आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने अपने उपदेशों का प्रचार-प्रसार हिन्दी भाषा में किया तथा अपने प्रसिद्ध धार्मिक ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना भी हिन्दी भाषा में ही की। वेदों के भाष्य भी उन्होंने हिन्दी भाषा में ही लिखे तथा आर्य समाज के अनुयायियों को हिन्दी भाषा का प्रयोग करने की शिक्षा दी। इस प्रकार आर्य समाज ने हिन्दी गद्य के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
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