रूस के उद्योगों पर प्रथम विश्व युद्ध का नकारात्मक प्रभाव पड़ा। बाल्टिक सागर पर जर्मनी के नियंत्रण के कारण रूस का आयात बन्द हो चुका था। 1916 ई. तक रेलवे लाइनें टूट चुकी थीं। अनिवार्य सैनिक सेवा के चलते देश के स्वस्थ लोगों को युद्ध में लगा दिया गया था जिससे देश में मजदूरों की कमी हो गयी थी। रूस में रोटी की दुकानों पर दंगे होना आम बात हो गयी थी।
किसान जमीन पर सर्फ के रूप में काम करते थे और उनकी पैदावार को अधिकतम भाग जमीन के मालिकों एवं विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को चला जाता था। किसानों में जमीन की भूख प्रमुख कारक थी। विभिन्न दमनकारी नीतियों तथा कुण्ठा के कारण वे आमतौर पर लगान देने से मना कर देते और प्रायः जमींदारों की हत्या करते।
मजदूरों की स्थिति भी बहुत भयावह थी। वे अपनी शिकायतों को प्रकट करने के लिए कोई ट्रेड यूनियन अथवा कोई राजनीतिक दल नहीं बना सकते थे। अधिकतर कारखाने उद्योगपतियों की निजी सम्पत्ति थे। वे अपने स्वार्थ के लिए मजदूरों का शोषण करते थे। कई बार तो इन मजदूरों को न्यूनतम निर्धारित मजदूरी भी नहीं मिलती थी। कार्य घण्टों की कोई सीमा नहीं थी जिसके कारण उन्हें दिन में 12-15 घण्टे काम करना पड़ता था।
जार का निरंकुश शासन बिल्कुल निष्प्रभावी हो चुका था। वह एक स्वेच्छाचारी, भ्रष्ट एवं दमनकारी शासक था जिसे देश के लोगों के हितों को कोई खयाल नहीं था।