बल्लूशाह की शपथ (Oath of Ballu Shah)
“ये खजूरे कितने रसीले और गदेदार हैं।” बल्लूशाह घर आते हुए यह सोच रहा था। “इन खजूरों को पाने के लिए किसी से इजाजत भी नहीं लेनी पड़ेगी।” लेकिन क्या, करता, पेड़ बहुत लम्बा और ऊँचा था और बल्लूशाह बहुत नाटा। वह पेड़ पर किसी को चढ़ने और उसके लिए फल तोड़कर लाने के लिए कह सकता था, लेकिन वह जिसे भी ऐसा करने को कहता वह बदले में कुछ धन माँगता।
बल्लूशाह के पास धन की कोई कमी नहीं थी, बस कमी थी तो ऊँचे कद की। लेकिन वह पहले दर्जे का कंजूस था। उसे धन खर्च करने से सख्त घृणा थी। यदि उसे मीठे खजूरों के लिए कुछ धन
खर्च करना पड़ जाए तो खजूरे उसके मुँह में कसैला स्वाद छोड़ते थे। अत: उसने निश्चय कर लिया कि वह स्वयं पेड़ पर चढ़ेगा।
जैसे-तैसे बल्लूशाह ने अपनी बाँहे और टाँगें पेड़ के तने के साथ सटाईं और धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगा। धीरे-धीरे चढ़ता हुआ आखिर वह ऊपर पहुँचने में सफल हआ। ऊपर बैठकर जैसे ही वह खजूरे तोड़ने लगा उसकी निगाह धरती पर पड़ी।
“हाय! हाय!” वह भय से बुदबुदाया और कॉपने लगा, वह धरती से बहुत ऊँचाई पर था। वह भय से काँपता हुआ सोच रहा था कि उसका क्या होगा यदि वह धरती पर गिर गया। वह तो मर ही जाएगा। ऐसी मुश्किल की घड़ी में उसने अपने भगवान को याद किया।
वह अपनी जान के बदले भगवान को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकता था। बल्लूशाह ने गम्भीरता से यह शपथ ली कि यदि भगवान उसे धरती पर उतर आने में उसकी मदद करेंगे तो वह 1000 ब्राह्मणों को भोजन कराएगा।
एक बार जब उसे लगा कि भगवान उसके साथ हैं, उसने धीरे-धीरे उतरना आरम्भ किया। आधा रास्ता तय करने पर उसने फिर से नीचे देखा। अब उसे मौत थोड़ी दूरी पर प्रतीत हुई, क्योंकि वह अब धरती के कुछ निकट आ गया था। उसकी कंजूस प्रवृत्ति उस पर भारी पड़ने लगी थी।
उसने महसूस किया कि जल्दबाजी में उसने बहुत बड़ा वादा कर दिया है, एक हजार ब्राह्मणों को भोजन खिलाना। यह तो बहुत अधिक है। भगवान तो 500 ब्राह्मणों को भोजन कराने की बात पर खुश हो जाते।
बल्लूशाह पेड़ से कुछ और नीचे उतरा। अब उसे 500 ब्राहमण भी संख्या में कुछ अधिक लगे। उसने सोचा कि भगवान को भी मुझसे कुछ कम की अपेक्षा रखनी चाहिए। आखिर इन दिनों मैं भी कुछ कठिन समय से गुजर रहा हूँ।
जैसे-जैसे भूमि और उसके बीच की दूरी घटती गई वह अपने वायदे में आवश्यक बदलाव करता गया। अंत में, जैसे ही उसके पाँव जमीन पर पड़े, उसने निश्चय किया कि भगवान का धन्यवाद देने के लिए तो केवल एक ही ब्राहमण को भोजन करवाना पर्याप्त होगा।
जब वह वापस अपने घर की ओर चला जा रहा था, उसका कंजूस मन एक ब्राह्मण के भोजन पर होने वाले खर्चे का हिसाब-किताब लगा रहा था।
क्या कोई ऐसा रास्ता निकल सकता है जिससे वह अपना खर्चा घटा सके? क्या वह केवल आधे ब्राहमण को भोजन नहीं करा सकता? बल्लुशाह के मन में फिर से एक विचार आया। हाँ, वह भोजन के लिए ऐसे ब्राहमण का चयन करेगा जिसकी भूख कम हो। वह अपने इस विचार से अत्यधिक खुश था।
अपने गाँव में पूछताछ करने पर उसने पाया कि जानकीदास बहुत कम खाता है। इसलिए बल्लूशाह ने उसे भोजन के लिए आमंत्रित किया। जानकीदास एक ईमानदार और अच्छा व्यक्ति था और साथ ही वह भगवान का सच्चा भक्त भी था। लेकिन उसने बल्लूशाह की कंजूसी के बारे में सुन रखा था और उसने उसे सबक सिखाने का निश्चय किया।
उसने बल्लूशाह का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। बल्लूशाह ने अपनी पत्नी को अपनी प्रतिज्ञा के बारे में बताया और कहा कि जानकीदास कल आएगा। अत: भगवान को प्रसन्न करने के लिए, श्यामली हमें अधिक से अधिक करना है जो हम कर सकते हैं, लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि हमें खर्च उतना कम करना है जितना हम कर सकते हैं।
सौभाग्यवश कहें या दुर्भाग्यवश, वह भूल गया था कि अगला दिन साप्ताहिक बाजार का दिन है। बल्लूशाह बाजार का वह दिन खोना नहीं चाहता था आखिर ब्राह्मण पर होने वाले खर्च की भरपाई भी तो उसे करनी थी। अतः अपनी पत्नी को ब्राहमण को भोजन कराने का उत्तरदायित्व सौंप वह बाजार के लिए निकल पड़ा।
जानकीदास ने देखा कि बल्लूशाह बाजार की ओर जा रहा है। वह झटपट तैयार होकर बल्लूशाह के घर की ओर रवाना हुआ।” मैं सोचता हूँ कि तुम्हें इस प्रकार की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने सम्बन्धी आवश्यक विधि के बारे में कुछ सलाह दूं।” जानकीदास ने श्यामली को कहा। “विशेष तौर पर तब जब तुमने इस प्रकार का कार्य पहले कभी किया न हो, इसके लिए तुम्हें मेरे सभी निर्देशों पर चलना होगा।”
श्यामली इस अनपेक्षित सलाह को सुनकर अत्यंत प्रसन्न हई। “मैं जो जानती थी वह सब मैंने किया है, लेकिन आपके सभी निर्देशों का मैं प्रसन्नतापूर्वक पालन करूंगी।” “एक चीज का ध्यान रखना, यद्यपि प्रतिज्ञा एक व्यक्ति को भोजन कराने की है, तुम्हें दस व्यक्तियों जितना खाना बनाना होगा। मैं आशा करता हूँ कि तुम्हें पता है कि क्या-क्या व्यंजन बनाने हैं।”
जब श्यामली ने बताया कि वह क्या-क्या व्यंजन पका रही है तो उसने कहा, “ये सब ठीक हैं, लेकिन इन सबका लाभ केवल तभी होगा जब तुम इसमें गणपति जी को प्रसन्न करने के लिए तीन प्रकार की मिठाइयाँ और जोड़ोगी। हमें सभी देवताओं को प्रसन्न करना है।” इसके पश्चात् जानकीदास चला गया।
जब वह दोपहर भोजन के लिए वापस आया, श्यामली ने सब कुछ तैयार रखा था। “तुमने भोजन को सही ढंग से परोसा है। जानकीदास ने कहा। “लेकिन इसमें कुछ कमी है ……” जानकीदास ने कुछ सोचते हुए कहा, “हाँ! वे दो सोने की मोहरे कहाँ हैं जो कि इस प्रायोजन का हिस्सा हैं?”
श्यामली ऐसे समय में कोई बहस नहीं करना चाहती थी। उसके पति ने उससे सोने की मोहरों का कोई जिक्र नहीं किया था। लेकिन वह दो मोहरें भीतर से लेकर आई और भोजन के समय नीचे बैठ गई।
जानकीदास खाने नीचे बैठ गया। अपनी आदत के विपरीत, उसने डटकर खाया। तब उसने बाकी बचा खाना एक डिब्बे में डाला और मोहरों को उठाया और कहने लगा, “भगवान आपके प्रयासों से प्रसन्न होगा और बल्लूशाह और तुम्हें आशीर्वाद देगा। अब एक छोटी-सी वस्तु बाकी है और वह है दक्षिणा।”
श्यामली कुछ बोल न पा रही थी। जानकीदास ने उसकी हिचकिचाहट पर नाराजगी दिखाई। “क्या तुम अपने पति का भला नहीं चाहती?” उसने कहा, “यदि तुम किसी ब्राहमण को भोजन कराते हो तो दो मोहरों की दक्षिणा आवश्यक होती है।”
श्यामली जानती थी कि उसके पति को चार मोहरों का नुकसान बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन यदि यह आवश्यक नियम है तो उसे इसका पालन अवश्य करना पड़ेगा। इसलिए उसने ब्राहमण को दो मोहरें और दे दी।
जानकीदास संतुष्ट होकर घर लौट आया और उसने अपनी पत्नी को बुलाया। जानकीदास ने पत्नी से कहा कि अभी बल्लूशाह गुस्से से लाल-पीला होता हुआ उसके घर आएगा और तुम्हें वही करना है जो मैंने कहा है। तब वह बिस्तर पर जाकर सो गया।
जब बल्लूशाह घर आया तो उसकी पत्नी ने दिन-भर की घटना उसे सुनाई। बल्लूशाह गुस्से से भर गया, उसने छड़ी उठाई और जानकीदास के घर की ओर दौड़ा। ब्राह्मण की पत्नी ने उसे खिड़की से आते देखा। “अरे ओ! धोखेबाज और पापी बल्लू अरे ओ कंजूस।” उसने अपनी छाती पीटते हुए विलाप करना शुरू कर दिया।
“तुमने मेरे पति को जहर देकर मार दिया। अगर तू उसे भोजन नहीं कराना चाहता था तो उसे भूखा ही छोड़ दिया होता। कम से कम वह जिन्दा तो रहता।” बल्लूशाह यह सुन कर ठिठक गया। “अब रोना-धोना छोड़ो।” वह बोला। तुम तो पूरे गाँव को यहाँ इकट्ठा कर लोगी। ऐसा करने की बजाय तुरंत डॉक्टर को बुलाओ।
“उसकी फीस का क्या होगा?” स्त्री चिल्लाई, “तुम समझते हो कि हमारे पास फीस के लिए धन है? मुझे दस मोहरें दो और मैं किसी डॉक्टर को बुलाती हूँ। नहीं तो मेरे पति चल बसेंगे और तुम्हें फाँसी हो जाएगी।”
“किसी को मेरे साथ भेजो। मैं घर जाता हूँ और दस सोने की मोहरें भेजता हूँ।” बल्लूशाह जानकीदास के बेटे के साथ घर की ओर दौड़ा। उसने अपनी तिजोरी से निकाल कर दस मोहरें लड़के को दी। “अब घर भाग जाओ।” उसने कहा, “अपनी माँ को गाँव का सबसे बढ़िया डॉक्टर बुलाने को कहो।”
लड़का अपने घर की ओर भागा। बल्लूशाह धरती पर बैठ गया, उसकी टाँगे काँप रही थीं, दिल जोरों से धड़क रहा था और उसने भगवान से प्रार्थना की कि यदि भगवान उसे इस मुसीबत से निजात दिला दें तो वह 1000 ब्राह्मणों को भोजन कराएगा।