in इतिहास
edited
ऋग्वैदिक काल का रहन सहन और अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं

1 Answer

0 votes

edited

राजनीतिक स्थिति

ऋग्वेदिक राजनितिक व्यवस्था काफी सरल थी, यह कबीलाई व्यवस्था थी। आर्य राज्यों की बजाय कबीलों में संगठित थे। इसमें बड़े राज्य का निर्माण दृष्टिगोचर नहीं होता, यह एक जनजातीय सैन्य लोकतंत्र था। इसकी शक्ति का मुख्य स्त्रोत कबीले की परिषद् थी। प्रशासन की बाग़डोर कबीले के मुखिया के हाथ में होती थी। कबीले का मुखिया युद्ध का नेतृत्व भी करता था, इसलिए उसके राजन (राजा) कहा जाता था।

ऋग्वेदिक काल की सामाजिक स्थिति

ऋग्वेदिक काल में व्यवसाय के आधार पर समाज को अलग-अलग वर्गों में बांटा गया। ऋग्वेद के दसवें मंडल में व्यवसाय के आधार पर चार वर्णों का उल्लेख किया गया है, यह वर्गीकरण जातिगत व्यवस्था से भिन्न था। ऋग्वेदिक काल में परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई हुआ करता था, समाज मुख्यतः पितृसत्तात्मक था, इसके बावजूद स्त्रियों का स्थान समाज में उच्च था।

ऋग्वेदिक काल में शिक्षा

ऋग्वेदिक काल में शिक्षा की गुरुकुल पद्धति विद्यमान थी, इसमें गुरु द्वारा शिष्यों को गुरुकुल में शिक्षा प्रदान की जाती थी। ऋग्वेद में एक छात्र का वर्णन मिलता, वह लिखता है “मैं कवि हूँ, मेरे पिता वैद्य हैं और मेरी माता पीसती हैं।“ इससे स्पष्ट होता है कि ऋग्वेद में लोग विभिन्न व्यवसायों में संलग्न थे।

ऋग्वेदिक काल में जीवन शैली

वस्त्र के रूप में आर्य सूत, उन और मृगचर्म का उपयोग किया जाता था।ऋग्वेदिक काल में ऊनी वस्त्रों को सामूल्य कहा जाता था। जबकि कढाई किये गए कपड़े को पेशस कहा जाता था। कमर से नीचे पहने जाने वाले वस्त्र को नीवी कहा जाता था, जबकि कमर से ऊपर पहने जाने वाले वास्ता को वासस कहा जाता था, ओढ़ने वाले वस्त्र को अधिवासस कहा जाता था। आर्य कवच व शिरस्त्राण का उपयोग भी करता था। 

ऋग्वेदिक काल में कृषि और पशुपालनक

ऋग्वेदिक काल में पशुचारण आजीविका का मुख्य साधन था। इस दौरान गाय का काफी महत्वपूर्ण व मूल्यवान पशु माना जाता थागाय के महत्ता के कारण धनी व्यक्ति को गोमल कहा जाता था और राजा को गोपति कहा जाता था। समय के माप के लिए गोधूली और दूरी के माप के लिए गवयतु शब्द का उपयोग किया जाता था। ऋग्वेद में “गो” शब्द गाय से सम्बंधित है, इसका उल्लेख ऋग्वेद में 176 बार किया गया है।

ऋग्वेदकालीन शिल्प और व्यापार

ऋग्वेदिक काल में व्यापारिक गतिविधियाँ काफी सीमित थीं। व्यापार मुख्य रूप से वस्तु विनिमय प्रणाली के आधार पर किया जाता था।ऋग्वेदिक काल में कपड़े बुनने का कार्य बड़े पैमाने पर किया जाता था, यह कार्य मुख्य रूप से स्त्रियों द्वारा किया जाता था। इसके लिए “सिरी” नामक शब्द का उपयोग भी किया जाता है। ऋग्वेद में करघा के लिए तसर शब्द, बुने के लिए ओतु व तंतु, उन के लिए शुध्यव शब्द का उपयोग किया गया है। 

ऋग्वेदिक काल में धार्मिक स्थिति

वैदिक धर्म में पुरोहित को ईश्वर और मानव के बीच मध्यस्थ माना जाता है। ऋग्वेद 33 देवो का वर्णन किया गया है।आर्यों का जीवन काफी सादा था, वे बहु-देववादी होने के साथ-साथ एकश्वरवादी भी थे। ऋग्वेदिक काल में यज्ञ और प्रकृति पूजा प्रमुख धार्मिक गतिविधियाँ थी। ऋग्वेद में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है। अपने दायित्व को पूरा करना, स्वयं व दूसरों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना धर्म माना जाता था।

पूजा विधि

ऋग्वेदिक काल में उपासना के प्रति दृष्टिकोण व्यवहारिक था।ऋग्वेदिक काल में उपासना की मुख्य विधियाँ प्रार्थना और यज्ञ थीं। रिग्वेदिक काल में लोग संतान प्राप्ति, पशुधन, युद्ध में विजय इत्यादि के लिए देवताओं की उपासना करते थे। यज्ञ की अपेक्षा प्रार्थना अधिक प्रचलित थी, उपासना का मुख्य उद्देश्य लौकिक था।

Related questions

Follow Us

Stay updated via social channels

Twitter Facebook Instagram Pinterest LinkedIn
...