सम्प्रेषण की अवधारणा
मानव एक सामाजिक प्राणी है वह समाज में रहता है। समाज में रहकर वह विचारों का आदान-प्रदान करता है। प्रत्येक मनुष्य के अपने विचार (Ideas), सम्प्रत्यय (Concepts), भावनाएँ (Feelings) एवं सिद्धान्त (Principles) आदि होते हैं जिनका वह दूसरे व्यक्तियों के साथ आदान-प्रदान या विनिमय (Exchange) करता है। यह परस्पर विचारों का आदान-प्रदान ही संचार अथवा सम्प्रेषण कहलाता है। संचार एक ऐसी प्रक्रिया (Process) है जो दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच घटित होती है।
प्रत्येक व्यक्ति के अपने कुछ विचार सम्प्रत्यय भावनाएँ एवं सिद्धान्त होते हैं, जिन्हें वह समाज में रहकर अन्य व्यक्तियों के साथ विनिमय करता है क्योंकि यह मानव का स्वभाव है कि वह दूसरों के विचार को जानना चाहता है और अपने विचार प्रकट करना चाहता है। इसके लिये वह अनेक प्रकार के माध्यमों का प्रयोग करता है; जैसे-संकेत, भाषा, चित्र एवं प्रदर्शन आदि।
मुख्य रूप से विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया ही सम्प्रेषण कहलाती है। यह विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया नयी नहीं है, बल्कि प्राचीन काल से ही इसकी परम्परा देखने को मिलती है। आदि मानव अपने विचारों को संकेतों के माध्यम से प्रकट करता था क्योंकि उसके पास भाषायी शक्ति का अभाव था। जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास भाषा संस्कार एवं विद्वानों के आधार पर हुआ तत्पश्चात् सम्प्रेषण के माध्यम भी विकसित होने लगे।
वर्तमान समय में सूचना एवं तकनीकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास के कारण सम्प्रेषण की प्रणाली ही परिवर्तित हो गयी है। आज प्रत्येक व्यक्ति अपनी भावनाओं एवं सैद्धान्तिक विचारों को बिना किसी विलम्ब के आसानी से दूसरे व्यक्ति को प्रेषित कर सकता है।
विश्व में हुई संचार क्रान्ति ने सम्प्रेषण के महत्त्व एवं आवश्यकता में भी वृद्धि की है। सम्प्रेषण की अवधारणा केवल मानव समाज में ही नहीं बल्कि समस्त प्राणियों में समान रूप से पायी जाती है। केवल माध्यम अलग-अलग होते हैं; जैसे-एक व्यक्ति अपनी भावनाओं को विचारों के माध्यम से स्पष्ट करता है वहीं एक पक्षी उसको संकेत एवं अपनी चहचहाने की भाषा में प्रस्तुत करता है। इस प्रकार सम्प्रेषण समस्त व्यक्तियों एवं प्राणियों द्वारा सम्पन्न होता है।