उत्तर वैदिक काल में धार्मिक स्थिति
उत्तर वैदिक काल में बहु-देववाद प्रचलन में था। लोगों द्वारा उपासना का मुख्य उद्देश्य भौतिक सुखों की प्राप्ति करना था।इस काल में प्रजापति, विष्णु व शिव महत्वपूर्ण देवता बन गए थे, जबकि इंद्र, अग्नि और वरुण का महत्त्व अपेक्षाकृत कम हो गया था। सृष्टि के सृजन से प्रजापति को जोड़ा जाने लगा। वरुण देवता को मात्र जल का देवता माना जाने लगा। इस दौरान यज्ञ का महत्त्व काफी अधिक हो गया था, और धार्मिक अनुष्ठान पहले की अपेक्षा काफी जटिल हो गए थे।ऋग्वेद में 7 पुरोहितों का उल्लेख किया गया था, जबकि उत्तर वैदिक काल में 14 पुरोहितों का उल्लेख किया गया था। उत्तर वैदिक काल में प्रत्येक वेद के अलग-अलग पुरोहित बन गए थे। सामवेद से उद्गाता, यजुर्वेद से अध्वर्यु, अथर्ववेद से ब्रह्मा को जोड़ा जाने लगे। सभी यज्ञों का पर्यवेक्षण ऋत्विज नामक मुख्य पुरोहित द्वारा किया जाता था।
मृत्यु की चर्चा सबसे पहले शतपथ ब्राह्मण में की गयी थी, जबकि मोक्ष का उल्लेख सर्वप्रथम उपनिषद में मिलती है। पुनर्जन्म की अवधारणा का उल्लेख वृहदारण्यक उपनिषद में किया गया है। ईशोपनिषद् में निष्काम कर्म के सिद्धांत की व्याख्या की गयी है। इस दौरान मुख्य यज्ञ वाजपेय, अश्वमेध और पुरुषमेध यज्ञ थे।