शिक्षण के सामान्य उद्देश्यों को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है:-
शिक्षण का उद्देश्य बालकों को उनके जीवन से सम्बन्धित उपयोगी ज्ञान प्रदान करना है।
शिक्षण का उद्देश्य बालक की मानसिक शक्तियों का विकास करना है। मानसिक शक्तियों के विकास से ही बालक उत्तम नागरिक बन सकता है।
शिक्षण का उद्देश्य बालकों को सीखने के लिये प्रेरित करना है। यदि बालकों में सीखने के प्रति प्रेरणा नहीं होगी तो वे अपने कार्य में रुचि नहीं लेंगे।
बालकों की प्रवृत्तियाँ पशुवत् होती हैं। शिक्षण का उद्देश्य इनका शोधन करना होता है।
शिक्षण का उद्देश्य बालकों की कठिनाइयाँ दूर करना होता है।
शिक्षण का उद्देश्य बालकों का मार्ग प्रर्शन करना है। बालकों का उचित मार्गदर्शन करना, उनकी रुचियों को ठीक मार्ग ले जाने के लिये आवश्यक होता है। शिक्षक अपने ज्ञान तथा अनुभव से बालकों का मार्ग प्रदर्शन करता है।
शिक्षण का उद्देश्य बालकों में आत्मविश्वास उत्पन्न करना है। शिक्षण बालकों में आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न करता है। आत्मविश्वास की भावना बालकों को जीवन में सफल बनाती है।
शिक्षण का उद्देश्य बालकों को सहयोग से रहना सिखाना है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज में रहना होता है। अत: बालक को सहयोग का पाठ पढ़ाया जाना आवश्यक है।
शिक्षण का उद्देश्य बालक को यह सिखाना है कि वह वातावरण के साथ किसी न किसी प्रकार की प्रतिक्रिया अवश्य करता है। शिक्षण बालक को वातावरण से समायोजन करना सिखाता है।
शिक्षण का उद्देश्य बालकों के संवेगों को प्रशिक्षित करना है। शिक्षण संवेगों को स्पष्ट करता है तथा संवेगों पर नियन्त्रण रखना सिखाता है।
शिक्षण का उद्देश्य बालकों को क्रियाशीलता के अवसर प्रदान करना है। शिक्षण में क्रियाशीलता का विशेष महत्त्व है। शिक्षक को विद्यालय में क्रियाशीलता का वातावरण बनाये रखना चाहिये।
शिक्षण का उद्देश्य बालकों को प्रगति मार्ग पर ले जाना है। शिक्षण प्रगतिशील होता है। शिक्षण के माध्यम से बालक की व्यक्तिगत और मानसिक प्रगति का प्रयास किया जाता है।
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