चेतक की वीरता, कविता – Chetak Ki Veerta – वीर रस की कविता

Chetak Ki Veerta Kavita

श्याम नारायण पांडेय: उनकी प्रसिद्ध रचना हल्दीघाटी में चेतक की वीरता और महाराणा प्रताप के संघर्ष का उल्लेख मिलता है।

यह कविता मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के प्रिय और अद्वितीय घोड़े, चेतक की वीरता और बलिदान का वर्णन करती है। चेतक को उसकी अद्वितीय वीरता और स्वामीभक्ति के लिए जाना जाता है। यह कविता उसकी अद्भुत क्षमताओं और बलिदान को श्रद्धांजलि देती है।

चेतक की वीरता

बकरों से बाघ लड़े¸
भिड़ गये सिंह मृग–छौनों से।
घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी¸
पैदल बिछ गये बिछौनों से।।1।।

हाथी से हाथी जूझ पड़े¸
भिड़ गये सवार सवारों से।
घोड़ों पर घोड़े टूट पड़े¸
तलवार लड़ी तलवारों से।।2।।

हय–रूण्ड गिरे¸ गज–मुण्ड गिरे¸
कट–कट अवनी पर शुण्ड गिरे।
लड़ते–लड़ते अरि झुण्ड गिरे¸
भू पर हय विकल बितुण्ड गिरे।।3।।

क्षण महाप्रलय की बिजली सी¸
तलवार हाथ की तड़प–तड़प।
हय–गज–रथ–पैदल भगा भगा¸
लेती थी बैरी वीर हड़प।।4।।

क्षण पेट फट गया घोड़े का¸
हो गया पतन कर कोड़े का।
भू पर सातंक सवार गिरा¸
क्षण पता न था हय–जोड़े का।।5।।

चिंग्घाड़ भगा भय से हाथी¸
लेकर अंकुश पिलवान गिरा।
झटका लग गया¸ फटी झालर¸
हौदा गिर गया¸ निशान गिरा।।6।।

कोई नत–मुख बेजान गिरा¸
करवट कोई उत्तान गिरा।
रण–बीच अमित भीषणता से¸
लड़ते–लड़ते बलवान गिरा।।7।।

होती थी भीषण मार–काट¸
अतिशय रण से छाया था भय।
था हार–जीत का पता नहीं¸
क्षण इधर विजय क्षण उधर विजय।।8

कोई व्याकुल भर आह रहा¸
कोई था विकल कराह रहा।
लोहू से लथपथ लोथों पर¸
कोई चिल्ला अल्लाह रहा।।9।।

धड़ कहीं पड़ा¸ सिर कहीं पड़ा¸
कुछ भी उनकी पहचान नहीं।
शोणित का ऐसा वेग बढ़ा¸
मुरदे बह गये निशान नहीं।।10।।

मेवाड़–केसरी देख रहा¸
केवल रण का न तमाशा था।
वह दौड़–दौड़ करता था रण¸
वह मान–रक्त का प्यासा था।।11।।

चढ़कर चेतक पर घूम–घूम
करता मेना–रखवाली था।
ले महा मृत्यु को साथ–साथ¸
मानो प्रत्यक्ष कपाली था।।12।।

रण–बीच चौकड़ी भर–भरकर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से¸
पड़ गया हवा को पाला था।।13।।

गिरता न कभी चेतक–तन पर¸
राणा प्रताप का कोड़ा था।
वह दोड़ रहा अरि–मस्तक पर¸
या आसमान पर घोड़ा था।।14।।

जो तनिक हवा से बाग हिली¸
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं¸
तब तक चेतक मुड़ जाता था।।15।।

कौशल दिखलाया चालों में¸
उड़ गया भयानक भालों में।
निभीर्क गया वह ढालों में¸
सरपट दौड़ा करवालों में।।16।।

है यहीं रहा¸ अब यहां नहीं¸
वह वहीं रहा है वहां नहीं।
थी जगह न कोई जहां नहीं¸
किस अरि–मस्तक पर कहां नहीं।।17।

बढ़ते नद–सा वह लहर गया¸
वह गया गया फिर ठहर गया।
विकराल ब्रज–मय बादल–सा
अरि की सेना पर घहर गया।।18।।

भाला गिर गया¸ गिरा निषंग¸
हय–टापों से खन गया अंग।
वैरी–समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग।।19।।

चढ़ चेतक पर तलवार उठा
रखता था भूतल–पानी को।
राणा प्रताप सिर काट–काट
करता था सफल जवानी को।।20।।

कलकल बहती थी रण–गंगा
अरि–दल को डूब नहाने को।
तलवार वीर की नाव बनी
चटपट उस पार लगाने को।।21।।

वैरी–दल को ललकार गिरी¸
वह नागिन–सी फुफकार गिरी।
था शोर मौत से बचो¸बचो¸
तलवार गिरी¸ तलवार गिरी।।22।।

पैदल से हय–दल गज–दल में
छिप–छप करती वह विकल गई!
क्षण कहां गई कुछ¸ पता न फिर¸
देखो चमचम वह निकल गई।।23।।

क्षण इधर गई¸ क्षण उधर गई¸
क्षण चढ़ी बाढ़–सी उतर गई।
था प्रलय¸ चमकती जिधर गई¸
क्षण शोर हो गया किधर गई।।24।।

क्या अजब विषैली नागिन थी¸
जिसके डसने में लहर नहीं।
उतरी तन से मिट गये वीर¸
फैला शरीर में जहर नहीं।।25।।

थी छुरी कहीं¸ तलवार कहीं¸
वह बरछी–असि खरधार कहीं।
वह आग कहीं अंगार कहीं¸
बिजली थी कहीं कटार कहीं।।26।।

लहराती थी सिर काट–काट¸
बल खाती थी भू पाट–पाट।
बिखराती अवयव बाट–बाट
तनती थी लोहू चाट–चाट।।27।।

सेना–नायक राणा के भी
रण देख–देखकर चाह भरे।
मेवाड़–सिपाही लड़ते थे
दूने–तिगुने उत्साह भरे।।28।।

क्षण मार दिया कर कोड़े से
रण किया उतर कर घोड़े से।
राणा रण–कौशल दिखा दिया
चढ़ गया उतर कर घोड़े से।।29।।

क्षण भीषण हलचल मचा–मचा
राणा–कर की तलवार बढ़ी।
था शोर रक्त पीने को यह
रण–चण्डी जीभ पसार बढ़ी।।30।।
वह हाथी–दल पर टूट पड़ा¸
मानो उस पर पवि छूट पड़ा।
कट गई वेग से भू¸ ऐसा
शोणित का नाला फूट पड़ा।।31।।

जो साहस कर बढ़ता उसको
केवल कटाक्ष से टोक दिया।
जो वीर बना नभ–बीच फेंक¸
बरछे पर उसको रोक दिया।।32।।

क्षण उछल गया अरि घोड़े पर¸
क्षण लड़ा सो गया घोड़े पर।
वैरी–दल से लड़ते–लड़ते
क्षण खड़ा हो गया घोड़े पर।।33।।

क्षण भर में गिरते रूण्डों से
मदमस्त गजों के झुण्डों से¸
घोड़ों से विकल वितुण्डों से¸
पट गई भूमि नर–मुण्डों से।।34।।

ऐसा रण राणा करता था
पर उसको था संतोष नहीं
क्षण–क्षण आगे बढ़ता था वह
पर कम होता था रोष नहीं।।35।।

कहता था लड़ता मान कहां
मैं कर लूं रक्त–स्नान कहां।
जिस पर तय विजय हमारी है
वह मुगलों का अभिमान कहां।।36।।

भाला कहता था मान कहां¸
घोड़ा कहता था मान कहां?
राणा की लोहित आंखों से
रव निकल रहा था मान कहां।।37।।

लड़ता अकबर सुल्तान कहां¸
वह कुल–कलंक है मान कहां?
राणा कहता था बार–बार
मैं करूं शत्रु–बलिदान कहां?।।38।।

तब तक प्रताप ने देख लिया
लड़ रहा मान था हाथी पर।
अकबर का चंचल साभिमान
उड़ता निशान था हाथी पर।।39।।

वह विजय–मन्त्र था पढ़ा रहा¸
अपने दल को था बढ़ा रहा।
वह भीषण समर–भवानी को
पग–पग पर बलि था चढ़ा रहा।।40।

फिर रक्त देह का उबल उठा
जल उठा क्रोध की ज्वाला से।
घोड़ा से कहा बढ़ो आगे¸
बढ़ चलो कहा निज भाला से।।41।।

हय–नस नस में बिजली दौड़ी¸
राणा का घोड़ा लहर उठा।
शत–शत बिजली की आग लिये
वह प्रलय–मेघ–सा घहर उठा।।42।।

क्षय अमिट रोग¸ वह राजरोग¸
ज्वर सiन्नपात लकवा था वह।
था शोर बचो घोड़ा–रण से
कहता हय कौन¸ हवा था वह।।43।।

तनकर भाला भी बोल उठा
राणा मुझको विश्राम न दे।
बैरी का मुझसे हृदय गोभ
तू मुझे तनिक आराम न दे।।44।।

खाकर अरि–मस्तक जीने दे¸
बैरी–उर–माला सीने दे।
मुझको शोणित की प्यास लगी
बढ़ने दे¸ शोणित पीने दे।।45।।

मुरदों का ढेर लगा दूं मैं¸
अरि–सिंहासन थहरा दूं मैं।
राणा मुझको आज्ञा दे दे
शोणित सागर लहरा दूं मैं।।46।।

रंचक राणा ने देर न की¸
घोड़ा बढ़ आया हाथी पर।
वैरी–दल का सिर काट–काट
राणा चढ़ आया हाथी पर।।47।।

गिरि की चोटी पर चढ़कर
किरणों निहारती लाशें¸
जिनमें कुछ तो मुरदे थे¸
कुछ की चलती थी सांसें।।48।।

वे देख–देख कर उनको
मुरझाती जाती पल–पल।
होता था स्वर्णिम नभ पर
पक्षी–क्रन्दन का कल–कल।।49।।

मुख छिपा लिया सूरज ने
जब रोक न सका रूलाई।
सावन की अन्धी रजनी
वारिद–मिस रोती आई।।50।।

bakaron se baagh lade¸

bhid gaye sinh mrg–chhaunon se.

ghode gir pade gire haathee¸

paidal bichh gaye bichhaunon se..1..

haathee se haathee joojh pade¸

bhid gaye savaar savaaron se.

ghodon par ghode toot pade¸

talavaar ladee talavaaron se..2..

hay–roond gire¸ gaj–mund gire¸

kat–kat avanee par shund gire.

ladate–ladate ari jhund gire¸

bhoo par hay vikal bitund gire..3..

kshan mahaapralay kee bijalee see¸

talavaar haath kee tadap–tadap.

hay–gaj–rath–paidal bhaga bhaga¸

letee thee bairee veer hadap..4..

kshan pet phat gaya ghode ka¸

ho gaya patan kar kode ka.

bhoo par saatank savaar gira¸

kshan pata na tha hay–jode ka..5..

chingghaad bhaga bhay se haathee¸

lekar ankush pilavaan gira.

jhataka lag gaya¸ phatee jhaalar¸

hauda gir gaya¸ nishaan gira..6..

koee nat–mukh bejaan gira¸

karavat koee uttaan gira.

ran–beech amit bheeshanata se¸

ladate–ladate balavaan gira..7..

hotee thee bheeshan maar–kaat¸

atishay ran se chhaaya tha bhay.

tha haar–jeet ka pata nahin¸

kshan idhar vijay kshan udhar vijay..8

koee vyaakul bhar aah raha¸

koee tha vikal karaah raha.

lohoo se lathapath lothon par¸

koee chilla allaah raha..9..

dhad kaheen pada¸ sir kaheen pada¸

kuchh bhee unakee pahachaan nahin.

shonit ka aisa veg badha¸

murade bah gaye nishaan nahin..10..

mevaad–kesaree dekh raha¸

keval ran ka na tamaasha tha.

vah daud–daud karata tha ran¸

vah maan–rakt ka pyaasa tha..11..

chadhakar chetak par ghoom–ghoom

karata mena–rakhavaalee tha.

le maha mrtyu ko saath–saath¸

maano pratyaksh kapaalee tha..12..

ran–beech chaukadee bhar–bharakar

chetak ban gaya niraala tha.

raana prataap ke ghode se¸

pad gaya hava ko paala tha..13..

girata na kabhee chetak–tan par¸

raana prataap ka koda tha.

vah dod raha ari–mastak par¸

ya aasamaan par ghoda tha..14..

jo tanik hava se baag hilee¸

lekar savaar ud jaata tha.

raana kee putalee phiree nahin¸

tab tak chetak mud jaata tha..15..

kaushal dikhalaaya chaalon mein¸

ud gaya bhayaanak bhaalon mein.

nibheerk gaya vah dhaalon mein¸

sarapat dauda karavaalon mein..16..

hai yaheen raha¸ ab yahaan nahin¸

vah vaheen raha hai vahaan nahin.

thee jagah na koee jahaan nahin¸

kis ari–mastak par kahaan nahin..17.

badhate nad–sa vah lahar gaya¸

vah gaya gaya phir thahar gaya.

vikaraal braj–may baadal–sa

ari kee sena par ghahar gaya..18..

bhaala gir gaya¸ gira nishang¸

hay–taapon se khan gaya ang.

vairee–samaaj rah gaya dang

ghode ka aisa dekh rang..19..

chadh chetak par talavaar utha

rakhata tha bhootal–paanee ko.

raana prataap sir kaat–kaat

karata tha saphal javaanee ko..20..

kalakal bahatee thee ran–ganga

ari–dal ko doob nahaane ko.

talavaar veer kee naav banee

chatapat us paar lagaane ko..21..

vairee–dal ko lalakaar giree¸

vah naagin–see phuphakaar giree.

tha shor maut se bacho¸bacho¸

talavaar giree¸ talavaar giree..22..

paidal se hay–dal gaj–dal mein

chhip–chhap karatee vah vikal gaee!

kshan kahaan gaee kuchh¸ pata na phir¸

dekho chamacham vah nikal gaee..23..

kshan idhar gaee¸ kshan udhar gaee¸

kshan chadhee baadh–see utar gaee.

tha pralay¸ chamakatee jidhar gaee¸

kshan shor ho gaya kidhar gaee..24..

kya ajab vishailee naagin thee¸

jisake dasane mein lahar nahin.

utaree tan se mit gaye veer¸

phaila shareer mein jahar nahin..25..

thee chhuree kaheen¸ talavaar kaheen¸

vah barachhee–asi kharadhaar kaheen.

vah aag kaheen angaar kaheen¸

bijalee thee kaheen kataar kaheen..26..

laharaatee thee sir kaat–kaat¸

bal khaatee thee bhoo paat–paat.

bikharaatee avayav baat–baat

tanatee thee lohoo chaat–chaat..27..

sena–naayak raana ke bhee

ran dekh–dekhakar chaah bhare.

mevaad–sipaahee ladate the

doone–tigune utsaah bhare..28..

kshan maar diya kar kode se

ran kiya utar kar ghode se.

raana ran–kaushal dikha diya

chadh gaya utar kar ghode se..29..

kshan bheeshan halachal macha–macha

raana–kar kee talavaar badhee.

tha shor rakt peene ko yah

ran–chandee jeebh pasaar badhee..30..

vah haathee–dal par toot pada¸

maano us par pavi chhoot pada.

kat gaee veg se bhoo¸ aisa

shonit ka naala phoot pada..31..

jo saahas kar badhata usako

keval kataaksh se tok diya.

jo veer bana nabh–beech phenk¸

barachhe par usako rok diya..32..

kshan uchhal gaya ari ghode par¸

kshan lada so gaya ghode par.

vairee–dal se ladate–ladate

kshan khada ho gaya ghode par..33..

kshan bhar mein girate roondon se

madamast gajon ke jhundon se¸

ghodon se vikal vitundon se¸

pat gaee bhoomi nar–mundon se..34..

aisa ran raana karata tha

par usako tha santosh nahin

kshan–kshan aage badhata tha vah

par kam hota tha rosh nahin..35..

kahata tha ladata maan kahaan

main kar loon rakt–snaan kahaan.

jis par tay vijay hamaaree hai

vah mugalon ka abhimaan kahaan..36..

bhaala kahata tha maan kahaan¸

ghoda kahata tha maan kahaan?

raana kee lohit aankhon se

rav nikal raha tha maan kahaan..37..

ladata akabar sultaan kahaan¸

vah kul–kalank hai maan kahaan?

raana kahata tha baar–baar

main karoon shatru–balidaan kahaan?..38..

tab tak prataap ne dekh liya

lad raha maan tha haathee par.

akabar ka chanchal saabhimaan

udata nishaan tha haathee par..39..

vah vijay–mantr tha padha raha¸

apane dal ko tha badha raha.

vah bheeshan samar–bhavaanee ko

pag–pag par bali tha chadha raha..40.

phir rakt deh ka ubal utha

jal utha krodh kee jvaala se.

ghoda se kaha badho aage¸

badh chalo kaha nij bhaala se..41..

hay–nas nas mein bijalee daudee¸

raana ka ghoda lahar utha.

shat–shat bijalee kee aag liye

vah pralay–megh–sa ghahar utha..42..

kshay amit rog¸ vah raajarog¸

jvar sainnapaat lakava tha vah.

tha shor bacho ghoda–ran se

kahata hay kaun¸ hava tha vah..43..

tanakar bhaala bhee bol utha

raana mujhako vishraam na de.

bairee ka mujhase hrday gobh

too mujhe tanik aaraam na de..44..

khaakar ari–mastak jeene de¸

bairee–ur–maala seene de.

mujhako shonit kee pyaas lagee

badhane de¸ shonit peene de..45..

muradon ka dher laga doon main¸

ari–sinhaasan thahara doon main.

raana mujhako aagya de de

shonit saagar lahara doon main..46..

ranchak raana ne der na kee¸

ghoda badh aaya haathee par.

vairee–dal ka sir kaat–kaat

raana chadh aaya haathee par..47..

giri kee chotee par chadhakar

kiranon nihaaratee laashen¸

jinamen kuchh to murade the¸

kuchh kee chalatee thee saansen..48..

ve dekh–dekh kar unako

murajhaatee jaatee pal–pal.

hota tha svarnim nabh par

pakshee–krandan ka kal–kal..49..

mukh chhipa liya sooraj ne

jab rok na saka roolaee.

saavan kee andhee rajanee

vaarid–mis rotee aaee..50..

You May Also Like

Veer Ras Ki Kavita - Ramdhari Singh Dinkar

वीर रस की कविता (Veer Ras Ki Kavita) : रामधारी सिंह दिनकर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *