनोँ मेँ दो व्यंजन मिलाकर लिखे जाते हैँ, परन्तु इनके लिखने मेँ त्रुटि हो जाती है, जैसे–

अशुद्ध – शुद्ध

आर्शीवाद – आशीर्वाद

निमार्ण – निर्माण

पुर्नस्थापना – पुनर्स्थापना

बहुधा ‘र्’ के प्रयोग मेँ अशुद्धि होती है। जब ‘र्’ (रेफ़) किसी अक्षर के ऊपर लगा हो तो वह उस अक्षर से पहले पढ़ा जाएगा। यदि हम सही उच्चारण करेँगे तो अशुद्धि का ज्ञान हो जाता है। आशीर्वाद मेँ ‘र्’ , ‘वा’ से पहले बोला जायेगा– आशीर् वाद। इसी प्रकार निर्माण मेँ ‘र्’ का उच्चारण ‘मा’ से पहले होता है, अतः ‘र्’ मा के ऊपर आयेगा।

जिन शब्दों में व्यंजन के साथ स्वर, ‘र्’ और अनुनासिक का मेल होता है, उनमें उस अक्षर को लिखने की विधि इस प्रकार होती है:

अक्षर स्वर ‘र्’ और अनुस्वार (ं) के संयोजन से लिखे जाते हैं। उदाहरण:

  • त् + ए + र् + अनुस्वार = शर्तें
  • म् + ओ + र् + अनुस्वार = कर्मों

इसी प्रकार: औरों, धर्मों, पराक्रमों आदि शब्द लिखे जाते हैं।

अशुद्ध लेखन:

  • कोई, भाई, मिठाई, कई, ताई को कोयी, भायी, मिठायी, तायी आदि रूप में लिखना गलत है।
  • अनुयायी, स्थायी, वाजपेयी को अनयाई, स्थाई, वाजपेई आदि रूप में लिखना भी अशुद्ध है।

सम् उपसर्ग:
यदि सम् उपसर्ग के बाद य, र, ल, व, श, स, ह जैसे अक्षर आते हैं, तो ‘म्’ को अनुस्वार (ं) के रूप में लिखा जाता है। उदाहरण:

  • संयम, संवाद, संलग्न, संसर्ग, संहार, संरचना, संरक्षण।

इन्हें सम्शय, सम्हार, सम्वाद, सम्रचना, सम्लग्न, सम्रक्षण आदि रूप में लिखना गलत है।

अनुनासिक शब्द:
जहां ‘अ’, ‘आ’, या ‘ऊ’ की मात्रा वाले वर्णों के साथ अनुनासिक ध्वनि (ँ) होती है, उसे हमेशा (ँ) के रूप में लिखा जाता है। उदाहरण:

  • दाँत, पूँछ, ऊँट, हूँ, पाँच, हाँ, चाँद, हँसी, ढाँचा।

लेकिन जब वर्ण के साथ अन्य मात्रा हो, तो (ँ) की जगह अनुस्वार (ं) का प्रयोग होता है। उदाहरण:

  • फेंक, नहीं, खींचना, गोंद।

विराम चिह्नों का सही प्रयोग न होने पर भी अशुद्धि हो जाती है, और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। उदाहरण:

  • रोको, मत जाने दो।
  • रोको मत, जाने दो।

इन दोनों वाक्यों में अल्पविराम के स्थान परिवर्तन से अर्थ पूरी तरह उल्टा हो गया है।

‘ष’ का प्रयोग:

‘ष’ वर्ण केवल षट् (छह) से बने कुछ शब्दों, जैसे– षट्कोण, षड्यंत्र आदि के प्रारंभ में ही आता है। अन्य शब्दों के शुरू में ‘श’ लिखा जाता है। उदाहरण: शोषण, शासन, शेषनाग

संयुक्ताक्षरों में ‘ष्’ का प्रयोग:

‘ट्’ वर्ग से पहले हमेशा ‘ष्’ का प्रयोग किया जाता है, चाहे मूल शब्द ‘श’ से बना हो। उदाहरण: सृष्टि, षष्ट, नष्ट, कष्ट, अष्ट, ओष्ठ, कृष्ण, विष्णु

‘क्श’ और ‘क्ष’ का प्रयोग:

  • ‘क्श’ का प्रयोग केवल इन शब्दों में होता है: नक्शा, रिक्शा, नक्श
  • बाकी सभी शब्दों में ‘क्ष’ का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण: रक्षा, कक्षा, क्षमता, सक्षम, शिक्षा, दक्ष

‘ज्ञ’ और ‘ग्य’ का प्रयोग:

  • ‘ग्य’ का प्रयोग निम्न शब्दों में होता है: ग्यारह, योग्य, अयोग्य, भाग्य, आरोग्य
  • अन्य सभी शब्दों में ‘ज्ञ’ का प्रयोग होता है। उदाहरण: ज्ञान, अज्ञात, यज्ञ, विशेषज्ञ, विज्ञान, वैज्ञानिक

हिन्दी भाषा सीखने के चार मुख्य सोपान:

सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना। हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है, जिसकी प्रधान विशेषता है कि जैसे बोली जाती है, वैसे ही लिखी जाती है।

स्वर-ध्वनि को समझकर लिखना उचित है।

  • यदि ‘ए’ की ध्वनि आ रही है, तो ‘ए’ की मात्रा का प्रयोग करें।
  • यदि ‘उ’ की ध्वनि आ रही है, तो ‘उ’ की मात्रा का प्रयोग करें।

हिन्दी में अशुद्धियों के विविध प्रकार: Shudh Ashudh Shabd

हिन्दी भाषा के लेखन और उच्चारण में अशुद्धियाँ कई प्रकार की हो सकती हैं। इन्हें मुख्य रूप से निम्न प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:

1. भाषा (अक्षर या मात्रा) सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध — शुद्ध (Shudh Ashudh Shabd)

बृटिश – ब्रिटिश

त्रगुण – त्रिगुण

रिषी – ऋषि

बृह्मा – ब्रह्मा

बन्ध – बँध

पैत्रिक – पैतृक

जाग्रती – जागृति

स्त्रीयाँ – स्त्रियाँ

स्रष्टि – सृष्टि

अती – अति

तैय्यार – तैयार

आवश्यकीय – आवश्यक

उपरोक्त – उपर्युक्त

श्रोत – स्रोत

जाइये – जाइए

लाइये – लाइए

लिये – लिए

अनुगृह – अनुग्रह

अकाश – आकाश

असीस – आशिष

देहिक – दैहिक

कवियत्रि – कवयित्री

द्रष्टि – दृष्टि

घनिष्ट – घनिष्ठ

व्यवहारिक – व्यावहारिक

रात्री – रात्रि

प्राप्ती – प्राप्ति

सामर्थ – सामर्थ्य

एकत्रित – एकत्र

ईर्षा – ईर्ष्या

पुन्य – पुण्य

कृतघ्नी – कृतघ्न

बनिता – वनिता

निरिक्षण – निरीक्षण

पती – पति

आक्रष्ट – आकृष्ट

सामिल – शामिल

मष्तिस्क – मस्तिष्क

निसार – निःसार

सन्मान – सम्मान

हिन्दु – हिन्दू

गुरू – गुरु

दान्त – दाँत

चहिए – चाहिए

प्रथक – पृथक्

परिक्षा – परीक्षा

षोडषी – षोडशी

परीवार – परिवार

परीचय – परिचय

सौन्दर्यता – सौन्दर्य

अज्ञानता – अज्ञान

गरीमा – गरिमा

समाधी – समाधि

बूड़ा – बूढ़ा

ऐक्यता – एक्य,एकता

पूज्यनीय – पूजनीय

पत्नि – पत्नी

अतीशय – अतिशय

संसारिक – सांसारिक

शताब्दि – शताब्दी

निरोग – नीरोग

दुकान – दूकान

दम्पति – दम्पती

अन्तर्चेतना – अन्तश्चेतना

2. लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ

हिन्दी में लिंग संबंधी अशुद्धियाँ अक्सर दिखाई देती हैं। इस संदर्भ में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  1. विशेषण शब्दों का लिंग:
    विशेषण शब्दों का लिंग सदैव विशेष्य के समान होता है।
  2. दिनों, महीनों, ग्रहों और पहाड़ों के नाम:
    ये नाम पुल्लिंग में प्रयुक्त होते हैं, जबकि तिथियों, भाषाओं और नदियों के नाम स्त्रीलिंग में प्रयोग किए जाते हैं।
  3. प्राणिवाचक और अप्राणिवाचक शब्दों का लिंग:
    • प्राणिवाचक शब्दों का लिंग उनके अर्थ के अनुसार होता है।
    • अप्राणिवाचक शब्दों का लिंग सामान्य व्यवहार के अनुसार होता है।
  4. तत्सम शब्दों का लिंग:
    कई तत्सम शब्द हिन्दी में स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होते हैं।

Shudh Ashudh Vakya: उदाहरण

• दही बड़ी अच्छी है। (बड़ा अच्छा)
• आपने बड़ी अनुग्रह की। (बड़ा, किया)
• मेरा कमीज उतार लाओ। (मेरी)
• लड़के और लड़कियाँ चिल्ला रहे हैँ। (रही)
• कटोरे मेँ दही जम गई। (गया)
• मेरा ससुराल जयपुर मेँ है। (मेरी)
• महादेवी विदुषी कवि हैँ। (कवयित्री)
• आत्मा अमर होता है। (होती)
• उसने एक हाथी जाती हुई देखी। (जाता हुआ देखा)
• मन की मैल काटती है। (का, काटता)
• हाथी का सूंड केले के समान होता है। (की, होती)
• सीताजी वन को गए। (गयीँ)
• विद्वान स्त्री (विदुषी स्त्री)
• गुणवान महिला (गुणवती महिला)
• माघ की महीना (माघ का महीना)
• मूर्तिमान् करुणा (मूर्तिमयी करुणा)
• आग का लपट (आग की लपट)
• मेरा शपथ (मेरी शपथ)
• गंगा का धारा (गंगा की धारा)
• चन्द्रमा की मण्डल (चन्द्रमा का मण्डल)।

3. समास सम्बन्धी अशुद्धियाँ

दो या दो से अधिक पदोँ का समास करने पर प्रत्ययोँ का उचित प्रयोग न करने से जो शब्द बनता है, उसमेँ कभी–कभी अशुद्धि रह जाती है। जैसे –

अशुद्ध — शुद्ध (Shudh Ashudh Shabd)

दिवारात्रि – दिवारात्र

निरपराधी – निरपराध

ऋषीजन – ऋषिजन

प्रणीमात्र – प्राणिमात्र

स्वामीभक्त – स्वामिभक्त

पिताभक्ति – पितृभक्ति

महाराजा – महाराज

भ्राताजन – भ्रातृजन

दुरावस्था – दुरवस्था

स्वामीहित – स्वामिहित

नवरात्रा – नवरात्र

4. संधि सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध — शुद्ध (Shudh Ashudh Shabd)

उपरोक्त – उपर्युक्त

सदोपदेश – सदुपदेश

वयवृद्ध – वयोवृद्ध

सदेव – सदैव

अत्याधिक – अत्यधिक

सन्मुख – सम्मुख

उधृत – उद्धृत

मनहर – मनोहर

अधतल – अधस्तल

आर्शीवाद – आशीर्वाद

दुरावस्था – दुरवस्था

5. विशेष्य–विशेषण सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध — शुद्ध (Shudh Ashudh Shabd)

पूज्यनीय व्यक्ति – पूजनीय व्यक्ति

लाचारवश – लाचारीवश

महान् कृपा – महती कृपा

गोपन कथा – गोपनीय कथा

विद्वान् नारी – विदुषी नारी

मान्यनीय मन्त्रीजी – माननीय मन्त्रीजी

सन्तोष-चित्त – सन्तुष्ट-चित्त

सुखमय शान्ति – सुखमयी शान्ति

सुन्दर वनिताएँ – सुन्दरी वनिताएँ

महान् कार्य – महत्कार्य

6. प्रत्यय–उपसर्ग सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध — शुद्ध (Shudh Ashudh Shabd)

सौन्दर्यता – सौन्दर्य

लाघवता – लाघव

गौरवता – गौरव

चातुर्यता – चातुर्य

ऐक्यता – ऐक्य

सामर्थ्यता – सामर्थ्य

सौजन्यता – सौजन्य

औदार्यता – औदार्य

मनुष्यत्वता – मनुष्यत्व

अभिष्ट – अभीष्ट

बेफिजूल – फिजूल

मिठासता – मिठास

अज्ञानता – अज्ञान

भूगौलिक – भौगोलिक

इतिहासिक – ऐतिहासिक

निरस – नीरस

7. वचन सम्बन्धी अशुद्धियाँ

  1. हिन्दी मेँ बहुत से शब्दोँ का प्रयोग सदैव बहुवचन मेँ होता है, ऐसे शब्द हैँ—हस्ताक्षर, प्राण, दर्शन, आँसू, होश आदि।
  2. वाक्य मेँ ‘या’ , ‘अथवा’ का प्रयोग करने पर क्रिया एकवचन होती है। लेकिन ‘और’ , ‘एवं’ , ‘तथा’ का प्रयोग करने पर क्रिया बहुवचन होती है।
  3. आदरसूचक शब्दोँ का प्रयोग सदैव बहुवचन मेँ होता है।

Shudh Ashudh Vakya: उदाहरण

  • दो चादर खरीद लाया। (चादरेँ)
  • एक चटाइयाँ बिछा दो। (चटाई)
  • मेरा प्राण संकट मेँ है। (मेरे, हैँ)
  • आज मैँने महात्मा का दर्शन किया। (के, किये)
  • आज मेरा मामा आये। (मेरे)
  • फूल की माला गूँथो। (फूलोँ)
  • यह हस्ताक्षर किसका है? (ये, किसके, हैँ)
  • विनोद, रमेश और रहीम पढ़ रहा है। (रहे हैँ)

अशुद्ध — शुद्ध (Shudh Ashudh Shabd)

स्त्रीयाँ – स्त्रियाँ

मातायोँ – माताओँ

नारिओँ – नारियोँ

अनेकोँ – अनेक

बहुतोँ – बहुत

मुनिओँ – मुनियोँ

सबोँ – सब

विद्यार्थीयोँ – विद्यार्थियोँ

बन्धुएँ – बन्धुओँ

दादोँ – दादाओँ

सभीओँ – सभी

नदीओँ – नदियोँ

8. कारक सम्बन्धी अशुद्धियाँ

  • . – राम घर नहीँ है। शु. – राम घर पर नहीँ है।
  • अ. – अपने घर साफ रखो। शु. – अपने घर को साफ रखो।
  • अ. – उसको काम को करने दो। शु. – उसे काम करने दो।
  • अ. – आठ बजने को पन्द्रह मिनट हैँ। शु. – आठ बजने मेँ पन्द्रह मिनट हैँ।
  • अ. – मुझे अपने काम को करना है। शु. – मुझे अपना काम करना है।
  • अ. – यहाँ बहुत से लोग रहते हैँ। शु. – यहाँ बहुत लोग रहते हैँ।

9. शब्द–क्रम सम्बन्धी अशुद्धियाँ

  • . – वह पुस्तक है पढ़ता। शु. – वह पुस्तक पढ़ता है।
  • . – आजाद हुआ था यह देश सन् 1947 मेँ। शु. – यह देश सन् 1947 मेँ आजाद हुआ था।
  • . – ‘पृथ्वीराज रासो’ रचना चन्द्रवरदाई की है। शु. – चन्द्रवरदाई की रचना ‘पृथ्वीराज रासो’ है।

वाक्य–रचना सम्बन्धी अशुद्धियाँ एवं सुधार

(1) वाक्य–रचना मेँ कभी विशेषण का विशेष्य के अनुसार उचित लिंग एवं वचन मेँ प्रयोग न करने से या गलत कारक–चिह्न का प्रयोग करने से अशुद्धि रह जाती है।
(2) उचित विराम–चिह्न का प्रयोग न करने से अथवा शब्दोँ को उचित क्रम मेँ न रखने पर भी अशुद्धियाँ रह जाती हैँ।
(3) अनर्थक शब्दोँ का अथवा एक अर्थ के लिए दो शब्दोँ का और व्यर्थ के अव्यय शब्दोँ का प्रयोग करने से भी अशुद्धि रह जाती है।

Shudh Ashudh Vakya: उदाहरण

(अ.→अशुद्ध, शु.→शुद्ध)
अ. – सीता राम की स्त्री थी।
शु. – सीता राम की पत्नी थी।
अ. – मंत्रीजी को एक फूलोँ की माला पहनाई।
शु. – मंत्रीजी को फूलोँ की एक माला पहनाई।
अ. – महादेवी वर्मा श्रेष्ठ कवि थीँ।
शु. – महादेवी वर्मा श्रेष्ठ कवयित्री थीँ।
अ. – शत्रु मैदान से दौड़ खड़ा हुआ था।
शु. – शत्र मैदान से भाग खड़ा हुआ।
अ. – मेरे भाई को मैँने रुपये दिए।
शु. – अपने भाई को मैँने रुपये दिये।
अ. – यह किताब बड़ी छोटी है।
शु. – यह किताब बहुत छोटी है।
अ. – उपरोक्त बात पर मनन कीजिए।
शु. – उपर्युक्त बात पर मनन करिये।
अ. – सभी छात्रोँ मेँ रमेश चतुरतर है।
शु. – सभी छात्रोँ मेँ रमेश चतुरतम है।
अ. – मेरा सिर चक्कर काटता है।
शु. – मेरा सिर चकरा रहा है।
अ. – शायद आज सुरेश जरूर आयेगा।
शु. – शायद आज सुरेश आयेगा।
अ. – कृपया हमारे घर पधारने की कृपा करेँ।
शु. – हमारे घर पधारने की कृपा करेँ।
अ. – उसके पास अमूल्य अँगूठी है।
शु. – उसके पास बहुमूल्य अँगूठी है।
अ. – गाँव मेँ कुत्ते रात भर चिल्लाते हैँ।
शु. – गाँव मेँ कुत्ते रात भर भौँकते हैँ।
अ. – पेड़ोँ पर कोयल बोल रही है।
शु. – पेड़ पर कोयल कूक रही है।
अ. – वह प्रातःकाल के समय घूमने जाता है।
शु. – वह प्रातःकाल घूमने जाता है।
अ. – जज ने हत्यारे को मृत्यु दण्ड की सजा दी।
शु. – जज ने हत्यारे को मृत्यु दण्ड दिया।
अ. – वह विख्यात डाकू था।
शु. – वह कुख्यात डाकू था।
अ. – वह निरपराधी था।
शु. – वह निरपराध था।
अ. – आप चाहो तो काम बन जायेगा।
शु. – आप चाहेँ तो काम बन जायेगा।
अ. – माँ–बच्चा दोनोँ बीमार पड़ गयीँ।
शु. – माँ–बच्चा दोनोँ बीमार पड़ गए।
अ. – बेटी पराये घर का धन होता है।
शु. – बेटी पराये घर का धन होती है।
अ. – भक्तियुग का काल स्वर्णयुग माना जाता है।
शु. – भक्ति–काल स्वर्ण युग माना गया है।
अ. – बचपन से मैँ हिन्दी बोली हूँ।
शु. – बचपन से मैँ हिन्दी बोलती हूँ।
अ. – वह मुझे देखा तो घबरा गया।
शु. – उसने मुझे देखा तो घबरा गया।
अ. – अस्तबल मेँ घोड़ा चिँघाड़ रहा है।
शु. – अस्तबल मेँ घोड़ा हिनहिना रहा है।
अ. – पिँजरे मेँ शेर बोल रहा है।
शु. – पिँजरे मेँ शेर दहाड़ रहा है।
अ. – जंगल मेँ हाथी दहाड़ रहा है।
शु. – जंगल मेँ हाथी चिँघाड़ रहा है।
अ. – कृपया यह पुस्तक मेरे को दीजिए।
शु. – यह पुस्तक मुझे दीजिए।
अ. – बाजार मेँ एक दिन का अवकाश उपेक्षित है।
शु. – बाजार मेँ एक दिन का अवकाश अपेक्षित है।
अ. – छात्र ने कक्षा मेँ पुस्तक को पढ़ा।
शु. – छात्र ने कक्षा मेँ पुस्तक पढ़ी।
अ. – आपसे सदा अनुग्रहित रहा हूँ।
शु. – आपसे सदा अनुगृहीत हूँ।
अ. – घर मेँ केवल मात्र एक चारपाई है।
शु. – घर मेँ एक चारपाई है।
अ. – माली ने एक फूलोँ की माला बनाई।
शु. – माली ने फूलोँ की एक माला बनाई।
अ. – वह चित्र सुन्दरतापूर्ण है।
शु. – वह चित्र सुन्दर है।
अ. – कुत्ता एक स्वामी भक्त जानवर है।
शु. – कुत्ता स्वामिभक्त पशु है।
अ. – शायद आज आँधी अवश्य आयेगी।
शु. – शायद आज आँधी आये।
अ. – दिनेश सांयकाल के समय घूमने जाता है।
शु. – दिनेश सायंकाल घूमने जाता है।
अ. – यह विषय बड़ा छोटा है।
शु. – यह विषय बहुत छोटा है।
अ. – अनेकोँ विद्यार्थी खेल रहे हैँ।
शु. – अनेक विद्यार्थी खेल रहे हैँ।
अ. – वह चलता-चलता थक गया।
शु. – वह चलते-चलते थक गया।
अ. – मैँने हस्ताक्षर कर दिया है।
शु. – मैँने हस्ताक्षर कर दिये हैँ।
अ. – लता मधुर गायक है।
शु. – लता मधुर गायिका है।
अ. – महात्माओँ के सदोपदेश सुनने योग्य होते हैँ।
शु. – महात्माओँ के सदुपदेश सुनने योग्य होते हैँ।
अ. – उसने न्याधीश को निवेदन किया।
शु. – उसने न्यायाधीश से निवेदन किया।
अ. – हम ऐसा ही हूँ।
शु. – मैँ ऐसा ही हूँ।
अ. – पेड़ोँ पर पक्षी बैठा है।
शु. – पेड़ पर पक्षी बैठा है। या पेड़ोँ पर पक्षी बैठे हैँ।
अ. – हम हमारी कक्षा मेँ गए।
शु. – हम अपनी कक्षा मेँ गए।
अ. – आप खाये कि नहीँ?।
शु. – आपने खाया कि नहीँ?।
अ. – वह गया।
शु. – वह चला गया।
अ. – हम चाय अभी-अभी पिया है।
शु. – हमने चाय अभी-अभी पी है।
अ. – इसका अन्तःकरण अच्छा है।
शु. – इसका अन्तःकरण शुद्ध है।
अ. – शेर को देखते ही उसका होश उड़ गया।
शु. – शेर को देखते ही उसके होश उड़ गये।
अ. – वह साहित्यिक पुरुष है।
शु. – वह साहित्यकार है।
अ. – रामायण सभी हिन्दू मानते हैँ।
शु. – रामायण सभी हिन्दुओँ को मान्य है।
अ. – आज ठण्डी बर्फ मँगवानी चाहिए।
शु. – आज बर्फ मँगवानी चाहिए।
अ. – मैच को देखने चलो।
शु. – मैच देखने चलो।
अ. – मेरा पिताजी आया है।
शु. – मेरे पिताजी आये हैँ।

सामान्यतः अशुद्धि किए जाने वाले प्रमुख शब्द

अशुद्ध — शुद्ध (Shudh Ashudh Shabd)

अतिथी – अतिथि

अतिश्योक्ति – अतिशयोक्ति

अमावश्या – अमावस्या

अनुगृह – अनुग्रह

अन्तर्ध्यान – अन्तर्धान

अन्ताक्षरी – अन्त्याक्षरी

अनूजा – अनुजा

अन्धेरा – अँधेरा

अनेकोँ – अनेक

अनाधिकार – अनधिकार

अधिशाषी – अधिशासी

अन्तरगत – अन्तर्गत

अलोकित – अलौकिक

अगम – अगम्य

अहार – आहार

अजीविका – आजीविका

अहिल्या – अहल्या

अपरान्ह – अपराह्न

अत्याधिक – अत्यधिक

अभिशापित – अभिशप्त

अंतेष्टि – अंत्येष्टि

अकस्मात – अकस्मात्

अर्थात – अर्थात्

अनूपम – अनुपम

अंतर्रात्मा – अंतरात्मा

अन्विती – अन्विति

अध्यावसाय – अध्यवसाय

आभ्यंतर – अभ्यंतर

अन्वीष्ट – अन्विष्ट

आखर – अक्षर

आवाहन – आह्वान

आयू – आयु

आदेस – आदेश

अभ्यारण्य – अभयारण्य

अनुग्रहीत – अनुगृहीत

अहोरात्रि – अहोरात्र

अक्षुण्य – अक्षुण्ण

अनुसूया – अनुसूर्या

अक्षोहिणी – अक्षौहिणी

अँकुर – अंकुर

आहूति – आहुति

आधीन – अधीन

आशिर्वाद – आशीर्वाद

आद्र – आर्द्र

आरोग – आरोग्य

आक्रषक – आकर्षक

इष्ठ – इष्ट

इर्ष्या – ईर्ष्या

इस्कूल – स्कूल

इतिहासिक – ऐतिहासिक

इक्षा – ईक्षा

इप्सित – ईप्सित

इकठ्ठा – इकट्ठा

इन्दू – इन्दु

ईमारत – इमारत

एच्छिक – ऐच्छिक

उज्वल – उज्ज्वल

उतरदाई – उत्तरदायी

उतरोत्तर – उत्तरोत्तर

उध्यान – उद्यान

उपरोक्त – उपर्युक्त

उपवाश – उपवास

उदहारण – उदाहरण

उलंघन – उल्लंघन

उपलक्ष – उपलक्ष्य

उन्नतिशाली – उन्नतिशील

उच्छवास – उच्छ्वास

उज्जयनी – उज्जयिनी

उदीप्त – उद्दीप्त

ऊधम – उद्यम

उछिष्ट – उच्छिष्ट

ऊषा – उषा

ऊखली – ओखली

उष्मा – ऊष्मा

उर्मि – ऊर्मि

उरु – उरू

उहापोह – ऊहापोह

ऊंचाई – ऊँचाई

ऊख – ईख

रिधि – ऋद्धि

एक्य – ऐक्य

एतरेय – ऐतरेय

एकत्रित – एकत्र

एश्वर्य – ऐश्वर्य

ओषध – औषध

ओचित्य – औचित्य

औधोगिक – औद्योगिक

कनिष्ट – कनिष्ठ

कलिन्दी – कालिन्दी

करूणा – करुणा

कविन्द्र – कवीन्द्र

कवियत्री – कवयित्री

कलीदास – कालिदास

कार्रवाई – कार्यवाही

केन्द्रिय – केन्द्रीय

कैलास – कैलाश

किरन – किरण

किर्या – क्रिया

किँचित – किँचित्

कीर्ती – कीर्ति

कुआ – कुँआ

कुटम्ब – कुटुम्ब

कुतुहल – कौतूहल

कुशाण – कुषाण

कुरूति – कुरीति

कुसूर – कसूर

केकयी – कैकेयी

कोतुक – कौतुक

कोमुदी – कौमुदी

कोशल्या – कौशल्या

कोशल – कौशल

क्रति – कृति

क्रतार्थ – कृतार्थ

क्रतज्ञ – कृतज्ञ

कृत्घन – कृतघ्न

क्रत्रिम – कृत्रिम

खेतीहर – खेतिहर

गरिष्ट – गरिष्ठ

गणमान्य – गण्यमान्य

गत्यार्थ – गत्यर्थ

गुरू – गुरु

गूंगा – गूँगा

गोप्यनीय – गोपनीय

गूंज – गूँज

गौरवता – गौरव

गृहणी – गृहिणी

ग्रसित – ग्रस्त

गृहता – ग्रहीता

गीतांजली – गीतांजलि

गत्यावरोध – गत्यवरोध

गृहस्थि – गृहस्थी

गर्भिनी – गर्भिणी

घन्टा – घण्टा, घंटा

घबड़ाना – घबराना

चन्चल – चंचल, चञ्चल

चातुर्यता – चातुर्य, चतुराई

चाहरदीवारी – चहारदीवारी, चारदीवारी

चेत्र – चैत्र

तदानुकूल – तदनुकूल

तत्त्वाधान – तत्त्वावधान

तनखा – तनख्वाह

तरिका – तरीका

तखत – तख्त

तड़िज्योति – तड़िज्ज्योति

तिलांजली – तिलांजलि

तीर्थकंर – तीर्थंकर

त्रसित – त्रस्त

तत्व – तत्त्व

दंपति – दंपती

दारिद्रयता – दारिद्रय, दरिद्रता

दुख – दुःख

दृष्टा – द्रष्टा

देहिक – दैहिक

दोगुना – दुगुना

धनाड्य – धनाढ्य

धुरंदर – धुरंधर

धैर्यता – धैर्य

ध्रष्ट – धृष्ट

झौँका – झोँका

तदन्तर – तदनन्तर

जरुरत – जरूरत

दयालू – दयालु

धुम्र – धूम्र

दुरुह – दुरूह

धोका – धोखा

नैसृगिक – नैसर्गिक

नाइका – नायिका

नर्क – नरक

संगृह – संग्रह

गोतम – गौतम

झुंपड़ी – झोँपड़ी

तस्तरी – तश्तरी

छुद्र – क्षुद्र

छमा,समा – क्षमा

तोल – तौल

जजर्र – जर्जर

जागृत – जाग्रत

श्रृगाल – शृगाल

श्रृंगार – शृंगार

गिध – गिद्ध

चाहिये – चाहिए

तदोपरान्त – तदुपरान्त

क्षुदा – क्षुधा

चिन्ह – चिह्न

तिथी – तिथि

तैय्यार – तैयार

धेनू – धेनु

नटिनी – नटनी

बन्धू – बन्धु

द्वन्द – द्वन्द्व

निरोग – नीरोग

निश्कलंक – निष्कलंक

निरव – नीरव

नैपथ्य – नेपथ्य

परिस्थिती – परिस्थिति

परलोकिक – पारलौकिक

नीतीज्ञ – नीतिज्ञ

नृसंस – नृशंस

न्यायधीश – न्यायाधीश

परसुराम – परशुराम

बढ़ाई – बड़ाई

प्रहलाद – प्रह्लाद

बुद्धवार – बुधवार

पुन्य – पुण्य

बृज – ब्रज

पिपिलिका – पिपीलिका

बैदेही – वैदेही

पुर्नविवाह – पुनर्विवाह

भीमसैन – भीमसेन

मच्छिका – मक्षिका

लखनउ – लखनऊ

मुहुर्त – मुहूर्त

निरसता – नीरसता

बुढ़ा – बूढ़ा

परमेस्वर – परमेश्वर

बहुब्रीह – बहुब्रीहि

नेत्रत्व – नेतृत्व

भीत्ति – भित्ति

प्रथक – पृथक

मंत्रि – मन्त्री

पर्गल्भ – प्रगल्य

ब्रहमान्ड – ब्रहमाण्ड

महात्म्य – माहात्म्य

ब्राम्हण – ब्राह्मण

मैथलीशरण – मैथिलीशरण

बरात – बारात

व्यावहार – व्यवहार

भेरव – भैरव

भगीरथी – भागीरथी

भेषज – भैषज

मंत्रीमंडल – मन्त्रिमण्डल

मध्यस्त – मध्यस्थ

यसोदा – यशोदा

विरहणी – विरहिणी

यायाबर – यायावर

मृत्यूलोक – मृत्युलोक

राज्यभिषेक – राज्याभिषेक

युधिष्ठर – युधिष्ठिर

रितीकाल – रीतिकाल

यौवनावस्था – युवावस्था

रचियता – रचयिता

लघुत्तर – लघूत्तर

रोहीताश्व – रोहिताश्व

वनोषध – वनौषध

वधु – वधू

व्याभिचारी – व्यभिचारी

सूश्रुषा – सुश्रूषा/शुश्रूषा

सौजन्यता – सौजन्य

संक्षिप्तिकरण – संक्षिप्तीकरण

संसदसदस्य – संसत्सदस्य

सतगुण – सद्गुण

सम्मती – सम्मति

संघठन – संगठन

संतती – संतति

समिक्षा – समीक्षा

सौँदर्यता – सौँदर्य/सुन्दरता

सौहार्द्र – सौहार्द

सहश्र – सहस्र

संगृह – संग्रह

संसारिक – सांसारिक

सत्मार्ग – सन्मार्ग

सदृश्य – सदृश

सदोपदेश – सदुपदेश

समरथ – समर्थ

स्वस्थ्य – स्वास्थ्य/स्वस्थ

स्वास्तिक – स्वस्तिक

समबंध – संबंध

सन्यासी – संन्यासी

सरोजनी – सरोजिनी

संपति – संपत्ति

समुंदर – समुद्र

साधू – साधु

समाधी – समाधि

सुहागन – सुहागिन

सप्ताहिक – साप्ताहिक

सानंदपूर्वक – आनंदपूर्वक, सानंद

समाजिक – सामाजिक

स्त्राव – स्राव

स्त्रोत – स्रोत

सारथी – सारथि

सुई – सूई

सुसुप्ति – सुषुप्ति

नयी – नई

नही – नहीँ

निरुत्साहित – निरुत्साह

निस्वार्थ – निःस्वार्थ

निराभिमान – निरभिमान

निरानुनासिक – निरनुनासिक

निरूत्तर – निरुत्तर

नीँबू – नीबू

न्यौछावर – न्योछावर

नबाब – नवाब

निहारिका – नीहारिका

निशंग – निषंग

नुपुर – नूपुर

परिणित – परिणति, परिणीत

परिप्रेक्ष – परिप्रेक्ष्य

पश्चात्ताप – पश्चाताप

परिषद – परिषद्

पुनरावलोकन – पुनरवलोकन

पुनरोक्ति – पुनरुक्ति

पुनरोत्थान – पुनरुत्थान

पितावत् – पितृवत्

पक्षि – पक्षी

पूर्वान्ह – पूर्वाह्न

पुज्य – पूज्य

पूज्यनीय – पूजनीय

प्रगती – प्रगति

प्रज्ज्वलित – प्रज्वलित

प्रकृती – प्रकृति

प्रतीलिपि – प्रतिलिपि

प्रतिछाया – प्रतिच्छाया

प्रमाणिक – प्रामाणिक

प्रसंगिक – प्रासंगिक

प्रदर्शिनी – प्रदर्शनी

प्रियदर्शनी – प्रियदर्शिनी

प्रत्योपकार – प्रत्युपकार

प्रविष्ठ – प्रविष्ट

पृष्ट – पृष्ठ

प्रगट – प्रकट

प्राणीविज्ञान – प्राणिविज्ञान

पातंजली – पतंजलि

पौरुषत्व – पौरुष

पौर्वात्य – पौरस्त्य

बजार – बाजार

वाल्मीकी – वाल्मीकि

बेइमान – बेईमान

ब्रहस्पति – बृहस्पति

भरतरी – भर्तृहरि

भर्तसना – भर्त्सना

भागवान – भाग्यवान्

भानू – भानु

भारवी – भारवि

भाषाई – भाषायी

भिज्ञ – अभिज्ञ

भैय्या – भैया

मनुषत्व – मनुष्यत्व

मरीचका – मरीचिका

महत्व – महत्त्व

मँहगाई – मंहगाई

महत्वाकांक्षा – महत्त्वाकांक्षा

मालुम – मालूम

मान्यनीय – माननीय

मुकंद – मुकुंद

मुनी – मुनि

मुहल्ला – मोहल्ला

माताहीन – मातृहीन

मूलतयः – मूलतः

मोहर – मुहर

योगीराज – योगिराज

यशगान – यशोगान

रविन्द्र – रवीन्द्र

रागनी – रागिनी

रुठना – रूठना

रोहीत – रोहित

लोकिक – लौकिक

वस्तुयेँ – वस्तुएँ

वाँछनीय – वांछनीय

वित्तेषणा – वित्तैषणा

व्रतांत – वृतांत

वापिस – वापस

वासुकी – वासुकि

विधार्थी – विद्यार्थी

विदेशिक – वैदेशिक

विधी – विधि

वांगमय – वाङ्मय

वरीष्ठ – वरिष्ठ

विस्वास – विश्वास

विषेश – विशेष

विछिन्न – विच्छिन्न

विशिष्ठ – विशिष्ट

वशिष्ट – वशिष्ठ, वसिष्ठ

वैश्या – वेश्या

वेषभूषा – वेशभूषा

व्यंग – व्यंग्य

व्यवहरित – व्यवहृत

शारीरीक – शारीरिक

विसराम – विश्राम

शांती – शांति

शारांस – सारांश

शाषकीय – शासकीय

श्रोत – स्रोत

श्राप – शाप

शाबास – शाबाश

शर्बत – शरबत

शंशय – संशय

सिरीष – शिरीष

शक्तिशील – शक्तिशाली

शार्दुल – शार्दूल

शौचनीय – शोचनीय

शुरूआत – शुरुआत

शुरु – शुरू

श्राद – श्राद्ध

श्रृंग – शृंग

श्रृंखला – शृंखला

श्रृद्धा – श्रद्धा

शुद्धी – शुद्धि

श्रीमति – श्रीमती

श्मस्रु – श्मश्रु

षटानन – षडानन

सरीता – सरिता

सन्सार – संसार

संश्लिष्ठ – संश्लिष्ट

हरितिमा – हरीतिमा

ह्रदय – हृदय

हिरन – हरिण

हितेषी – हितैषी

हिँदु – हिंदू

ऋषिकेश – हृषिकेश

हेतू – हेतु।

1. वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ:

शब्दों के अक्षरों का गलत क्रम या गलत मात्रा प्रयोग।

  • उदाहरण: सुरज (अशुद्ध), सूरज (शुद्ध)

2. लिंग संबंधी अशुद्धियाँ:

विशेषण और विशेष्य का लिंग मेल होना चाहिए।

  • उदाहरण: लाल फूल (शुद्ध), लाल फूलें (अशुद्ध)
  • दिनों, महीनों, ग्रहों के नाम पुल्लिंग में, जबकि तिथियाँ, भाषाएँ और नदियाँ स्त्रीलिंग में होती हैं।

3. प्राणिवाचक और अप्राणिवाचक शब्द:

  • प्राणिवाचक शब्दों का लिंग अर्थ के अनुसार।
  • अप्राणिवाचक शब्दों का लिंग व्यवहार के अनुसार।

4. तत्सम शब्द:

कई तत्सम शब्द हिन्दी में स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होते हैं।

  • उदाहरण: मूर्ति (शुद्ध), मूर्त (अशुद्ध)

5. संयुक्ताक्षर और ध्वन्यात्मकता:

शब्दों में ध्वनि और अक्षरों के संयोजन का ध्यान रखना चाहिए।

  • उदाहरण: रक्षा (शुद्ध), रक्शा (अशुद्ध)

शुद्ध शब्दों का प्रयोग सही वर्तनी, व्याकरण, और उच्चारण पर निर्भर करता है। इन नियमों का पालन भाषा की शुद्धता और प्रभावी संप्रेषण के लिए आवश्यक है।

You May Also Like

Sthan Vachak Kriya Visheshan

स्थानवाचक क्रियाविशेषण – परिभाषा, उदाहरण, भेद एवं अर्थ

Lokokti in Hindi

Lokokti (proverbs): लोकोक्तियाँ, Lokokti in Hindi, हिन्दी लोकोक्तियाँ

Anekarthak Shabd in Hindi

अनेकार्थी शब्द (Anekarthak Shabd in Hindi): परिभाषा और उदाहरण, हिन्दी व्याकरण

Ekarthak Shabd

एकार्थक शब्द (Ekarthak Shabd in Hindi): परिभाषा और उदाहरण, हिन्दी व्याकरण

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *