एकार्थक शब्द (Ekarthak Shabd)
बहुत से शब्द ऐसे हैँ, जिनका अर्थ देखने और सुनने में एक-सा लगता है, परन्तु वे समानार्थी नहीं होते हैं। ध्यान से देखने पर पता चलता है कि उनमें कुछ अन्तर भी है। इनके प्रयोग में भूल न हो इसके लिए इनकी अर्थ भिन्नता को जानना आवश्यक है।
समानार्थी (एकार्थक शब्द ) प्रतीत होने वाले भिन्नार्थी शब्द की सूची:
अगम – जहाँ न पहुँचा जा सके। दुर्गम – जहाँ पहुँचना कठिन हो। |
अलौकिक – जो सामान्यतः लोक या दुनिया में न पाया जाये। अस्वाभाविक – जो प्रकृति के नियमोँ के विरुद्ध हो। असाधारण – सांसारिक होकर भी अधिकता से न मिले, विशेष। |
अनुज – छोटा भाई। अग्रज – बड़ा भाई। भाई – छोटे-बड़े दोनों के लिए। |
अनुभव – व्यवहार या अभ्यास से प्राप्त ज्ञान। अनुभूति – चिन्तन या मनन से प्राप्त आंतरिक ज्ञान। |
अनुरूप – समानता या उपयुक्तता का बोध होता है। अनुकूल – पक्ष या अनुसार का भाव प्रकट होता है। |
अस्त्र – फेँककर चलाए जाने वाले हथियार। शस्त्र – हाथ मेँ पकड़कर चलाए जाने वाले हथियार। |
अवस्था – जीवन का बीता हुआ भाग। आयु – सम्पूर्ण जीवन काल। |
अपराध – कानून के विरुद्ध कार्य करना। पाप – सामाजिक तथा धार्मिक नियमोँ के विरुद्ध आचरण। |
अनुरोध – आग्रह (हठ) पूर्वक की गई प्रार्थना। आग्रह – हठ। |
अभिनन्दन – सराहना करना, बधाई। अभिवन्दन – प्रणाम, नमस्कार करना। स्वागत – किसी के आगमन पर प्रकट की जाने वाली प्रसन्नता। |
अणु – पदार्थ की सबसे छोटी इकाई। परमाणु – तत्त्व की सबसे छोटी इकाई। |
अधिक – आवश्यकता से बढ़कर। अति – आवश्यकता से बहुत अधिक। पर्याप्त – जितनी आवश्यकता हो। |
अर्चना – मात्र बाह्य सत्कार। पूजा – आन्तरिक एवं बाह्य दोनोँ सत्कार। |
अर्पण – छोटोँ द्वारा बड़ोँ को दिया जाना। प्रदान – बड़ोँ द्वारा छोटोँ को दिया जाना। |
अमूल्य – जिस वस्तु का कोई मूल्य ही न आँका जा सके। बहुमूल्य – अधिक मूल्यवान वस्तु। |
अशुद्धि – भाषा सम्बन्धी लिखने–बोलने की गलती। भूल – सामान्य गलती। त्रुटि – बड़ी गलती। |
असफल – व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता है। निष्फल – कार्य के लिए प्रयुक्त होता है। अहंकार – घमण्ड, स्वयं को अत्यधिक समझना। अभिमान – गौरव, दूसरोँ से श्रेष्ठ समझना। |
आचार – सामान्य व्यवहार, चाल–चलन। व्यवहार – व्यक्ति विशेष के प्रति परिस्थिति विशेष मेँ किया गया आचरण। |
आनंद – खुशी का स्थायी और गंभीर भाव। आह्लाद – क्षणिक एवं तीव्र आनंद। उल्लास – सुख-प्राप्ति की अल्पकालिक क्रिया, उमंग। प्रसन्नता – साधारण आनंद का भाव। |
आधि – मानसिक कष्ट। व्याधि – शारीरिक कष्ट। |
आवेदन – अधिकारी से की जाने वाली प्रार्थना। निवेदन – विनयपूर्वक की जाने वाली प्रार्थना। |
आशंका – अनिष्ट की कल्पना से उत्पन्न भय। शंका – सन्देह। |
आविष्कार – नवीन वस्तु का निर्माण करना। अनुसंधान – रहस्य की खोज करना। अन्वेषण – अज्ञात स्थान की खोज करना। |
आज्ञा – बड़ोँ द्वारा छोटे को किसी कार्य को करने हेतु कहना। अनुमति – स्वीकृति। |
आवश्यक – किसी कार्य को करना जरूरी। अनिवार्य – कार्य जिसे निश्चित रूप से करना हो। |
आरम्भ – बहुत ही साधारण और सामान्य शुरुआत। प्रारम्भ – ऐसी शुरुआत जिसमेँ औपचारिकता, महत्ता और साहित्यता हो। |
ईर्ष्या – दूसरे की उन्नति पर जलना। द्वेष – अकारण शत्रुता। स्पर्धा – एक-दूसरे से आगे बढ़ने की भावना। |
उत्साह – निर्भीक होकर कार्य करना। साहस – भय की उपस्थिति मेँ कार्य करना। |
उत्तेजना – आवेग। प्रोत्साहन – बढ़ावा। |
उद्यम – परिश्रम, प्रवास। उद्योग – उपाय, प्रयत्न। |
उपकरण – साधन। उपादान – सामग्री। |
कष्ट – मुख्यतः शारीरिक पीड़ा। क्लेश – मानसिक पीड़ा। दुःख – सभी प्रकार से सामान्य दुःख को प्रकट करने वाला शब्द। |
कन्या – वह अविवाहित लड़की जो रजस्वला न हुई हो। लड़की – सामान्य अविवाहित या विवाहित किसी की लड़की। पुत्री – अपनी बेटी। |
कृपा – किसी का दुःख दूर करने का प्रयास। दया – किसी के दुःख से प्रभावित होना। संवेदना – अनुभूति जताना। सहानुभूति – किसी के दुःख से प्रभावित होकर अपनी अनुभूति जताना। |
कृतज्ञ – उपकार मानने वाला। आभारी – उपकार करने वाले के प्रति मन के भाव प्रकट करने वाला। |
खेद – सामान्य दुःख। शोक – स्वजनोँ के अनिष्ट से होने वाला दुःख। विषाद – निराशापूर्ण दुःख। |
तन्द्रा – हल्की नीँद। निन्द्रा – गहरी नीँद। |
नक्षत्र – स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित आकाशीय पिण्ड। ग्रह – सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित आकाशीय पिण्ड। |
नमस्कार – बराबर वाले के प्रति नम्रता प्रकट करने हेतु। प्रणाम – अपने से बड़ोँ को अभिवादन या उनके प्रति नम्रता प्रकट करने के लिए प्रणाम का प्रयोग शब्द का प्रयोग किया जाता है। नमस्ते – यह छोटे एवं बड़े सभी के लिए अभिवादन का प्रचलित शब्द है। |
प्रलाप – व्यर्थ की बात। विलाप – दुःख मेँ रोना। |
परिणाम – किसी वस्तु का धीरे–धीरे दूसरा रूप धारण करना। फल – किसी स्थिति के कारण उत्पन्न होने वाला लाभ। |
परिश्रम – सभी प्रकार की मेहनत को व्यक्त करने वाला शब्द। श्रम – मात्र शारीरिक मेहनत। |
परामर्श – सलाह–मशविरा सूचक शब्द। मंत्रणा – गोपनीय सलाह–मशविरा। |
प्रसिद्धि – बड़ाई। ख्याति – विशेष प्रसिद्धि। |
पीड़ा – शारीरिक कष्ट। वेदना – सामान्य अल्पकालिक हार्दिक दुःख। व्यथा – गंभीर दीर्घकालिक मानसिक दुःख। |
पीछे – क्रम को सूचित करने वाला शब्द। बाद मेँ – समय का भाव सूचित करने वारा शब्द। |
बहुत – ज्यादा (बिना तुलना के)। अधिक – ज्यादा (तुलना मेँ)। |
भय – अनिष्ट के कारण मन मेँ उठा विचार (डर)। आतंक – शारीरिक और मन मेँ उठा भय। त्रास – भयवश होने वाला कष्ट। यातना – दूसरोँ के द्वारा दिया गया कष्ट। |
भवदीय – आपका, तुम्हारा। प्रार्थी – प्रार्थना करने वाला। |
भ्रम – किसी बात के लिए विषय गलत समझते हुए गलत धारणा बना लेना। सन्देह – किसी के विषय मेँ निश्चय हो जाना। |
भागना – भयवश दौड़ना। दौड़ना – सामान्यतः तेज चलना। |
भाषण – सामान्य व्याखान। प्रवचन – धार्मिक विषय पर व्याख्यान। |
मनुष्य – मानव जाति के स्त्री-पुरुष दोनोँ का बोध कराने वाला शब्द। पुरुष – मानव पुल्लिँग। |
मंत्री – परामर्श देने वाला। सचिव – मंत्री के आदेश को प्रचारित करने वाला। |
मन – इन्द्रियोँ, विषयोँ का ज्ञान कराने वाला। चित्त – चेतना का प्रतीक। अन्तःकरण – सत्-असत्, उचित-अनुचित का ज्ञान कराने वाला। |
महाशय – इस शब्द का प्रयोग प्रायः साधारण लोगोँ के लिए किया जाता है। महोदय/मान्यवर – इस शब्द का प्रयोग बड़े लोगोँ के लिए किया जाता है। |
मित्र – समवयस्क, जो अपने प्रति प्यार रखता हो। सखा – साथ रहने वाला समवयस्क। सगा – आत्मीयता रखने वाला। सुहृदय – सुंदर हृदय वाला, जिसका व्यवहार अच्छा हो। |
लड़का – बाल मानव। पुत्र – अपना लड़का। |
लज्जा – दूसरे के द्वारा अपने बारे मेँ गलत सोचने का अनुमान। ग्लानि – अपनी गलती पर होने वाला पश्चाताप। संकोच – किसी कार्य को करने मेँ होने वाली झिझक। |
यथेष्ट – अपेक्षित या जितना वांछनीय हो। पर्याप्त – पूरी तरह से प्राप्त। |
व्यापार – किसी काम मेँ लगे रहना। व्यवसाय – थोड़ी मात्रा मेँ खरीदने और बेचने का कार्य। वाणिज्य – क्रय-विक्रय और लेन-देन। |
व्याख्यान – मौखिक भाषण। अभिभाषण – लिखित व्याख्यान। |
विनय – अनुशासन एवं शिष्टतापूर्ण निवेदन। अनुनय – किसी बात पर सहमत होनेकी प्रार्थना। आवेदन – योग्यतानुसार किसी पद केलिए कथन द्वारा प्रस्तुत होना। प्रार्थना – किसी कार्य-सिद्धि के लिए विनम्रतापूर्ण कथन। |
श्रद्धा – महानजनोँ के प्रति आदर भाव। भक्ति – देवताओँ के प्रति आदर भाव। |
श्रीयुत् – इस शब्द का प्रयोग आदर के लिए किया जाता है। हमारे यहाँ इसका प्रयोग बहुत कम होता है। श्रीमान् – इस शब्द का प्रयोग भी आदर के लिए किया जाता है। हमारे यहाँ इसका प्रयोग अधिक होता है। श्रीयुत् और श्रीमान् का अर्थ समान-सा ही है। |
स्त्री – कोई भी नारी। पत्नी – किसी की विवाहिता स्त्री। |
स्नेह – बड़ोँ का छोटोँ के प्रति प्रेम। प्रेम – प्यार। प्रणय – पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका का प्रेम। |
सभ्यता – भौतिक विकास। संस्कृति – कलात्मक एवं आध्यात्मिक विकास। |
सुंदर – आकर्षक वस्तु। चारु – पवित्र और सुंदर वस्तु। रुचिर – सुरुचि जाग्रत करने वाली सुंदर वस्तु। मनोहर – मन को लुभाने वाली वस्तु। |
हेतु – अभिप्राय। कारण – कार्य की पृष्ठभूमि। |
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