आर्यों की सामाजिक व्यवस्था
आर्यों की सामाजिक व्यवस्था में समाज का आधार परिवार था। परिवार का वरिष्ठ सदस्य इसका मुखिया होता था, जिसको कुलप या गृहपति कह जाता था। आरंभ में आर्य तीन वर्षों में विभाजित थे। राजा, पुरोहित तथा अन्य जन। यह विभाजन उनके व्यवसाय पर आधारित था। धीरे-धीरे यज्ञ करवाने वाला ब्राह्मण, युद्ध करनेवाला क्षत्रिय, व्यापार करनेवाला वैश्य कहलाने लगा। साथ ही चौथा वर्ण शूद्र भी आया जो युद्ध में हारे हुए लोग थे। यह व्यवस्था धीरे-धीरे कठोर होती गई। कार्य का स्वरूप वंशानुगत होता गया। महिलाओं को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था, वे पुरूषों के समान ही शिक्षा प्राप्त करती थीं। आर्यों का घर घास-फूस तथा मिट्टी के बने होते थे। आर्य दूध एवं उससे बने पदार्थ का प्रयोग करते थे। अनाज में वे जौ, गेहूँ, चावल का प्रयोग करते थे।