भाषा विकास अपने-आप में स्वतन्त्र रूप से नहीं होता। इस पर अनेक प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। शब्द भण्डार, वाक्य-विन्यास तथा अभिव्यक्ति के प्रसार आदि पर विभिन्न कारकों का प्रभाव पड़ता है। इन कारकों द्वारा भाषा विकास निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित होता है-
1. स्वास्थ्य (Health)
स्मिथ (Smith) के अनुसार- "लम्बी बीमारी (विशेष रूप से पहले दो वर्ष में) के कारण बालक भाषा विकास में दो मास के लिये पिछड़ जाते हैं।" इसका कारण है- भाषा की सम्पर्क-जन्यता।
सम्पर्क से भाषा सीखी जाती है और बीमारी के समय बालक समाज के सम्पर्क में कम रहता है, अतः इस स्थिति का प्रभाव बालक के भाषा विकास पर पड़ना स्वाभाविक है। ऐसे बालकों का शब्द भण्डार भी कम होता है।
इसका कारण है- बालक भाषा को अनुकरण के माध्यम से सीखता है। स्वास्थ्य के ठीक न होने के कारण उसे अनुकरण के अवसर नहीं मिलते।
2. बुद्धि (Intelligence)
टर्मन (Termon) के अनुसार- "बुद्धि तथा भाषा का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। भाषा के स्तर से ही बुद्धि का पता चलता है। यह बात बाल्यावस्था पर वाक़ के शब्द भण्डार में वृद्धि के कारण प्रकट होती रहती है।" अध्ययनों से पता चलता है कि पहले दो वर्षों में भाषा तथा बुद्धि का सह-सम्बन्ध अधिक होता है।
स्पीकर (Spiker) के अनुसार- "भाषा विकास तथा बुद्धि-लब्धि का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। बालक के बोलने में स्वर तथा व्यंजनों की आवृत्ति से उस की बुद्धि का पता लगाया जा सकता है।" चूँकि आरम्भिक अवस्था में भाषा विकास बुद्धि का द्योतक है इसलिये अभिभावकों का दायित्व और भी बढ़ जाता है।
3. हकलाना (Stammering)
हकलाना वाणी दोष है। मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि हकलाना मानसिक अव्यवस्था के कारण होता है। बालक जब स्वाभाविक रूप से शब्दोच्चारण पर बल नहीं देता, तब उच्चारण सम्बन्धी तन्त्र को अधिक शक्ति लगानी पड़ती है। इसका परिणाम यह होता है कि श्वसन शक्ति की गति तीव्र हो जाती है, फेफड़ों में हवा नहीं रहती, ऐसी स्थिति में उच्चारण में दोष उत्पन्न होता है, जो हकलाने के रूप में प्रकट होता है।
थाम्पसन के अनुसार- "भाषा की परिभाषा में संवाद-वाहन के सभी तत्त्व निहित रहते हैं। मौखिक तथा अमौखिक, गति, मुद्रा, लिखित तथा छपित चिह्न इसके प्रतीक होते हैं। परिवार में ऐसे बालकों की शिक्षा के लिये विशेष प्रयल किया जाना चाहिये।"
हकलाना दो प्रकार का होता है-
- प्रारम्भिक हकलाना (Initial stammering)- इस प्रकार की हकलाहट में बालक को पहला शब्द उच्चरित करने में कठिनाई अनुभव होती है।
- पुनर्वाद-व्यंजन या हकलाहट (Repetition stammering or stuttering)- इस प्रकार की हकलाहट में श्वसन तीव्रगति होने से वाक्य के मध्य में ही हकलाट होने लगती है।
हकलाने के कारण इस प्रकार हैं-
- वंशक्रम से प्राप्त स्नायु रोग हकलाने के लिये उत्तरदायी हैं।
- असाधारण उत्तेजना से भी व्यक्ति हकलाने लगता है।
- जब सामान्य बालक, हकलाने एवं तुतलाने वाले अन्य बालकों की नकल करते हैं तो वह आदत बन जाती है।
- गम्भीर आघात में भी हकलाना आरम्भ हो जाता है।
- टाँसिल बढ़ जाने से भी हकलाने का दोष आ जाता है।
हकलाने का उपचार
हकलाना, जैसा कि कहा जा चुका है कि यह मानसिक अव्यवस्था के कारण होता है, इसका उपचार भी इसी प्रकार का है। इस दोष के उपचार के लिये निम्न कार्य किये जाने चाहिये-
- बालक के सामान्य स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
- यदि बालक में खून की कमी है, तो उसे उचित आहार तथा औषधि से दूर किया जाना चाहिये।
- दाँतों की खराबी दूर करनी चाहिये।
- हकलाने वाले बालक की मानसिक अव्यवस्था को दूर करना चाहिये।
- शारीरिक दोषों को दूर करने का प्रयल करना चाहिये।
- बालक को अच्छे मनो-चिकित्सक की देख-रेख में श्वसन-व्यायाम का प्रशिक्षण देना चाहिये।
- माता-पिता को भी चिकित्सक तथा बालक के साथ सहयोग करना चाहिये।
हकलाने वाले बालकों की शिक्षा का स्वरूप
सामान्यतया हकलाने वाले बालक की उपेक्षा की जाती है। इसी उपेक्षा के कारण वह पिछड़े हुए बालकों में गिना जाता है। इस दोष को देखते हुए इन बालकों की शिक्षा व्यवस्था में अग्र कार्य करने चाहिये-
- बालक में आत्म-विश्वास भरें। आत्म-विश्वास विकसित होने से हकलाने का दोष दूर होने लगता है।
- बालक को सामूहिक कार्यों तथा आयोजनों में भाग लेने के लिये प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
- वाद-विवाद, नाटक, संगीत आदि में भाग लेने के लिये प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
- हकलाने वाले बालक से हीन भावना निकालनी चाहिये।
- हकलाने वाले बालक यदि प्रश्न का पूरा उत्तर दे भी न पायें, तो अधूरे उत्तर को स्वीकार करना चाहिये।
- हकलाने वाले बालक के साथ सदैव सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करना चाहिये।
4. सामाजिक आर्थिक स्तर (Social economic status)
अनुसन्धानों से पता चला है कि जिन परिवारों का सामाजिक आर्थिक स्तर नीचा होता है, वहाँ पर बालकों की भाषा का विकास द्रुत गति से नहीं होता। इसका कारण है- निम्न सामाजिक आर्थिक समूहों के बालको में सीखने की गति का धीमा होना।
व्यापारी वर्ग, श्रमिक वर्ग तथा बुद्धिजीवी वर्ग के बालकों की भाषा का अध्ययन करने से यह परिणाम निकाला गया है कि वर्गों के बालों की शब्दावली और वाक्य विन्यास आदि में भिन्नता पायी जाती है। उच्च वर्ग के बालकों के आपसी सम्बन्ध भी उसी प्रकार के लोगों में रहते हैं और वे सुसंस्कृत शब्दावली युक्त लोक-व्यवहार की भाषा बोलते हैं।
5. यौन (Sex)
बच्चों की भाषा में प्रथम वर्ष में कोई अन्तर नहीं होता। लड़कियों की भाषा में यौन भिन्नता दो वर्ष की आयु के बाद आरम्भ हो जाती है। डरविन के अनुसार- "लड़कियाँ, लड़कों की अपेक्षा शीघ्र ही ध्वनि संकेत ग्रहण करती हैं।"
मैकार्थी ने पारिवारिक सम्बन्ध को इसका कारण बताया है। लड़कियों का सम्बन्ध तथा समाजीकरण माता से अधिक होता है। अत: उसी सम्पर्क से लड़कियों की भाषा में अन्तर आने लगता है।
यह भी देखा गया है कि वाणी दोष लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक पाये जाते हैं। मैकार्थी ने इसका कारण लड़कों में संवेगात्मक असुरक्षा बताया है।
6. पारिवारिक सम्बन्ध (Family relationship)
अनाथालयों, छात्रावासों तथा परिवारों में पले बच्चों के अध्ययन से पता चला कि भाषा सीखने तथा प्रभावित करने में पारिवारिक सम्बन्धों का विशेष महत्त्व है। संस्थानों के बच्चों का संवेगात्मक सम्पर्क परिवार के सदस्यों से नहीं हो पाता, इसलिये वे भाषा सीखने में देरी लगाते हैं।
भाषा के सीखने में परिवार के आकार का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। बालक बड़े बालकों के सम्पर्क से भी अपनी भाषा का विकास करते हैं।
7. एकाधिकार भाषा (Bilingualism)
जब कभी बालक को मातृभाषा के अतिरिक्त भाषा सीखनी पड़ती है, तो वह उसे सरलता से नहीं सीख पाता। विदेशी भाषा सीखने में प्रत्यक्ष विधि का महत्त्व है। इसलिये कहा गया है कि विभाषा को मातृ-भाषा की भाँति प्रयोग करो।
विभाषा सीखने के समय उसका सामान्य भाषा विकास विलम्बित (Late) हो जाता है। उसका चिन्तन भ्रमित हो जाता है। अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ने वाले बालकों की भाषा में अस्पष्टता, चिन्तन में अवरोध और प्रत्ययों (Concepts), में असमानता पायी जाती है। ऐसे बालक न तो विद्यालय में समायोजित हो पाते हैं और न ही घर में।