ऋग्वेदिक कालीन अर्थव्यवस्था
ऋग्वेदिक काल में लोग विभिन्न व्यवसायों में संलग्न थे, इस दौरान कृषि और पशुपालन प्रमुख व्यवसाय था। इसके अतिरिक्त कुछ लोग अन्य रचनात्मक कार्यों में भी संलग्न थे।ऋग्वेद में कई प्रकार के शिल्पकार अस्तित्व में थे, रथकार, बढई, बुनकर, चर्मकार, कुम्हार प्रमुख शिल्पी थे। ऋग्वेदिक काल में आर्यों द्वारा तीन प्रमुख धातुओं सोना, ताम्बा और कांसा का उपोग किया जाता था। ताम्बे या कांसे के लिए अयस शब्द का उपयोग किया जाता था।
ऋग्वेदिक काल में व्यापारिक गतिविधियाँ काफी सीमित थीं। व्यापार मुख्य रूप से वस्तु विनिमय प्रणाली के आधार पर किया जाता था। इस दौरान राजा को नियमित कर देने की व्यवस्था नहीं थी। राजा को स्वेच्छा से कर दिया जाता था। युद्ध में हारा हुआ कबीला विजयी राजा को भेंट देता था। राजा इस धन को अपने अन्य सहयोगियों के साथ बांटता था।
ऋग्वेदिक संस्कृति ग्रामीण थी, आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुचारण था, कृषि उनका गौण व्यवसाय था। पशुधन उनकी मुख्य संपत्ति हुआ करती थी, गाय को लेकर आर्यों ने कई युद्ध लड़े, गाय को सबसे उत्तम धन माना जाता था। ऋग्वेद में युद्ध के लिए गवेषण, गेसू, गव्य और गम्य शब्द का उपयोग किया गया है।