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Priya Sharma in Psychology
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Bhaasha vikaas se aapaka kya aashay hai ? shaishavaavastha, baalyaavastha tatha kishoraavastha mein bhaasha vikaas ko spasht keejiye (What do you mean by language development? Explain language development in infancy, childhood and adolescence).

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Anupam

भाषा विकास बौद्धिक विकास की सर्वाधिक उत्तम कसौटी मानी जाती है। बालक को सर्वप्रथम भाषा ज्ञान परिवार से होता है। तत्पश्चात विद्यालय एवं समाज के सम्पर्क में उनका भाषायी ज्ञान समृद्ध होता है।

शैशवावस्था में भाषा का विकास

जन्म के समय शिशु क्रन्दन करता है। यही उसकी पहली भाषा होती है। इस समय उसे न तो स्वरों का ज्ञान होता है और न व्यंजनों का। 25 सप्ताह तक शिशु जिस प्रकार की ध्वनियाँ निकालता है, उनमें स्वरों की संख्या अधिक होती है।

10 मास की अवस्था में शिशु पहला शब्द बोलता है, जिसे बार-बार दोहराता है। एक वर्ष तक शिशु की भाषा समझना कठिन होता है। केवल अनुमान से ही उसकी भाषा समझी जा सकती है।

मेक-कॉर्थी (Mec-Corthy) ने सन् 1950 में एक अध्ययन किया और यह निष्कर्ष निकाला कि 18 मास के बालक की भाषा 26% समझ में आती है। आरम्भ में बालक एक शब्द से वाक्यों का बोध कराते हैं।

स्किनर के अनुसार- "आयु-स्तरों पर बालकों के शब्द ज्ञान के गुणात्मक पक्षों के अध्ययन से पता चलता है कि शब्दों की परिभाषा के स्वरूप में वृद्धि होती है।" शैशवावस्था में भाषा विकास जिस ढंग से होता है, उस पर परिवार की संस्कृति तथा सभ्यता का प्रभाव पड़ता है।

स्मिथ ने शैशवावस्था में भाषा के विकास के क्रम का परिणाम निम्न प्रकार व्यक्त किया है-

भाषा विकास की प्रगति (Table-1)

आयु शब्द
जन्म से 8 मास 0
10 मास 1
1 वर्ष 3
1 वर्ष 3 मास 19
1 वर्ष 6 मास 22
1 वर्ष 9 मास 118
2 वर्ष 212
4 वर्ष 1550
5 वर्ष 2072
6 वर्ष 2562

शिशु की भाषा पर उसकी बुद्धि तथा विद्यालय का वातावरण अपनी भूमिका प्रस्तुत करते हैं।

एनास्टासी ने कहा है कि "लड़कों के अपेक्षा लड़कियों का भाषा-विकास शैशवकाल में अधिक होता है। जिन बच्चों में गूंगापन, हकलाना, तुतलाना आदि दोष होते हैं, उनका भाषा विकास धीमी गति से होता है।"

बाल्यावस्था में भाषा विकास

आयु के साथ-साथ बालकों के सीखने की गति में भी वृद्धि होती है। प्रत्येक क्रिया के साथ विस्तार में कमी होती है। बाल्यकाल में बालक शब्द से लेकर वाक्य विन्यास तक की सभी क्रियाएँ सीख लेता है।

हाइडर ने अध्ययन करके यह परिणाम निकाला कि-

  1. लडकियों की भाषा का विकास लड़कों की अपेक्षा अधिक शीघ्र से होता है।
  2. लड़कों की अपेक्षा लड़कियों के वाक्यों में शब्द संख्या अधिक होती है।
  3. अपनी बात को ढंग से प्रस्तुत करने में लड़कियाँ अधिक कुशल होती हैं।

सीशोर ने बाल्यावस्था में भाषा विकास का अध्ययन किया, 4 से 10 वर्ष तक के 117 बालकों पर चित्रों की सहायता से उसने प्रयोग किये। उसके परिणामों का संकलन निम्न तालिकानुसार है-

भाषा विकास की प्रगति (Table-2)

आयु (वर्ष में) शब्द
4 5,600
5 9,500
6 14,700
7 21,200
8 26,309
10 34,300

भाषा के विकास में समुदाय, घर, विद्यालय और परिवार की आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थिति का प्रभाव अत्यधिक पड़ता है। वस्तुओं को देखकर उसका प्रत्यय-ज्ञान बालक को हो जाता है और उसके पश्चात् उसे उसकी अभिव्यक्ति में भी आनन्द प्राप्त होता है। प्रत्यय-ज्ञान स्थूल से सूक्ष्म की ओर विकसित होता है। इसी प्रकार भाषा का ज्ञान भी मूर्त से अमूर्त की ओर होता है।

किशोरावस्था में भाषा विकास

किशोरावस्था में अनेक शारीरिक परिवर्तनों से जो संवेग उत्पन्न होते हैं, भाषा का विकास भी उनसे प्रभावित होता है। किशोरों में साहित्य पढ़ने की रुचि उत्पन्न हो जाती है। उनमें कल्पना शक्ति का विकास होने से वे कवि, कहानीकार, चित्रकार बनकर कविता, कहानी तथा चित्र के माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं।

किशोरावस्था में लिखे गये प्रेम-पत्रों की भाषा में भावुकता का मिश्रण होने से भाषा-सौन्दर्य प्रस्फुटित होता है। एक-एक शब्द अपने स्थान पर सार्थक होता है।

किशोरों का शब्दकोष (Vocabulary) भी विस्तृत होता है। भाषा तो पशुओं के लिये भी आवश्यक है। वे भी भय, भूख और कामेच्छा को आंगिक एवं वांचिक क्रन्दन से प्रकट करते हैं। फिर किशोर तो विकसित सामाजिक प्राणी है। भाषा को न केवल लिखकर अपितु बोलकर एवं उसमें नाटकीय तत्त्व उत्पन्न करके वह भाषा के अधिगम (Learning) को विकसित करता है।

किशोर अनेक बार गुप्त (Code) भाषा को भी विकसित करते हैं। यह भाषा कुछ प्रतीकों के माध्यम से लिखी जाती है, जिसका अर्थ वे ही जानते हैं, जिन्हें 'कोड' मालूम है। इसी प्रकार वह बोलने में प्रतीकात्मकता का निर्माण कर लेते हैं।

भाषा के माध्यम से किशोर की संकल्पनाओं (Concepts) का विकास होता है। ये संकल्पनाएँ उसके भावी जीवन की तैयारी का प्रतीक होती हैं। भाषा के विकास का किशोर के चिन्तन पर भी प्रभाव पड़ता है। वाटसन ने इसे व्यवहार का एक अंग माना है।

भाषा के माध्यम से किशोर अनुपस्थित परिस्थिति का वर्णन करता है और साथ ही साथ विचार-विमर्श के माध्यम के रूप में प्रयोग करता है। किशोरावस्था तक व्यक्ति जीवन में भाषा का प्रयोग किस प्रकार किया जाये. कैसे किया जाये आदि रहस्यों को जान लेता है।

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