1857 ई० की क्रांति के चार कारण
राजनैतिक कारण
अँग्रेजों की युद्ध नीति, लॉर्ड वेलेजली द्वारा चलाई गई सहायक सन्धि नीति तथा लॉर्ड डलहौजी की लैप्स नीति के परिणामस्वरूप बंगाल, बिहार, उड़ीसा, अवध, हैदराबाद, म्यांमार (बर्मा), पंजाब, सतारा, नागपुर, झाँसी आदि भारतीय रियासतों को हड़प लिया गया। अँग्रेजों ने ‘ग्राम स्वराज्य’ (पंचायतों) को समाप्त करके लोगों को गुलामी की जंजीरों में जकड़ लिया, जिससे राजनैतिक असंतोष फैल गया।
आर्थिक शोषण
अंग्रेजों ने भारतीय व्यापार तथा दस्तकारियों को नष्ट कर दिया। वे भारत से कच्चा माल कौड़ियों के भाव खरीद लेते थे और अपने कारखानों में उसे संशोधित कर तैयार माल को भारत के बाजारों में ऊँचे दामों पर बेचते थे। अँग्रेजों की भूमि-कर नीति के बाद भारत में अकाल पड़े और बेरोजगारी फैल गई। उच्च सरकारी नौकरियों के दरवाजे भारतीयों के लिए बन्द कर दिए गए।
धार्मिक हस्तक्षेप
अँग्रेजों ने बड़ी संख्या में भारतीयों को ईसाई बना लिया। एक कानून द्वारा धर्म-परिवर्तन करने वालों को पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा देने का निर्णय लिया गया। इससे अँग्रेजों ने ईसाई बनने वालों के हितों की रक्षा की। भारतीय हिन्दुओं तथा मुसलमानों में असन्तोष का यह एक प्रमुख कारण था।
सामाजिक कारण
अँग्रेज साम्राज्यवादी नीति पर चलकर अपने स्वार्थ को पाल रहे थे। घूस और भ्रष्टाचार का बाजार गर्म था। अँग्रेजों ने पंचायत व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया। इससे न्याय महँगा हो गया और देर से मिलने लगा। नई भूमि-कर व्यवस्था से भी किसानों का शोषण हुआ, जिससे अँग्रेजों के विरुद्ध जन-असंतोष का बढ़ना स्वाभाविक था।