बहुभ्रूणता
एक बीजाण्ड या बीज में एक से अधिक भ्रूणों का उत्पन्न होना बहुभ्रूणता (polyembryony) कहलाता है। अनावृतबीजी पौधों में यह सामान्य घटना है परन्तु आवृतबीजी पौधों में काफी कम पायी जाती है। बहुभ्रूणता (polyembryony) की खोज एण्टोनी वॉन ल्यूवेनहॉक (A.V. Leeuwenhoek) ने 1791 में सन्तरे (orange) के बीजों में की थी। यद्यपि एक बीज में बहुत सारे भ्रूण (embryo) विकसित हो जाते हैं, परन्तु इनमें से एक ही भ्रूण सक्रिय होकर पौधों की अगली पीढ़ी को जन्म देता है।
बहुभ्रूणता निम्न प्रकार की होती है –
1. सरले बहुभ्रूणता (Simple Polyembryony) – इस प्रकार की बहुभ्रूणता में बीजाण्ड में एक-से-अधिक भ्रूणकोष (embryo sac) होते हैं। इनमें निषेचन के बाद अनेक निषिक्ताण्ड (oospore) बनते हैं। प्रत्येक से भ्रूण का निर्माण होता है, जैसे-ब्रेसिका (Brassica)
2. मिश्रित बहुभ्रूणता (Mixed Polyembryony) – इसमें एक से अधिक पराग नलिकाएँ बीजाण्ड में जाती हैं। अतिरिक्त युग्मक, सहायक कोशाओं अथवा प्रतिमुख कोशाओं से संयुक्त हो जाते हैं और इस प्रकार बनी द्विगुणित कोशी (2n) से भी भ्रूण बनता है, जैसे – सैजिटेरिया, पोआ अल्पीना, एलियम ओडोरम आदि।
3. विदलन बहुभ्रूणता (Cleavage Polyembryony) – यह युग्मनज (zygote) के दो अथवा अधिक भागों में विभाजन से होती है। प्रत्येक भाग से भ्रूण बनता है; जैसे – क्रोटेलेरिआ
(Crotalaria), FAT37 15C (Nymphaea advena)
4. अपस्थानिक बहुभ्रूणता (Adventive Polyembryony) – जब भ्रूण का विकास बिना निषेचन के ही बीजाण्डकाय (nucellus) अथवा अध्यावरण (integuments) की कोशाओं से होता है, तब ऐसी बहुभ्रूणता को अपस्थानिक बहुभ्रूणता कहते हैं; जैसे- नींबू, संतरा, आम आदि।