सम्प्रेषण का उद्देश्य (Aims of Communication): सम्प्रेषण का क्या उद्देश्य है?

Aims of Communication in Hindi

सम्प्रेषण मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता है, क्योंकि इसके अभाव में वह मानसिक संतुलन खो सकता है। सम्प्रेषण का मुख्य उद्देश्य भावों के आदान-प्रदान के माध्यम से समाज में शांति और संतुलन बनाए रखना है। यह समाज में संगठन और ताकत का आधार भी है।

कुशल वक्ता, जो अपनी भावनाओं और विचारों को निर्भीक होकर व्यक्त करता है, वह लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। सम्प्रेषण शिक्षा का भी एक महत्वपूर्ण तत्व है। शिक्षक को छात्रों के समक्ष उचित सम्प्रेषण साधनों का प्रयोग कर उनके व्यक्तित्व के विकास में योगदान देना चाहिए।

सम्प्रेषण का उद्देश्य

सम्प्रेषण मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यदि मनुष्य अपने विचारों, भावनाओं, उद्वेगों और अर्न्तद्वन्द्वों को प्रकाशित न कर सके तो वह मानसिक सन्तुलन खो बैठता है। अतः सम्प्रेषण मानसिक सन्तुलन और शान्ति के लिये भी आवश्यक है। सम्प्रेषण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

  1. सम्प्रेषण का उद्देश्य है भावों के आदान-प्रदान द्वारा उत्तेजित भावनाओं को शान्त कर समाज में शान्ति और सन्तुलन बनाये रखना। ऐसे ही समाज में संगठन और ताकत होती है जिसके सदस्य अपने भावों का आपस में आदान प्रदान करते रहते हैं।
  2. जो व्यक्ति निर्भीक होकर अपनी सम्मति अथवा विचार प्रकट कर सकता है, जो अपनी भावनाओं को दूसरों के समक्ष प्रकट कर उन्हें अपने वश में कर लेता है। लाखों की भीड़ ऐसे कुशल वक्ता की बात एकाग्रचित्त होकर सुनती है और उससे प्रभावित होती है।

सम्प्रेषण व्यक्ति की प्रधान आवश्यकता है और शिक्षा ऐसी सोद्देश्य क्रिया है जिसके द्वारा शिक्षक और विद्यार्थियों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि की जाती है। इसलिये शिक्षक को विद्यालय में छात्रों के समक्ष भाव प्रकाशन के सभी सम्भव साधन प्रस्तुत कर उनके व्यक्तित्व का विकास करना चाहिये।

शिक्षक के सामने सम्प्रेषण से सम्बन्धित निम्नलिखित विशिष्ट उद्देश्य होने चाहिये:-

  1. बालकों में स्वाभाविक रूप से शुद्ध प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावोत्पादक ढंग से वार्तालाप करने की योग्यता विकसित करना ताकि वे अपने मनोभावों को सरलता से दूसरों के सामने प्रकट कर सकें।
  2. छात्रों में क्रमिक रूप से निरन्तर बोलते जाने की क्षमता पैदा करना।
  3. छात्रों में मधुर एवं रोचकं भाषण देने की शक्ति विकसित करना।
  4. छात्रों में संकोच, झिझक और आत्महीनता की भावना को दूर करना।

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