राजा भोज के नाम के साथ एक लोक कथा जुड़ी है। विक्रमादित्य और राजा भोज- ये दोनों नाम मालव भूमि के साथ जुड़े हुए हैं। राजा भोज विद्वान एवं न्यायप्रिय राजा थे। वे प्रजा को सुखी एवं प्रसन्न रखने के लिए अनेक उपाय करते थे। उनकी एक आदत थी कि वे रात्रि में बदले हुए वेश में प्रजा के सुख-दुःख को जानने के लिए निकल जाया करते थे।
एक बार रास्ते में उन्हें चार चोर दिखाई दिए। राजा ने अनुमान लगा लिया कि ये चोर ही हो सकते हैं। उन्होंने सोचा-न जाने ये किसके यहाँ चोरी करने जा रहे हैं? पर मैं राजा हँ। मेरी प्रजा चैन से रहे, इस बात का उत्तरदायित्व मेरे ऊपर है। जब मैंने इन्हें देख ही लिया है तो मुझे इनका पीछा करना चाहिए और पता लगाना चाहिए कि ये किधर जा रहे हैं?
राजा उनमें सम्मिलित हो गया। जब वह उनके साथ-साथ चलने लगा, तब चोरों ने उसे नया जानकर पूछा, “तुम कौन हो?” राजा ने उत्तर दिया, “जो तुम हो सो मैं हूँ।” चोर प्रसन्न होकर बोले- “जाति भाई को जाति भाई पहचानते हैं?”
चोरों ने राजा की बातों से समझा कि यह भी कोई चोर है, परंतु किसी पर एकदम विश्वास करना ठीक नहीं। चोरों ने उसे टटोलते हुए पूछा, “तुम अभी किसलिए जा रहे हो?” राजा ने सांकेतिक भाषा में जवाब दिया, “जिसके लिए तुम जा रहे हो?”
उन्होंने पक्का निर्णय करने के लिए पूछा, “हम किसत्एि जा रहे हैं?” राजा ने बड़ी सफाई से इस प्रकार कहा ताकि उसका विश्वास जम जाए, “भाई, अब ज्यादा मत बनो। लोक भाषा में कहूँ-तुम चोर हो और चोरी करने जा रहे हो। मैं भी तो इसी कार्य के लिए ही जा रहा हूँ।’
चोरों ने उससे कुछ और बातें जाननी चाहीं। अब उन्हें विश्वास हो गया कि यह भी हमारे जैसा ही है। तब वे बाले, “ठीक है भाई चलो। चार से पाँच भले।” राजा ने पूछा, “तुम कहाँ जा रहे हो?” उन्होंने कुछ घरों के नाम बताए।
राजा नहीं चाहता था कि वे प्रजा के यहाँ उत्पात करें। इसलिए उसने टालने की गरज से कहा, “वहाँ क्या रखा है। जाना है तो किसी ऐसे सम्पन्न घर में जाओ, जहाँ से कुछ जाए तो मालिक को कोई चिन्ता न हो।”
कुछ विचार विमर्श करने के पश्चात् चोर बोले, “ऐसा घर तो राजा भोज का खजाना है। हमारा मन भी वहीं हाथ साफ करने का है। ठीक है।” राजा बोले, “ऐसा मन है तुम्हारा! पर सोच लो वह कोई नानी-दादी का घर नहीं है। वहाँ तो चारों ओर पहरे लगे होंगे।”
वे बोले, “तो क्या हुआ, हम भी ऐसे वैसे चोर नहीं हैं। हम भी बड़े नामी हैं। चोरी की कला में पूरी तरह दक्ष हैं।”
भोज ने कहा, “मैं भी सुनूँ भाई! तुम लोग क्या-क्या कलाएँ जानते हो?”
उनके नाम क्रमशः दीप्या. सोम्या. मंगल्या और बध्या थे। वे एक-एक करके अपनी कला और अपने गुण बताने लगे।
दीप्या ने बताया, “घर मालिक, जागत सोवत मुझ भान पड़े।” (मैं ऐसी विद्या जानता हूँ। जिससे मुझे यह पता चल जाता है कि मकान का मालिक जाग रहा है अथवा सो रहा है।)
“तुम्हारी कला तो बहुत बढ़िया है। इससे सावधानी रह सकती है।” राजा ने कहा।
सोम्या ने कहा, “मुझे मंत्र के जोग, ताले खड़ाखड़ आन पड़े।” (मेरे पास ऐसा मंत्र बल है जिससे कितने भी मजबूत और कैसे भी ताले क्यों न हों, खड़ाखड़ खुल जाते हैं।)
राजा बोला, “वाह ! क्या बात है। न सेंध लगाने की जरूरत, न श्रम करने की। ताले खड़ाखड़ खुल जाएँगे। आवाज होगी नहीं तो किसी के जागने का भय नहीं रहेगा। बहुत सुंदर।”
मंगल्या ने कहा, “धन भूमि रह्यो सो, दऊँ प्रत्यक्ष छान पड़े।” (मेरे पास ऐसी विद्या है कि भूमि में कहाँ कितना धन गढ़ा है ? यह मैं भली-भाँति बता सकता हूँ।)
राजा ने कहा, “इस विद्या का तो कोई जवाब नहीं। धन इधर-उधर टटोलने की आवश्यकता नहीं रहेगी। समय भी बर्बाद नहीं होगा और धन भी आसानी से हाथ लग सकेगा।” अब राजा ने बुध्या की ओर देखा।
बुध्या बोला, “स्वर पिछान कहूँ, यदि कोठरी सात परे।” (मैं स्वर से किसी को पहचान सकता है। एक बार मैं किसी के स्वर को सुन लेता हूँ तो उसे भले ही सात कोठरी के भीतर बैठा दिया जाए, वह भीतर से आवाज कर रहा हो तो मैं तरंत पहचान लेता हूँ।)
राजा ने उससे कहा, “बहुत अच्छा!”
अब वे चारों राजा से पूछने लगे, “भाई! हमने तो अपनी-अपनी कलाएँ तुम्हें बता दी । अब तम भी तो बताओ कि तुम कौन-सी कला जानते हो?”
राजा बोला, “वाह भाई! तुम्हारी कलाएँ तो जोरदार हैं। मैं इस प्रकार की कोई कला नहीं जानता हूँ। फिर भी कलाहीन नहीं हूँ। भाइयो! याद रखना मेरा नाम भोज्या है। मैं भी एक कला जानता हूँ –
फाँसी जाते नरन को गर्दन देऊँ हिलाय।
फाँसी से छूट जाये वो, भोज्या के गुण गाय॥”
(मुझमें एक कला है कि कोई मनुष्य फाँसी पर चढाने के लिए ले जाया जाता हो, यदि मैं उसकी ओर देखकर गर्दन हिला देता हूँ तो वह फाँसी से छूट जाता है।)
चारों चोर आपस में मशवरा करते हुए, “अरे! यह तो बहुत अच्छा गुण है। यह हमारे बड़े काम का आदमी है। इसे बड़े प्रेम से अपने साथ रखना चाहिए, जिससे सजा का सब खटका मिट जाए।” वे राजा की ओर मुड़कर बोले, “चलो रे भोज्या ! तुम हमारे साथ रहोगे तो हमें बड़ा लाभ मिलेगा।”
राजा बोला, “चलो फिर चलें खजाने पर।”
दीप्या ने कहा, “क्या तुम खजाने का रास्ता जानते हो?”, “हाँ, जानता हूँ।” राजा ने उत्तर दिया।
तब चोर बोले, “तो भोज्या भाई तुम आगे चलो।”
राजा बड़ी सावधानी से आगे चलने लगा। वे खजाने पर पहुँच गए। सभी पहरेदार नींद में थे।
दीप्या बोला, “देखो, पहरेदार सो रहे हैं, इससे हमारा काम आसान हो जाता है। किंतु मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि धन का मालिक जाग रहा है।” राजा बोला, “इस धन का मालिक तो राजा है और राजा लोग तो सोते जागते रहते हैं। होगा कहीं इधर-उधर राजा। वह इस समय यहाँ क्यों आयेगा? अब देर मत करो। जो काम करना है वह शीघ्र करो।”
राजा ने सोम्या से कहा, “तुम अपने मंत्र बल से ताले खोलो।” सोम्या ने एकाग्रतापूर्वक मंत्र का स्मरण किया और ताले सरसराहट करते हुए खुल गए। उन्होंने खजाने में प्रवेश किया। सोना, चाँदी, सिक्के आदि काफी धन था। धन का ढेर देखकर वे खुशी से भर उठे। मन धन की गठरिया बाँधने को ललचा रहा था।
तब मंगल्या बोला, “क्या करोगे इस धन को लेकर, भार अधिक और सार थोडा।” उसने एक स्थान की ओर संकेत करते हए कहा, “यहाँ भूमि में रत्न गढ़े हैं। यहीं खोदो। हम लोग तो रत्न ही ले जाएँगे। जीवन-भर की गरीबी पल में दूर हो जाएगी।” थोडी देर में रत्नों का भंडार मिल गया।
वहाँ से उन्होंने इच्छानुसार रत्न लिए और बाहर आ गए। योग्य स्थान पर पहुँचकर उन्होंने रत्नों के पाँच भाग किए। सबने अपना भाग ले लिया। और पाँचवाँ हिस्सा राजा भोज को देने लगे।
राजा ने कहा, “मेहनत तुम सबने की है। मैंने कुछ भी नहीं किया। इसलिए तुम ही बाँट लो।” वे चोर इससे बहुत खश हुए। उन्होंने भोज का हिस्सा भी परस्पर बाँट लिया और उससे बोले, “चलो भोज्या भाई हमारे साथ रहना।” भोज ने कहा, “नहीं भाई ! मुझे अपने घर जाना है। मेरा भी कुटुम्ब है। अगली बार कहाँ मिलोगे?”
वे भोज्या के व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए। वे उसे अपने समान चोर ही समझ रहे थे। इसलिए उन्होंने उसे अपना सही पता बता दिया और सब अपने-अपने रास्ते चल दिए।
राजा भोज राजभवन की ओर जाते हुए सोच रहा था, “ये सभी अनोखी कलाओं में पारंगत हैं। पर ये अपनी कला का दुरुपयोग करते हैं। इन्हें मृत्यु-दंड देना उचित नहीं है, क्योंकि इन्होंने मुझ पर विश्वास किया है। किंतु इन्हें सुधारना बहुत आवश्यक है। यदि ये सुधर जाएं तो ये राज्य के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।”
प्रातःकाल हुआ। आवाज हुई, “खजाने के ताले टूट गए हैं।” सैनिकों को पकड़कर राजा के सामने लाया गया। राजा ने उनसे कडक आवाज में पूछा, “तुम इस प्रकार नींद में पहरा लगाते हो।”
एक सैनिक बोला, “हुजर! हम सही भी बोलें तो कौन विश्वास करेगा। हमें पिछली रात न जाने क्या हुआ? हमें अचानक चक्कर आने लगे, ऐसा लगा जैसे किसी ने जबरदस्ती से सुला दिया हो।” राजा को मालूम था कि वे मंत्र बल से सुला दिए गए थे। इसलिए राजा ने कहा, “तुम घबराओ मत। मुझे विश्वास है कि तुम चोरी नहीं कर सकते हो। परंतु तुम्हें हमेशा सावधान रहना चाहिए।
आज तो तुम्हें क्षमा किया जाता है, लेकिन आगे से ऐसी गलती मत करना।” राजा ने उन चोरों को सैनिक भेजकर पकड़कर मँगवाया। चोरी हुआ माल भी पकड़ा गया। चोरों ने समझा, “हमारे साथ धोखा हुआ है।” उन्हें राज सभा में खड़ा किया गया।
राजा राजसी पोशाक में सिंहासन पर विराजमान था। वे चारों चोर शक की नजर से राजा भोज की ओर देख रहे थे। बुध्या एकटक राजा की ओर देख रहा था। वह सोचने लगा-यह क्या गडबड है? राजा के वेश में यह तो भोज्या बैठा है।
क्या हमारे साथ चोर के वेश में राजा भोज थे? अंधेरे में बराबर देख नहीं पाए, वह बोले तो कुछ निश्चय हो। किंतु राजा भोज को पता था कि आवाज से ये लोग पहचान जाएँगे। इसलिए वे बोल नहीं रहे थे।
राजा ने मंत्री के कान में कुछ कहा। मंत्री ने मामला यों पेश किया, “राजन् ! ये चारों चोर हैं। इन चोरों ने शाही खजाने में चोरी की है। ये माल सहित पकड़े गए हैं। इन्हें क्या सजा दी जाए।” राजा ने स्वर बदलकर कहा, “इस अपराध के अनुकूल जो भी सजा हो।”
स्वर को बदलकर बोले जाने के बावजूद भी बुध्या ने पहचान लिया था कि राजा भोज और भोज्या एक ही व्यक्ति है। परंतु उस समय वह चुप रहा। मंत्री ने विचार करके कहा, “इनका अपराध
बहुत बड़ा है। इसलिए इन्हें फाँसी की सजा दी जाती है।” तब बुध्या बोला, “हम चार नहीं पाँच चोर थे।”
मंत्री ने पूछा, “पाँचवाँ चोर कहाँ है?” बध्या बोला, “हम पाँचवें चोर के बारे में क्या बताएँ?” मंत्री उसकी बात सुनकर विचार में पड़ गया। मंत्री ने संकेत किया। सैनिक उन्हें फाँसी के तख्ते की ओर ले जाने लगे। बुध्या ने सोचा-मौत तो सिर पर मंडरा रही है। अब जो कुछ कहना है, स्पष्ट कह देना चाहिए या तो इस पार या उस पार। उसने राजा भोज की ओर देखा।
बुध्या सुन कहने लगा भोज्या अवसर जाय। फाँसी से बच जाएँगे गर्दन देओ हिलाय॥ (हे भोज्या जी, अवसर बीता जा रहा है। अपनी विद्या का बल दिखाओ। अपनी गर्दन हिला दो तो हम फाँसी से बच जाएँगे।)
राजा ने गर्दन हिलाकर संकेत किया। सैनिक रुक गए और राजा ने तुरंत फाँसी की सजा रद्द कर दी। फिर बोला, “तुम में अच्छी कला है। तुम अच्छे गुणी हो। फिर तुम यह चोरी का धंधा क्यों कर रहे हो?
तुम भी परेशान और लोग भी परेशान। जैसे अन्य लोग मेरी प्रजा हैं तुम भी मेरी प्रजा हो। तुम्हारी कठिनाइयाँ दूर करना मेरा कर्त्तव्य है। तुम यह चोरी छोड दो। योग्य कर्म में लगो।”
राजा भोज ने आगे कहा, “हमने सोचा था कि आप हमारे काम के आदमी हैं। हम आपको अपने पास रखेंगे। पर हम यह कैसे कहें कि आप हमारे पास रहो।”
मंगल्या बोला, “यदि आप चाहें तो आप हमें पास रख सकते हैं। हम प्रतिज्ञा करते हैं कि आज से हम चोरी नहीं करेंगे।” राजा भोज बहत खश हुआ और उसने उन्हें योग्य पदों पर नियुक्त किया।