‘इतिहास‘ शब्द की उत्पत्ति संस्कर्त के तीन शब्दो से (इति+ह+आस) से मिलकर हुई है। ‘इति‘ का अर्थ है ‘जैसा हुआ वैसा ही,’ह‘ का अर्थ है ‘सचमुच‘ तथा ‘आस‘ का अर्थ है ‘निरन्तर रहना या ज्ञान होना‘। वास्तव मे परम्परा से प्राप्त उपाख्यान समूह ही इतिहास है। ‘हिस्टरी (History)‘ शब्द का प्रयोग हेरोडोटस ने अपनी पहली पुस्तक ‘हिस्टोरिका‘ (Historical) मे किया था। इसीलिए हेरोडोटस को ‘इतिहास का जनक‘ माना जाता है।
इतिहास के जनक
‘हिस्टरी (History)‘ शब्द का प्रयोग हेरोडोटस ने अपनी पहली पुस्तक ‘हिस्टोरिका‘ (Historical) मे किया था। इसीलिए हेरोडोटस को ‘इतिहास का जनक‘ माना जाता है।
इतिहास के श्रोत
भारत में इतिहास के दो ही मुख्य श्रोत माने जाते हैं- (1) ‘पुरातत्व श्रोत‘ जैसे अभिलेख, शिलालेख आदि (2) ‘साहित्यिक श्रोत‘ जैसे देशी साहित्य और विदेशी साहित्य आदि। देशी साहित्य के अंतर्गत धार्मिक और गैर धार्मिक दोनों प्रकार का साहित्य आता है।
भारतीय इतिहास
भारत के इतिहास को इतिहासकरों ने अध्ययन की दृष्टि से तीन भागों में विभाजित किया – प्राचीन इतिहास, मध्यकालीन इतिहास, और आधुनिक इतिहास। मध्यकालीन इतिहास को पुनः दो भागों में बांटा गया है – पूर्व मध्यकालोत्तर, मध्यकाल।
सिन्धु घाटी की सभ्यता
पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में 1921 में हड़प्पा (पंजाब, पाकिस्तान) और 1922 में मोहनजोदड़ो (सिन्ध, पाकिस्तान) नामक नगरों का पता चला। ये मुख्यत नगरीय सभ्यता थी। इसकी अवधि 2500-1750 ई. पू. बताई जाती है। नगर सुनियोजित तरीके से बसाये गये थे। मकान पक्की ईंटों के बने थे।
लोग कपास व ऊन के वस्त्र पहनते थे। गेहूँ, जौ, मटर, तरबूज आदि की कृषि करते थे। स्त्रियाँ स्कर्ट पहनती थीं और पुरुष धोती लपेटते थे। यहाँ लोग आभूषण भी पहनते थे। ये लोग पीपल देवता व शिवजी की पूजा अर्चना करते थे।
मोहनजोदडो सभा गृह एवं विशाल स्नानागार तथा हड़प्पा में अनाज रखने की खत्तियाँ थीं। भारत में इस सभ्यता के चिह्न लोथल (गुजरात), रोपड़ (पंजाय) तथा काली गंगा (राजस्थान) में मिले हैं।
वैदिक सभ्यता
सिन्धु घाटी की सभ्यता के बाद भारत में वैदिक सभ्यता का प्रसार हुआ जो आर्यों द्वारा विकसित की गई थी। आर्यों के कारण ही भारत का नाम आर्यावर्त पड़ा। सर्वप्रथम ये ‘सप्तसैन्धव या सात नदियों के प्रवेश काबुल, गांधार, कश्मीर में आकर बस गए थे। कई शताब्दी रहने के बाद वे गंगा-यमुना के मैदान में आये और समस्त उत्तरी भारत में फैल गए।
आर्यों का समाज चार भागों या जातियों में बँटा हुआ था-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। पिता परिवार का स्वामी होता था। इनकी सभ्यता ग्रामीण थी। ये लोग अच्छे उद्योगी थे और लोहा, तांबा व सोने का उपयोग करते थे। आर्य लोग मुख्यतः प्राकृतिक देवताओं वरुण, इन्द्र, सूर्य आदि की उपासना करते थे।
आर्यों ने समस्त जीवन को चार आश्रमों में विभाजित किया
- ब्रह्मचर्य आश्रम
- गृहस्थ आश्रम
- वानप्रस्थ आश्रम
- संन्यास आश्रम
आर्य 1500 वर्ष ई.पू. में आये तथा लगभग 600 ई. पू. तक भारत पर छाये रहे। बाद में आर्य लोग स्थानीय निवासियों से मिल गये और हिन्दू धर्म का विकास हुआ।
वैदिक काल की प्रमुख धार्मिक पुस्तकें
1. वेद
वेद चार हैं – (i) ऋग्वेद, (ii) सामवेद, (iii) यजुर्वेद, (iv) अथर्ववेद।
ऋग्वेद
विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ है। गायत्री मन्त्र का उल्लेख ऋग्वेद में है। इसका पाठ करने वाले ब्राह्मण को ‘होतृ’ कहा जाता है।
यजुर्वेद
यजुर्वेद कर्मकाण्ड प्रधान ग्रन्थ है। इसका पाठ करने वाले ब्राह्मण को ‘अध्वर्य’ कहा जाता है।
सामवेद
सामवेद को ‘भारतीय संगीत का जनक’ माना जाता है। इसका गान करने वाले ब्राह्मण को ‘उद्गात्’ कहा जाता है।
अथर्ववेद
अथर्ववेद में पवित्र जादू, रोग निवारण राजभक्ति, विवाह, प्रणय-गीत, अन्धविश्वासों का वर्णन है।
उपनिषद्
ये आर्यों के दार्शनिक ग्रन्थ हैं। इनकी संख्या 108 बताई जाती है, किन्तु 11 उपनिषद् अधिक प्रसिद्ध है- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडुक्य, ऐतरेय, तैत्तरीय, मन्दोग्य, बृहदारण्यक, श्वेताश्वर।
- मुण्डक उपनिषद् से – सत्यमेव जयते लिया गया है।
- बृहदारण्यक उपनिषद् से – ब्राह्मणों के बारे में जानकारी मिलाती है।
- जवालो उपनिषद् से – चार आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास) की जानकारी मिलती है।
महाकाव्य
वैदिक काल के दो प्रमुख महाकाव्य हैं, वाल्मीकि द्वारा रचित ‘रामायण’, वेदव्यास द्वारा रचित ‘महाभारत’।
पुराण
पुराणों की संख्या 18 है। प्रभुत पुराणे में भगवद पुराण, वामन पुराण एवं गरुण पुराण आदि है।
स्मृति
मनु द्वारा रचित ‘मनुस्मृति’ प्रमुख है।
भारतीय इतिहास
- प्रमुख भारतीय राजवंश
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