जुम्मन शेख और अलगू चौधरी गहरे मित्र थे। वे दोनों एक-दूसरे पर विश्वास करते थे। वे न तो इकट्ठे बैठकर भोजन करते और न ही पूजा करते। जुम्मन मुस्लिम धर्म का अनुयायी था और अलगू हिंदू धर्म में विश्वास रखता था। फिर भी उनके विचारों में समानता थी। विचारों में समानता ही मित्रता की बुनियाद होती है।
जुम्मन की मौसी के पास कुछ सम्पत्ति थी। जुम्मन उसका निकट का रिश्तेदार था। मौसी की देखभाल का वादा करके जुम्मन ने उसकी सारी सम्पत्ति अपने नाम लिखवा ली। अब जब एक बार सम्पत्ति उसकी हो गई, जुम्मन का व्यवहार बदल गया। वह अपनी मौसी के प्रति तटस्थ हो गया और उसकी पत्नी बात-बात में उसे ताने देने लगी।
खालाजान (जुम्मन की मौसी) ने उसके ताने तब तक सहे, जब तक कि वह सह सकती थी। तब एक दिन वह जुम्मन से बोली, “बेटा, मैं तुम्हारे साथ और अधिक नहीं रह सकती। मुझे मासिक भत्ता दे दिया करना। मैं अपनी खुद की रसोई चाहती हूँ।
“और यह मासिक भत्ता कहाँ से आएगा?” जुम्मन ने अक्खड़ भाव से पूछा।
खालाजान गुस्से से भर गई। उसने जुम्मन को पंचायत बुलाने की धमकी दी।
जुम्मन ने मुस्कराकर कहा, “क्यों नहीं, तुम पंचायत को अवश्य बुलाओ। मैं भी आखिर हर रोज की तू-तू, मैं-मैं से तंग आ गया हूँ।”
जम्मन को इस बात में कोई संदेह नहीं था कि यदि पंचायत बुलाई जाती है तो कौन जीतेगा।
क्या उस गाँव में या आसपास के गाँव में कोई ऐसा व्यक्ति था जिस पर उसने कभी किसी न किसी रूप में अहसान न किया होगा? तब उसके विरुद्ध खड़ा होने का साहस भला कौन कर सकता था?
इसके कई दिन बाद तक बूढी खालाजान एक गाँव से दूसरे गाँव को अपना दुखडा सुनाती घूमती रही। अंत में वह अलगू चौधरी के घर पहुँची। “बेटा तुम अवश्य मेरी पंचायत में आना।”
अलग ने असहाय भाव से उसकी ओर देखा। यदि आप चाहती हैं कि मैं आऊँ, तो मैं आऊँगा, लेकिन मैं अपना मुँह नहीं खोलूँगा।
क्यों नहीं? बूढ़ी औरत ने पूछा।
“जुम्मन और मैं पुराने मित्र हैं,” अलगू ने कहा। “मैं अपनी मित्रता को खराब नहीं कर सकता।”
“क्या तुम्हारी मित्रता तुम्हारी सत्यनिष्ठा से अधिक मूल्यवान है?” खालाजान ने कहा। पंचायत तय दिन एकत्र हुई। खालाजान ने अपनी कहानी कही और इंसाफ की प्रार्थना की। “पंचायत जो तय करेगी वह मझे स्वीकार होगा।”
सभा में ऐसे अनेक लोग थे जो जुम्मन शेख से अपने हिसाब-किताब पूरे करना चाहते थे। रामधन मिश्रा उनमें से एक थे। जुम्मन ने रामधन के अनेक लोगों को अपने यहाँ काम दिया था।
तभी रामधन कहने लगा, “जुम्मन शेख, तुम किसे पंच नियुक्त करते हो? इस बात का फैसला तुम दोनों कर लो। एक बार पंचायत जो फैसला देगी तुम्हें इसके निर्णय को मानना होगा।”
“खालाजान को ही पंचायत के सदस्य चुनने दो,” जुम्मन शेख ने गुस्से से कहा। “क्योंकि यही है जिसने पंचायत की माँग की है।”
“बेटा, पंचायत के सदस्य किसी के दोस्त या दुश्मन नहीं होते,” बूढ़ी औरत ने कहा। “यदि तम इस सभा के लोगों पर विश्वास नहीं करते तो मत करो। लेकिन तुम अलगू पर तो विश्वास करते हो? ठीक है मैं अलगू को बतौर सरपंच चुनती हूँ।”
जुम्मन बहुत प्रसन्न था। लेकिन वह अपनी प्रसन्नता को छिपाते हुए कंधे उचका कर बोला, “जैसा तुम चाहो। अलगू हो या रामदीन, दोनों मेरे लिए एक जैसे हैं।”
अलगू ने कुछ परेशान भाव से कहा, “खालाजान, तुम जानती हो कि मैं जुम्मन का मित्र हूँ।”
“एक पंच दोस्ती और दुश्मनी से बहुत ऊपर होता है, मेरे बच्चे। उसके माध्यम से भगवान अपनी बात कहता है।” खालाजान ने भारी आवाज से कहा।
अलगू को सरपंच नियुक्त किया गया।
अलगू ने कहा, “जुम्मन शेख, तुम और मैं पुराने मित्र हैं। हमने हमेशा एक-दूसरे की मदद की है। लेकिन पंचायत की नजर में तुम और खालाजान बराबर हैं। तुम अपना पक्ष रखने के लिए स्वतंत्र हो।”
जुम्मन को विश्वास था कि अलगू केवल दिखावा कर रहा है। उसने पंचायत को आदरपूर्वक सम्बोधित करते हुए अपनी कहानी बताई।
अलगू चौधरी किसी वकील से कम न था। अब उसने जुम्मन से प्रश्न करने आरम्भ कर दिए। प्रत्येक प्रश्न जुम्मन के हृदय को चीरता हुआ प्रतीत हो रहा था। रामधन मिश्रा अलगू के इस निष्पक्ष व्यवहार से बहुत प्रभावित था। जुम्मन को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके पुराने मित्र को अचानक क्या हो गया है? अलगू अपनी मित्रता को क्यों मिटाने पर तुला है?
जहाँ जुम्मन उसके इस अनपेक्षित व्यवहार को नहीं समझ पा रहा था, वहीं अलगू ने पंचायत का फैसला सुनाया।
‘जुम्मन शेख,” उसने कहा, “पंचायत ने तुम्हारे मामले की भली प्रकार से पड़ताल की है और यह हमारा निर्णय है कि तुम खालाजान को गुजारा करने के लिए मासिक भत्ता दोगे। हम सब यह मानते हैं कि खालाजान की तुम्हारे पास पड़ी सम्पत्ति के मुनाफे में से इतना धन आसानी से निकल सकता है। यदि तुम उसे आवश्यक मासिक भत्ता नहीं दे सकते तो खालाजान की सम्पत्ति उसे वापस लौटा दो।”
जुम्मन पंचायत का फैसला सुनकर सकते में आ गया। कितना अविश्वासी, कितना बदल गया है अलगू, उसने सोचा। उसने मन ही मन अलगू को बहुत बुरा भला कहा। पंचायत के इस फैसले ने उन दोनों की मित्रता की नींव हिलाकर रख दी। बाहर से दोनों सब कुछ ठीक होने का दिखावा कर रहे थे। लेकिन अंदर ही अंदर, जुम्मन बदला लेने के लिए व्याकुल था। उसे अधिक देर तक इंतजार नहीं करना पड़ा।
पिछले वर्ष, अलगू चौधरी ने एक सुंदर बड़े सींगों वाला, स्वस्थ बैलों का जोडा खरीदा था। खालाजान की पंचायत के एक माह पश्चात् उनमें से एक बैल मर गया। अलगू को संदेह था उसके किसी पुराने मित्र ने जो कि अब शत्रु हो गया है बैल को विष दिया है। लेकिन उसके पास कोई प्रमाण नहीं था।
अलगू मरे हए बैल के स्थान पर नया बैल नहीं ढूँढ सका। अतः उसने अपने जीवित बैल को बेचने का निर्णय किया। गाँव में समझू साहू नाम का व्यापारी रहता है जिसने बैल को खरीदा और अलगू को एक माह के भीतर कीमत चुकाने का वचन दिया।
समझू साहू ने बैल से इतना अधिक काम लिया कि बैल ने आखिर दम तोड़ दिया। वह बैल से कई गुना अधिक सामान खिचवाता। घंटों तक बिना खिलाए-पिलाए वह बैल से हल जुतवाता। काम के बीच वह उसे क्षण भर भी आराम नहीं देता था। एक बार वह सामान्य से दोगुना सामान खींचने के लिए बैल को बाध्य कर रहा था, तभी बैल मूर्छित होकर गिर पड़ा और उसने दम तोड़ दिया।
कुछ महीने बीत गए। जब भी अलगू उसके द्वारा खरीदे गए बैल के पैसे माँगता समझू साहू उसे साफ इंकार कर देता। “तुमने मुझे आधा मरा हुआ जानवर बेचा है।” वह हर बार यह कहता। “तुम शव की कीमत चाहते हो।” अलगू का धैर्य समाप्त हो गया और बात हाथा-पाई तक पहुँच गयी।
गाँव वालों ने सलाह दी कि इस मामले को सुलझाने का कार्य पंचायत को सौंपा जाए। कुछ दिनों के पश्चात् एक शाम पंचायत बैठी। समझू ने जुम्मन शेख को सरपंच नियुक्त किया। अलगू का दिल धड़का लेकिन उसने असहमति जाहिर नहीं की।
अलगू के साथ दुश्मनी होने के बावजूद भी, जुम्मन ने सरपंच का स्थान ग्रहण करने के पश्चात् एक अजीब जिम्मेदारी का एहसास किया। “मैं अब सच्चाई और न्याय की मूरत हूँ,” उसके बीच एक धीमी आवाज उभरी। “मैं न्याय को अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी के बादलों से नहीं ढकूँगा। मैं सच्चाई पर कायम रहँगा।”
सारी बहस सुनने के पश्चात्, जुम्मन शेख ने पंचायत का फैसला सुनाया। “यही ठीक होगा कि समझू साहू अलगू चौधरी को बैल की पूरी कीमत अदा करे। पशु पूरी तरह से स्वस्थ था जब उसे बेचा गया। वह केवल अत्यधिक काम और आवश्यक आहार की कमी से मरा।
अलगू को बैल की कीमत कम करने की आवश्यकता नहीं है। यदि वह ऐसा करता है तो यह उसका अच्छा स्वभाव है। समझू साहू को बैल से निर्दयतापूर्वक व्यवहार के लिए सजा मिलनी चाहिए, लेकिन यह एक अन्य मामला है और इस पंचायत के अंतर्गत नहीं आता।”
अलगू को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। वह खड़ा हुआ और खुशी से चिल्लाया, “पंच परमेश्वर की जय!”
कुछ समय पश्चात्, जुम्मन ने अपने पुराने मित्र को देखा और उसके गले लगकर बहुत रोया। “भैया,” वह बोला, “खालाजान की पंचायत के सरपंच होने के बाद मैं तुम्हारा कट्टर दुश्मन हो गया था। लेकिन आज, मैंने महसूस किया है कि पंच के लिए किसी की मित्रता अथवा शत्रुता महत्त्व नहीं रखती, उसके लिए तो न्याय करना ही सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। पंच परमेश्वर का रुप होता है। पंच की आवाज ही ईश्वर की आवाज होती है।”
अलगू भी रोने लगा। दोनों मित्रों के आँसुओं ने उनके मन के मैल को धो दिया और वे पहले की भाँति मित्र हो गए।