रूसी क्रान्ति में लेनिन की भूमिका
1. जार की साम्राज्यवादी नीति का दुष्परिणाम रूस को भुगतना पड़ा। निरन्तर युद्धों के कारण देश के धन एवं संसाधनों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ। देश का आर्थिक संकट गहराने लगा और जनता जार के विरुद्ध हो गयी।
2. जार अपनी सुन्दर रानी जरीना के प्रभाव में था जबकि रानी जरीना पर रासपूतनिक नामक एक ढोंगी संत को प्रभाव था। यह ढोंगी संत दमन की नीति का पक्षपाती था। कहा जाता है कि यह संत एक गुण्डा था जो चोरी के अपराध में पकड़ा गया था। बाद में उसने साधु का वेश धारण कर लिया था। इतिहासकार रासपूतनिक को ‘होली डेविल के नाम से पुकारते हैं।
3. 1905 ई. की क्रांति के कारण जार ने यह आश्वासन दिया था कि रूस में ड्यूमा अर्थात् पार्लियामेंट का निर्माण किया जाएगा परन्तु बाद में अपनी निरंकुशता के कारण उसने ड्यूमा को कोई काम नहीं करने दिया। वह इसके चुनाव में भी हस्तक्षेप करने लगा। पहली ड्यूमा को उसने केवल ढाई महीने में ही भंग कर दिया। जार ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर रखा था जिसमें भाँति-भाँति के लोग रहते थे जो सदा उसके लिए कोई न-कोई समस्या खड़ी कर देते थे।
४. रूस का जार निकोलस द्वितीय बिल्कुल उद्दण्ड और निरंकुश शासक था। 1905 ई. की क्रांति दबाने के बाद भी निकोलस द्वितीय की निरंकुशता बढ़ती ही गई। उसने गुप्तचर विभाग का कार्य बहुत तेज कर दिया। जिन लोगों का क्रांति से जरा-सा भी संबंध समझा गया, उनको या तो मार दिया गया या उन्हें बंदी बना लिया गया या फिर देश-निकाला दे दिया गया।