कहा जाता है कि, "कारण के बिना कार्य नहीं होता" सत्य भी यही है। यदि 'भूख' नहीं होती तो प्राणी भोजन की तलाश में इधर से उधर नहीं भागते फिर तो यह भी हो सकता है कि सभी प्राणी प्रजातियों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य, सबसे अधिक आलसी और निकम्मा सिद्ध होता।
मैक्डूगल के अनुसार, भोजन की तलाश (Food seeking) मूल-प्रवृत्ति है, किन्तु यह तभी उभरती है जब 'भूख' (Appetite) लगती है। भूख को ही 'संवेग' कहते हैं।
ठीक इसी प्रकार जिज्ञासा (Curiosity) भी एक मूल प्रवृत्ति है तथा इसका जागरण तभी होता है जब मनुष्य को कोई भी बात अद्भुत नजर आती है, अच्छी लगती है, भाती है। अच्छा लगने और भाने के भी अलग-अलग कारण हो सकते हैं।
शिक्षा प्राप्ति भी एक कार्य है। अतः इसके पीछे भी अलग-अलग कारण हो सकते हैं। कोई किसी कारण से पढ़ना चाहता है तो कोई किसी अन्य कारण से। कोई डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई इन्जीनियर तो कोई कुछ अन्य।
ऐसा क्यों है? इसके पीछे भी अलग-अलग कारण हो सकते हैं। कोई पैसा कमाना चाहता है तो कोई अन्त: मन से समाज की सेवा करना चाहता है आदि-आदि। इन्हीं अलग-अलग कारणों को हम उस कार्य को करने के पीछे निहित उद्देश्यों (Aims) की संज्ञा देते हैं।
उद्देश्य प्राय: व्यापक ही होते हैं, किन्तु जब किसी सीमित क्षेत्र या विषय-विशेष अथवा वस्तु विशेष तक की सीमित जानकारी से जुड़ जाते हैं तब इन्हें विशिष्ट उद्देश्य (Objectives) कहा जाता है। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि-
किसी कार्य को करने के पीछे निहित कारणों को उद्देश्य तथा उस कार्य को सम्पन्न करने हेतु उसकी विविध पक्षीय क्रियाओं पर पूर्व-चिन्तन तथा निश्चयन को विशिष्ट उद्देश्य कहते हैं।