उत्तर वैदिक काल में सामाजिक स्थिति
वैदिक काल में व्यवसाय के आधार पर समाज को विभिन्न वर्गों में बांटा गया था, परन्तु समय के साथ-साथ यह व्यवस्था जन्म-आधारित बन गयी। धीरे-धीरे यह व्यवस्था समाज का अंग बन गयी। उत्तरवैदिक काल में वर्ण व्यवस्था धीरे-धीरे जाति व्यवस्था में बदलने लगी। इसके कारण आर्यों का विभाजन चार प्रमुख वर्गों में हो गया, यह चार वर्ग ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र थे। इस काल में यज्ञ व अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में वृद्धि होने के कारण ब्राह्मणों की प्रतिष्ठता में वृद्धि हुई। धीरे-धीरे विभिन्न सामाजिक वर्ग जाति के रूप में उभर कर आने लगे और धीरे-धीरे यह व्यवस्था कठोर बनने लगी।