शिक्षण अधिगम में सम्प्रेषण की आवश्यकता
विद्यालय प्रशासन में शिक्षण एवं अधिगम के प्रमुख रूप देखने को पाये जाते हैं जिनके विकास का आधार सम्प्रेषण ही माना जाता है क्योंकि विद्यालय प्रशासन वर्तमान समय में ऐसा रूप धारण कर चुका है, जिसमें सम्प्रेषण साधनों का प्रयोग अनिवार्य माना जाता है। सम्प्रेषण के अभाव में हम शिक्षण एवं अधिगम के उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
1. व्यक्ति और समाज का लाभ (Benefit of person and society)
शिक्षण अधिगम के माध्यम से व्यक्ति और समाज दोनों का हित होता है क्योंकि विद्यालय को समाज की आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाली संस्था के रूप में जाना जाता है। समाज एवं विद्यालय के मध्य सम्प्रेषण ही एक दूसरे की आकांक्षाओं का एक-दूसरे से परिचित कराता है।
सम्प्रेषण के द्वारा समाज में होने वाले परिवर्तन का ज्ञान विद्यालय प्रशासन को होता है और विद्यालय के उद्देश्य एवं कार्य प्रणाली का ज्ञान समाज को होता है। अतः सम्प्रेषण के द्वारा व्यक्ति एवं समाज दोनों का हित सम्पन्न होता है।
2. अनिवार्य शिक्षा (Compulsory education)
अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था शिक्षण अधिगम का प्रमुख उद्देश्य है। लेकिन व्यवहार में इसको सम्भव बनाने का कार्य सम्प्रेषण के माध्यम से ही होता है। व्यक्तिगत विचारों के आदान-प्रदान से छात्र की आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं का ज्ञान किया जाता है।
आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं का ज्ञान होने के उपरान्त उनकी मानसिकता में परिवर्तन करके शिक्षा के महत्त्व से अवगत कराया जाता है; जैसे- बहुत से परिवारों में स्त्री शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है और उनका कार्य क्षेत्र घर समझा जाता है। लेकिन सम्प्रेषण द्वारा ही साहित्य तथा महान महिलाओं का उदाहरण देकर इस संकीर्ण भावना को विस्तृत रूप में परिवर्तित किया जाता है।
इस प्रकार बालिकाओं को विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के लिये भेजा जाता है।
3. छात्र का सर्वांगीण विकास (All-round development of student)
विद्यालयी शिक्षण अधिगम का प्रमुख उद्देश्य छात्र का सर्वांगीण विकास करना होता है। इसके लिये समस्त शैक्षिक क्रियाओं में समन्वय स्थापित किया जाता है। सम्प्रेषण के माध्यम से छात्र की रुचि एवं योग्यताओं का पता लगाया जाता है।
शिक्षा प्रशासन में होने वाले परिवर्तनों का पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से ज्ञान होता है। इसके लिये विद्वानों के विचारों को भी आमन्त्रित किया जाता है उसी के अनुरूप विद्यालय में शिक्षण विधियों एवं साधनों में समन्वय स्थापित किया जाता है; जैसे- पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का आयोजन सम्प्रेषण की ही देन माना जाता है क्योंकि प्राचीन विद्यालय व्यवस्था में पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का कोई स्थान नहीं था।
4. सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक समायोजन (Social economic and political adjustment)
शिक्षण अधिगम का मुख्य उद्देश्य छात्र को इस प्रकार तैयार करना है कि वह विषम आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियों में अपने आपको समायोजित कर सके।
विद्यालय में विभिन्न प्रकार की सामाजिक एवं आर्थिक पत्रिकाओं को अध्ययन के लिये उपलब्ध कराना, महान राजनैतिक एवं समाज सुधारकों के विचारों से अवगत कराना छात्र में ऐसे गुणों का विकास करते हैं जो समायोजन की क्षमता में महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं तथा अत: सम्प्रेषण के साधनों के माध्यम से आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक समायोजन की क्षमता उत्पन्न होती है।
5. शिक्षा अधिकारियों को निर्देश (Direction of education officers)
प्रशासन में शिक्षा से सम्बन्धित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश प्रदान किये जाते हैं जिसमें सम्प्रेषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है; जैसे- किसी विद्यालय के कर्मचारी को उसके कार्य एवं अधिकार क्षेत्र का पूर्ण ज्ञान हो जाता है तो उसको अपने कार्य के सम्पादन में किसी प्रकार की कठिनाई अनुभव नहीं होती है।
समय-समय पर निरीक्षण करके उसको उचित निर्देश प्रदान किये जाते हैं। यह निर्देश व्यक्तिगत लिखित एवं संचार माध्यमों की सहायता से प्रदान किये जाते हैं। इस प्रकार शिक्षा अधिकारियों को निर्देशन प्रदान करने का सम्पूर्ण कार्य सम्प्रेषण माध्यमों से ही सम्पन्न होता है।
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उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षण अधिगम में सम्प्रेषण की अत्यधिक आवश्यकता होती है। शिक्षण अधिगम को प्रभावी बनाने के लिये सम्प्रेषण प्रक्रिया का प्रभावी होना अति आवश्यक है क्योंकि विद्यालय प्रशासन में प्रत्येक बिन्दु पर सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है चाहे वह अपव्यय, अवरोधन से सम्बन्धित हो या नियन्त्रण व्यवस्था से सम्बन्धित हो।
अत: यह स्पष्ट हो जाता है कि सम्प्रेषण के अभाव में शिक्षण अधिगम प्रभावी नहीं हो सकता है और शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में समर्थ नहीं हो सकता है। अतः सम्प्रेषण वह केन्द्र बिन्दु है जो शिक्षण अधिगम की सफलता एवं सफलता का निर्धारित करता है।