हुआ यूं कि लेखिका के आंदोलनकारी व्यवहार से तंग आकर उनके कॉलेज की प्रिंसिपल ने लेखिका के पिता को बुलवाया। पिता पहले से ही लेखिका के विद्रोही रुख से परेशान रहते थे। उन्हें लगा कि जरूर इस लड़की ने कोई अपमानजनक काम किया होगा। इस कारण उन्हें सिर झुकाना पड़ेगा। इसलिए वे बड़बड़ाते हुए कॉलेज गए। कॉलेज में जाकर उन्हें पता चला कि उनकी लड़की तो सब लड़कियों की चहेती नेत्री है। सारा कॉलेज उसके इशारों पर चलता है। लड़कियाँ प्रिंसिपल की बात भी नहीं मानतीं, केवल उसी के संकेत पर चलती हैं। इसलिए प्रिंसिपल के लिए कॉलेज चलाना कठिन हो गया है। यह सुनकर पिता का सीना गर्व से फूल उठा। वे गद्गद हो गए। उन्होंने प्राचार्य को उत्तर दिया- ये आंदोलन तो वक्त की पुकार हैं : इन्हें कैसे रोका जा सकता है। लेखिका पिता के मुख से ऐसी प्रशंसा सुनकर विश्वास न कर पाई। उसे अपने कानों पर भरोसा न हुआ। उसे तो यही आशा थी कि उसके पिता उसे डाँटेंगे, धमकाएँगे तथा उसका घर से बाहर निकलना बंद कर देंगे।