सामाजिक स्थिति
मौर्यकाल में समाज व्यवसाय के आधार पर 7 श्रेणियों में बंटा हुआ था, यह साथ श्रेणियां दार्शनिक, किसान, शिकारी एवं पशुपालक, शिल्पी एवं कारीगर, योद्धा, निरीक्षक एवं गुप्तचर तथा अमात्य और सभासद थीं। इस दौरान अधिकतर लोगों का व्यवसाय कृषि था।
कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में समाज की चारों वर्गों का उल्लेख ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र के रूप में किया है। कौटिल्य ने शूद्रों को आर्य कहा है तथा उन्हें मलेच्छों से भिन्न बताया है। अर्थशास्त्र में कृषि, पशुपालन और व्यापार को शूद्रों का व्यवसाय बताया गया है। कौटिल्य ने कई मिश्रित जातियों का भी उल्लेख किया है, उनकी उत्पति विभिन्न वर्णों के अनुलोम व प्रतिलोम विवाहों से हुई थी।