लेखिका के व्यक्तित्व पर मुख्य रूप से दो व्यक्तियों का प्रभाव पड़ा। पिताजी का प्रभाव-लेखिका के व्यक्तित्व को बनाने-बिगाड़ने में उनके पिता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने ही लेखिका के मन में हीनता की भावना पैदा की। उन्होंने ही उसे शक्की बनाया, विद्रोही बनाया। उन्हीं ने लेखिका को देश और समाज के प्रति जागरूक बनाया। उसे रसोईघर और सामान्य घर-गृहस्थी से दूर एक प्रबुद्ध व्यक्तित्व दिया। लेखिका को देश के प्रति जागरूक बनाने में उनके पिता का ही योगदान है। शीला अग्रवाल का प्रभाव-लेखिका को क्रियाशील, क्रांतिकारी और आंदोलनकारी बनाने में उनकी हिंदी-प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का योगदान है। शीला अग्रवाल ने अपनी जोशीली बातों से लेखिका के मन में बैठे संस्कारों को कार्य-रूप दे दिया। उन्होंने लेखिका के खून में शोले भड्का दिए। पिता उसे चारदीवारी तक सीमित रखना चाहते थे, परंतु शीला अग्रवाल ने उसे जन-जीवन में खुलकर विद्रोह करना सिखा दिया।