सामाजिक विकास में विद्यालय का योगदान
सामाजिक विकास में विद्यालय का योगदान:- बालकों के सामाजिक विकास में विद्यालय का विशेष योगदान रहता है। बालक के सामाजिक विकास के दृष्टिकोण से परिवार के पश्चात् विद्यालय का ही स्थान सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। यदि विद्यालय का वातावरण जनतन्त्रीय है, अर्थात विद्यालय के क्रियाकलापों में बालों का भी हाथ रहता है तो बालक का सामाजिक विकास अविराम गति से होता चला जाता है। यदि विद्यालय का वातावरण ऐसा नहीं है, अर्थात् विद्यालय के सिद्धान्तों के अनुसार विद्यालय का अनुशासन दण्ड और दमन पर आधारित है तो बालक का सामाजिक विकास उचित प्रकार से नहीं हो पाता।
सामाजिक विकास में शिक्षा का प्रभाव:- बालक के सामाजिक विकास में शिक्षा का भी विशेष प्रभाव पड़ता है।यदि शिक्षक शान्त स्वभाव का तथा सहानुभूति रखने वाला है तो छात्र उसके अनुरूप ही व्यवहार करते हैं, परन्तु इसके विपरीत, यदि शिक्षक का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होता तो छात्र भी अपना मानसिक सन्तुलन नहीं रख पाते। सफल और योग्य शिक्षकों के सम्पर्क से बालकों के सामाजिक विकास पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
सामाजिक विकास में खेलकूद का प्रभाव:- विद्यालय के खेलकूद भी बालक के सामाजिक विकास में विशेष स्थान रखते हैं। बालक खेल द्वारा अपने सामाजिक व्यवहार का प्रदर्शन करता है। सामूहिक खेलों के द्वारा बालक में सामाजिक गुणों का विकास होता है। खेल के अभाव में बालक का सामाजिक विकास नहीं हो पाता।
स्किनर का कथन है- "खेल का मैदान बालक का निर्माण स्थल है। वहाँ उसे मिलने वाले सामाजिक और यान्त्रिक उपकरण उसके सामाजिक विकास को निर्धारित करने में सहायता करते हैं।"