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Sarswati maa pic
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सरस्वती देवी : Sarswati Devi

सरस्वती का जन्म: भगवान विष्णु जी की आज्ञा से जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो पृथ्वी पूरी तरह से निर्जन थी व चारों ओर उदासी का वातावरण था। इस उदासी को दूर करने के लिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में से पृथ्वी पर जल छिड़का। इन जलकणों से चार भुजाओं वाली एक शक्ति प्रकट हुई। इस शक्ति के हाथों में वीणा, पुस्तक व माला थी। ब्रह्मा जी ने शक्ति से वीणा बजाने को कहा ताकि पृथ्वी की उदासी दूर हो। शक्ति ने जैसे ही वीणा के तार छेड़े तो सारी पृथ्वी लहलहा उठी, सभी जीवों को वाणी मिल गई। वो दिन बसंत पंचमी का दिन था।

  • सरस्वती हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं
  • सरस्वती का जन्म ब्रह्मा के मुख से हुआ था |
  • सरस्वती विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई है
  • सरस्वती का नामांतरण शतरूपा भी है
  • सरस्वती के अन्य नाम है वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी, वीणावादिनी इत्यादि
  • सरस्वती की उपासना करने वाला मूर्ख भी विद्वान बन जाता है
  • माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है
  • देवी भागवत के अनुसार ब्रह्मा की स्त्री है
  • सरस्वती को विद्या कला और संगीत की देवी माना जाता है
  • पुराणों में वर्णित है कि सृष्टि के निर्माण के बाद संसार में मौन छाया था, जिसे दूर करने के लिए ब्रम्हा ने विष्णु के कहने पर मां सरस्वती की रचना की थी
  • ऐसा भी वर्णन मिलता है कि जब मां वीणावादिनी का अवतरण हुआ धरती में कंपन होने लगा था इसी कंपन और जल की बूंदों से देवी का स्वरूप सामने आया
  • शिक्षण संस्थानों में बसंत पंचमी के दिन सरस्वती का जन्मदिवस मनाया जाता है
  • कहते हैं महाकवि कालिदास, वरदराजाचार्य, वोपदेव सरस्वती की उपासना कर महान विद्वान बने थे
  • सरस्वती को एक मूर्ख और चार हाथ है
  • सरस्वती के हाथों में वीणा पुस्तक और माला होता है
  • वीणा जहां संगीत का प्रतीक हैं वहीं इनके श्वेत वस्त्र शांति और प्रसन्नता का प्रतीक है
  • इनके हाथों में ग्रंथ है अर्थात विद्या या ज्ञानदायिनी की कृपा के बगैर संसार में वेद, ग्रंथ, शास्त्रों की रचना भी संभव नही
  • सरस्वती का वाहन हंस है
  • मां सरस्वती सदैव जिव्हा (जीभ) में निवास करती हैं
  • भारत में कोई भी शैक्षणिक कार्य प्रारंभ करने से पहले सरस्वती की पूजा की जाती है
  • जापान में सरस्वती को बेंजाइतेन कहा जाता है
  • दक्षिण एशिया के अलावा जापान इंडोनेशिया थाईलैंड एवं अन्य देशों में भी सरस्वती की पूजा की जाती है
  • श्री कृष्ण ने भारतवर्ष में सर्वप्रथम सरस्वती की पूजा का प्रसार किया था
  • सरस्वती का वर्णन मत्स्यपुराण, ब्रह्मावैवर्त पुराण, मार्कंडेयपुराण, स्कंद पुराण अन्य ग्रंथों में भी हुई है
  • कुंभकरण के घोर निद्रा का कारण सरस्वती ही थी

 माँ सरस्वती के नाम

सरस्वती माँ के अन्य नामों में शारदा, शतरूपा, वीणावादिनी, वीणापाणि, वाग्देवी, वागेश्वरी, भारती आदि कई नामों से जाना जाता है। हंसवाहिनी, वागीश्वरी, सरस्वती, भारती, वागेश्वरी, शारदा, विणापाणी, वाग्देवी, महाश्वेता, ज्ञानदा

सरस्वती वंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां
जगद्व्यापिनीं वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌ ॥2॥

सरस्वती मंत्र

जो लोग सरस्वती के कठिन मंत्र का जप नहीं कर सक‍ते उनके लिए प्रस्तुत है मां सरस्वती का सरल अष्टाक्षर मंत्र। इस मंत्र का पाठ नित्य करने से विद्या और बुद्धि में वृद्धि होती है। यह मंत्र देवी सरस्वती का मूल मंत्र है: –

“शारदा शारदाभौम्वदना वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदास्माकमं सन्निधिमं सन्निधिमं क्रिया तू।” ॥ 1 ॥

श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा ॥ 2 ॥

ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः ॥ 3 ॥

सरस्वती पूजा

वीणावादिनी, शुभ्रवसना, मंद-मंद मुस्कुराती हंस पर विराजमान मां सरस्वती के पूजन से मानव जीवन का अज्ञान रूप दूर होकर ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है। भारतीय धर्म शास्त्रों में देवी-देवता के पूजन एवं स्तुति के लिए कई प्रकार के मंत्र रचा गए है। यह मंत्र विशेष रूप मां सरस्वती को प्रसन्न करने का अद्‍भुत उपाय है।

सरस्वती वंदना संस्कृत

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥

अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें।

शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥

अर्थ : शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अंधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूं।

सरस्वती नमस्तुभ्यं वर्दे कामरूपिणी
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा। ॥3॥

अर्थ : हे देवी सबकी कामना पूर्ण करने वाली माता सरस्वती, आपको नमस्कार करता हूँ।मैं अपनी विद्या ग्रहण करना आरम्भ कर रहा हूँ , मुझे इस कार्य में सिद्धि मिले।

या देवी सरवभुतेशु विद्यारूपें संस्थिता,
न्मस्तस्य न्मस्तस्य न्मस्तस्य नमो नमः। ॥4॥

सरस्वती माता का दिन

बसंत पंचमी में माता सरस्वती के पूजा का विशेष विधान है। इस दिन माता सरस्वती को प्रसन्न करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

सरस्वती वंदना कविता

सरस्वती वंदना कविता

सरस्वती वंदना लिखी हुई : हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी, वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥

हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे॥
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमर कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे।
स्वाभिमान भर दे॥1॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे॥
लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें
हम मानवता का त्रास हरें
हम, सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे।
फिर घर-घर भर दे॥2॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे॥

मां सरस्वती का श्र्लोक

ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्॥
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्॥
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।
वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै:॥

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