विद्यालय प्रबन्ध में सम्प्रेषण अपनी प्रभावी भूमिका का निर्वाह करता है क्योंकि विद्यालय प्रबन्ध में जो अवधारणा पायी जाती है वह लोकतान्त्रिक परम्परा विकेन्द्रीयकरण पर आधारित होती है।
सम्प्रेषण साधन किस प्रकार से प्रबन्ध प्रक्रिया को सुदृढ़ एवं प्रभावी बनाते हैं। इसका अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत करेंगे:-
1. स्वतन्त्रता का सिद्धान्त (Theory of freedom)
विद्यालय प्रबन्ध में विचारों की स्वतन्त्रता को अधिक महत्त्व दिया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति से उसके विचार जानने का प्रयास किया जाता है, जिससे कि विद्यालय सम्बन्धी नीतियों एवं नियमों के निर्धारण में विचारों का लाभ प्राप्त हो सके।
सम्प्रेषण की प्रक्रिया में विचारों का आदान-प्रदान होता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार स्वतन्त्रतापूर्वक प्रकट करने का अधिकार होता है। विद्यालय प्रबन्ध से सम्बन्धित सभाओं में प्रत्येक व्यक्ति के विचार जानकर ही अन्तिम निर्णय तक पहुँचा जाता है, जिससे विभिन्न विद्वानों के विचारों का लाभ विद्यालय के शैक्षिक प्रबन्ध को पहुँचता है।
कभी-कभी व्यक्ति स्वयं उपस्थित न होकर सम्प्रेषण माध्यमों के प्रयोग जैसे- वीडियो, यूट्यूब एवं फोन आदि से अपने विचारों को प्रकट करता है जो कि सम्प्रेषण के माध्यम से ही सम्बन्धित हैं।
2. समानता का सिद्धान्त (Theory of equality)
विद्यालय प्रबन्ध में समानता का सिद्धान्त अपनाकर सबको समान रूप से कार्य को वितरण किया जाता है। अधिकार के सम्बन्ध में भी समानता का दृष्टिकोण अपनाया जाता है। सम्प्रेषण में जब व्यक्ति किसी के विचार को सुनता है तो समान रूप से वह दूसरे व्यक्ति को अपने विचारों से अवगत कराता है।
प्रबन्ध में समानता का सिद्धान्त किसी विद्वान का विचार होगा जिसे सम्प्रेषण के माध्यम से जनसामान्य के स्तर तक पहुँचाया गया। धीरे-धीरे यही विचार एक सिद्धान्त के रूप में विकसित हुआ जिसे समानता का सिद्धान्त कहते हैं। जिसका प्रयोग विद्यालय प्रबन्ध में होता है।
अत: विद्यालय प्रबन्ध में सम्प्रेषण का योगदान महत्त्वपूर्ण है।
3. सहयोग की भावना (Spirit of co-operation)
शैक्षिक प्रबन्ध में सहयोग की भावना का प्रमुख कार्य होता है। प्रत्येक व्यवस्था के कुशल संचालन के लिये सभी सम्बन्धित व्यक्तियों एवं विद्वानों का सहयोग आवश्यक होता है। इसके लिये हमें सम्प्रेषण माध्यमों की आवश्यकता होती है। जिनके द्वारा विभिन्न विद्वानों के विचार जान सकते हैं उनके आधार पर ही विद्यालय की नीतियों एवं नियमों का निर्धारण करते हैं।
उदाहरण के लिये, हमें वित्तीय प्रबन्ध के बारे में ज्ञान प्राप्त करना है तो उससे सम्बन्धित साहित्य एवं विद्वान का सहारा लेना आवश्यक होगा।
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