किसी भी कार्य एवं क्रिया के महत्त्व (Importance), आवश्यकता (Need) तथा उपयोगिता (Utility) में भाषायी अन्तर अवश्य है। आशयगत कोई अन्तर नहीं। आशय की दृष्टि से जो बात हमारी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, उसे जानने और समझने की हमें आवश्यकता (Need) है तथा वह हमारे लिये उपयोगी (Useful) भी। इस दृष्टि से शिक्षण पूर्व पाठ से सम्बन्धित विशिष्ट उद्देश्यों का निर्धारण हमारे लिये इसलिये आवश्यक/महत्त्वपूर्ण/उपयोगी है ताकि-
शिक्षक शिक्षण से सम्बन्धित विद्यार्थियों के शैक्षिक स्तर, बौद्धिक क्षमता आदि सभी बातों का ध्यान रखते हुए पाठ्यवस्तु पर आधारित उद्देश्यों का निर्धारण कर सके।
शिक्षक शिक्षण की सभी विधियों, तकनीकों, युक्तियों आदि पर पढ़ाने से पूर्व विचार कर सके।
पढ़ाते समय एक ओर उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़े ताकि शैक्षणिक क्रियाओं में भटकाव तथा विषय-वस्तु को समझाने हेतु विषयान्तर तथा अनर्गल बातों से बचा रहे।
विषय-वस्तु से सम्बन्धित कठिन अंशों पर विद्यार्थियों से विचार प्रधान प्रश्न पूछकर उनकी बौद्धिक क्षमता के समुचित विकास में सहायक सिद्ध हो सके।
विद्यार्थियों की शंकाओं का उनकी सन्तुष्टि के अनुसार उचित समाधान कर सके।
विद्यार्थियों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने में सफल सिद्ध हो सके।
स्व-मूल्यांकन के आधार पर शिक्षक अपनी कमियों का पता लगाकर अपने शिक्षण में सुधार कर सकता है।
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