सृजनात्मकता (Creativity) सामान्य रूप से जब हम किसी वस्तु या घटना के बारे में विचार करते हैं तो हमारे मन-मस्तिष्क में अनेक प्रकार के विचारों का प्रादुर्भाव होता है। उत्पन्न विचारों को जब हम व्यावहारिक रूप प्रदान करते हैं तो उसके पक्ष एवं विपक्ष, लाभ एवं हानियाँ हमारे समक्ष आती हैं। इस स्थिति में हम अपने विचारों की सार्थकता एवं निरर्थकता को पहचानते हैं। सार्थक विचारों को व्यवहार में प्रयोग करते हैं। इस प्रकार की स्थिति सृजनात्मक चिन्तन कहलाती है।
इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। जेम्स वाट एक वैज्ञानिक था। उसने रसोईघर से आने वाली एक आवाज को सुना तथा जाकर देखा कि चाय की केतली का ढक्कन बार-बार उठ रहा है तथा गिर रहा है। एक सामान्य व्यक्ति के लिये सामान्य घटना थी परन्तु सृजनात्मक व्यक्ति के लिये सजनात्मक चिन्तन का विषय थी।
यहाँ से सृजनात्मक चिन्तन की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। जेम्सवाट ने सोचा कि भाप में शक्ति होती है इसके लिये उसने केतली के ढक्कन पर पत्थर रखकर उसकी शक्ति का परीक्षण किया। इसके बाद उसने उसका उपयोग दैनिक जीवन में करने पर विचार किया तथा भाप के इन्जन का निर्माण करने में सफलता प्राप्त की।
सृजनात्मक व्यक्ति की विशेषताएँ
सृजनात्मक व्यक्ति को उसके गुण, कार्य एवं व्यवहार के आधार पर पहचाना जा सकता है क्योंकि सृजनात्मक बालक विभिन्न प्रकारों में सामान्य बालकों से भिन्न होता है। इसी प्रकार के अनेक कार्य ऐसे होते हैं जो कि सामान्य बालकों एवं सजनात्मक बालकों में अन्तर स्थापित करते हैं।
1. सृजनात्मक व्यक्ति जिज्ञासु होता है (Creative person become curious)
2. सृजनात्मक व्यक्ति चुनौतियाँ पसन्द करते हैं (Creative person like challenges)
3. सृजनात्मक व्यक्ति प्रयोगों से भयभीत नहीं होते (Creative persons do not afraid to experiments)
4. सृजनात्मक व्यक्ति उच्च मानसिक स्तर के होते हैं (Creative people become high mental level)
5. आलोचनात्मक चिन्तन एवं सृजन में विश्वास (Belief in critical thinking and creation)
6. विश्लेषण एवं संश्लेषण की योग्यता (Ability of analysis and synthesis)
7. मस्तिष्क उद्वेलन की स्थिति (Situation of brain storming)
8. अनुसन्धान की प्रवृत्ति (Tendency of research)
9. प्रामाणिक तथ्यों का संकलन (Collection of standard factors)
10. वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific view)
उपरोक्त विवेचन के आधार पर समाज में सृजनात्मक व्यक्तियों तथा विद्यालय में शिक्षक द्वारा सृजनात्मक बालकों को पहचाना जा सकता है। इस आधार पर सृजनात्मक बालकों के लिये अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण किया जा सकता है।